पूर्णिया : चौका जमाने के लिये तैयार पप्पू, हैट्रिक की कोशिश में संतोष, सांसद बनने के लिये तैयार बीमा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

पूर्णिया : चौका जमाने के लिये तैयार पप्पू, हैट्रिक की कोशिश में संतोष, सांसद बनने के लिये तैयार बीमा

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पटना, 23 अप्रैल, बिहार लोकसभा चुनाव 2024 में ‘हॉट सीट’ बनी पूर्णिया पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) की चुनावी लड़ाई के बीच कांग्रेस से बागी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतर जाने से इस सीट पर चुनावी जंग त्रिकोणीय हो गयी है। बिहार की अधिकांश सीटों पर इस बार राजग और इंडिया गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई है, लेकिन पूर्णिया की तस्वीर थोड़ी अलग है। राजग के संतोष कुशवाहा और इंडिया गठबंधन की बीमा भारती के अलावा इस सीट पर पप्पू यादव के चुनावी मैदान में आ जाने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। ऐसे में निश्चित रूप से पूर्णिया का सियासी रण बेहद ही रोचक रहने वाला है। कांग्रेस की राज्यसभा सांसद रंजीत रंजन के पति पप्पू यादव ने हाल ही में अपनी जन अधिकार पार्टी (जाप) का कांग्रेस में इस आस में विलय कर दिया था कि उन्हें पूर्णिया से टिकट मिल जाएगा लेकिन उनकी उम्मीद पर उस समय पानी फिर गया जब इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच यह सीट बंटवारे के समझौते के तहत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के खाते में चली गयी। राजद ने हाल ही में जनता दल यूनाईटेड (जदयू) छोड़कर उनकी पार्टी में आयी रूपौली की पांच बार से विधायक बीमा भारती को पूर्णिया से उम्मीदवार बनाया है।पूर्णिया सीट कांग्रेस को नहीं मिलने से नाराज पप्पू यादव अब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ेंगे। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया से महिला प्रत्याशी बीमा भारती उतारकर यहां के मतदाताओं को एक चैलेंज दे डाला। क्या पूर्णिया की जनता फिर किसी महिला को लोकसभा भेज आधी आबादी का सम्मान करने जा रही है? राजद सुप्रीमो ने बीमा भारती को उतारकर आधी आबादी का प्रतिनिधित्व भी कर डाला है।माधुरी सिंह पूर्णिया की एकमात्र महिला सांसद रही हें। पिछले कुछ चुनावों पर यदि नजर डालें तो पूर्णिया लोकसभा सीट अब राजग का का गढ़ है। वर्ष 2004 और 2009 में इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा तो पिछले 10 साल से जदयू के संतोष कुशवाहा पूर्णिया से जीत दर्ज कर रहे हैं। इस बार भी राजग के के घटक दल जदयू ने संतोष कुशवाहा पर ही दांव लगाया है।पूर्णिया सीट से तीन बार सांसद रह चुके पप्पू यादव भी निर्दलीय ही सही चुनावी रण में कूद चुके हैं। इलाके के आम लोगों की बात करें तो मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, हां एक बात सब स्वीकार कर रहे हैं कि पप्पू यादव को यहां से खारिज करना राजग और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के लिये मुश्किल होगा। 


पूर्णिया लोकसभा सीट से कई राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेताओं ने चुनाव लड़ा है। स्वतंत्रता सेनानी फणी गोपाल सेन गुप्ता, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद ताहिर, बाहुबली नेता पप्पू यादव और पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और सीमांचल के कद्दावर नेता मो. तस्लीमुद्दीन भी इस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और कामयाबी हासिल की।एक समय ऐसा भी था कि पूर्णिया से लेकर नेपाल तक डकैतों का आतंक फैला हुआ था।सरकारी अधिकारी इन इलाकों में पोस्टिंग नहीं लेना चाहते थे। जिन अधिकारियों की यहां पोस्टिंग होती थी वो अपने आप को बदकिस्मत मानते थे और अपनी पोस्टिंग या तबादले को सजा के तौर पर लेते थे। पूर्णिया को लेकर एक कहावत मशहूर थी, “ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाये’ अर्थात यदि आप मरना चाहते हैं तो पूर्णिया चले जाइए, आपको जहर खाने की जरूरत नहीं। हालांकि वर्तमान परिपेक्ष्य में ऐसी बात नहीं, हर दल के नेता यहां अपनी पोस्टिंग कराना चाहते हैं। आजादी के बाद 1952 में देश में पहली बार चुनाव हुआ था। इस समय पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का नाम ‘पूर्णिया सेंट्रल’ हुआ करता था। इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर स्वतंत्रता सेनानी फणी गोपाल सेन गुप्ता ने निर्दलीय दुर्गा प्रसाद को शिकस्त दी। वर्ष 1957 में पूर्णिया संसदीय सीट अस्तित्व में आया।इस चुनाव में भी फणी गोपाल सेन गुप्ता कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव लड़ा और निर्दलीय बालकृष्ण गुप्ता को पराजित किया।1962 में तीसरे लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भी फणी गोपाल सेन गुप्ता ने जीत का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार विशेश्वर नारायण शर्मा को पराजित किया और जीत की हैट्रिक लगायी। वर्ष 1967 के आम चुनाव में भी फणी गुप्ता का जलवा बरकरार रहा। इस चुनाव में फणी गुप्ता ने संयुक्त सोशलिस्ट उम्मीदवार बालकृष्ण गुप्ता को हराया। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने फणी गुप्ता का टिकट काट कर संविधान सभा के सदस्य रहे मोहम्मद ताहिर को दिया। इस चुनाव में मोहम्मद ताहिर ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे ज़ेड. ए. अहमद को शिकस्त दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन-एनसीओ) उम्मीदवार फणी गुप्ता तीसरे स्थान पर रहे। मोहम्मद ताहिर इससे पहले किशनगंज क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ते थे। उन्होंने किशनगंज से वर्ष 1957 और वर्ष 1962 में लोकसभा का प्रतिनिधित्व भी किया था। 


1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे लखन लाल कपूर ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं माधुरी सिंह को मात दी थी।यहां पहली बार आम चुनाव में आधी आबादी की भागीदारी हुई थी और कांग्रेस ने माधुरी सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था। हालांकि अपने पहले चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली और उन्हें जनता के आक्रोश का शिकार होना पड़ा था। लखन लाल कपूर इससे पूर्व वर्ष 1967 में किशनगंज लोकसभा क्षेत्र से भी सांसद रहे हैं। वर्ष 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। कांग्रेस प्रत्याशी माधुरी सिंह ने बाजी अपने नाम कर ली। माधुरी सिंह ने जनता पार्टी (सेक्यूलर) के उम्मीदवार नियानंद आर्य को पराजित किया। इस चुनाव में जनता पार्टी प्रत्याशी लखन लाल कपूर तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1984 के चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी माधुरी सिंह ने जीत का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने लोकदल प्रत्याशी कमल नाथ झा को शिकस्त दी। इस चुनाव में भी जनता पार्टी उम्मीदवार लखन लाल कपूर तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1989 में हुए आम चुनाव में पिछले दो बार से सांसद रही माधुरी सिंह को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मोहम्मद. तस्लीमुद्दीन ने बाज़ी मार ली। उन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अजीत सरकार को शिकस्त दी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार ब्रजकिशोर यादव तीसरे जबकि कांग्रेस प्रम्याश माधुरी सिंह चौथे नंबर पर रही। वर्ष 1991 में पूर्णिया लोकसभा चुनाव के लिये मतदान हुआ। इस चुनाव के मतदान के दिन सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशियों ने चुनाव आयोग से चुनाव के दौरान बूथों को लूटने और बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायत की। इस शिकायत पर मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषण ने पूर्णिया के नतीजे पर रोक लगा दी थी।मामला कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने चार साल बाद पुनर्मतदान का आदेश दिया। इस बीच पूर्णिया 1991-95 चार साल तक बिना सांसद के ही रहा। कोर्ट ने इस सीट पर सभी बूथों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया, लेकिन शर्त यह थी कि प्रत्याशी वही होंगे जो उस समय चुनाव मैदान में खड़े थे, फिर से मतदान हुआ और निर्दलीय प्रत्याशी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव विजयी हुये। वर्ष 1996 के चुनाव में भी पप्पू यादव ने बाजी अपने नाम की।समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े पप्पू यादव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता चुनावी अखाड़ा में पटखनी दे दी। इस जीत ने सीमांचल के इलाके में पप्पू यादव को एक बड़े नेता के तौर पर पहचान दिलायी। लेकिन वर्ष 1998 में हुए चुनाव में पप्पू यादव को भाजपा उम्मीदवार जय कृष्ण मंडल ने मात दे दी।जय कृष्ण मंडल पूर्णिया से भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले पहले सांसद बने। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्णिया की पूर्व सांसद माधुरी सिंह के पुत्र उदय सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह तीसरे स्थान पर रहे। 


इस चुनाव को लोग पप्पू यादव बनाम पप्पू सिंह के रूप में भी याद करते हैं। उदय सिंह की सबसे बड़ी बहन पूर्व सांसद श्यामा सिंह छोटे साहब के नाम से मशहूर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की बहू और नागालैंड और केरल के पूर्व राज्यपाल और पूर्व सांसद निखिल कुमार की पत्नी थीं। वर्ष 1999 में पप्पू यादव ने फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पूर्णिया से चुनाव लड़ा और और भाजपा के तत्कालीन सांसद जय कृष्ण मंडल को मात दी और तीसरी बार इस सीट पर जीत हासिल की। वर्ष 2004 में पप्पू यादव ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर पूर्णिया से चुनाव लड़ा लेकिन इस बार उन्हें भाजपा के उम्मीदवार उदय सिंह से शिकस्त का सामना करना पड़ा। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पटना उच्च न्यायालय ने पप्पू यादव के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी क्योंकि वह हत्या के एक मामले में दोषी करार दिए जा चुके थे। इसके बाद उन्हें राजद से बाहर कर दिया गया।वर्ष 2009 में पूर्णिया लोकसभा सीट से पप्पू यादव की मां शांति प्रिया ने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें भाजपा के तत्कालीन सांसद उदय सिंह से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 के चुनाव में जदयू प्रत्याशी संतोष कुश्वाहा ने भाजपा उम्मीदवार उदय सिंह को मात दे दी। कांग्रेस प्रत्याशी अमरनाथ तिवारी तीसरे नंबर पर रहे। संतोष कुशवाहा पहली बार 2010 में भाजपा के टिकट पर बायसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने, लेकिन, 2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया था। जब लोकसभा चुनाव हुआ तो जदयू ने पूर्णिया से संतोष कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया था। वर्ष 2019 में भाजपा और जदयू ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा। पूर्णिया सीट जदयू के खाते में गई। राजग गठबंधन से टिकट नहीं मिलने पर उदय सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया।संतोष कुशवाहा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उदय सिंह को हराया। कभी चार साल तक बिना सांसद के रहने के कारण चर्चा में रही पूर्णिया लोकसभा सीट 2024 के लोकसभा चुनाव में भी चर्चा में है।इसके सबसे बड़े कारण हैं पूर्णिया से तीन बार सांसद रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव। पूर्णिया से महागठबंधन से टिकट की चाह में पप्पू यादव ने कांग्रेस का ‘हाथ’ तो थाम लिया लेकिन उनके साथ ‘खेला’ हो गया। पप्पू यादव ने अभी भी मैदान नहीं छोड़ा और अब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में डटे हैं।हालांकि कांग्रेस ने अब तक पप्पू यादव के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की है लेकिन किसी भी शीर्ष नेता द्वारा उनके समर्थन में आने से इंकार को परोक्ष उपेक्षा के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही, राहुल गांधी ने भागलपुर में अपनी चुनावी रैली के दौरान लोगों से बीमा भारती का समर्थन करने की अपील की थी। पूर्णिया से तीन बार सांसद रहे पप्पू यादव के चुनाव में निर्दलीय उतर जाने से पूर्णिया लोकसभा सीट अब एक हॉट सीट बन चुकी है।इस सीट को लेकर न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में चर्चा का एक दौर चल रहा है। 


सियासी पंडित पूर्णिया में हार-जीत के समीकरणों पर मंथन करने लगे हैं। पूर्णिया लोकसभा सीट (जदयू) ने विषम परिस्थितियों में 2014 में जीती थी और 2019 में भी इसे बचाने में कामयाब रही थी।वर्ष 2014 के चुनाव में जदयू, राजग से अलग थी। जदयू ने 38 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उसे दो सीट पर ही जीत मिली थी,जिसमें एक तो थी नीतीश कुमार का गढ़ नालंदा और दूसरी थी पूर्णिया।पिछले दो लोकसभा चुनावों से पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संतोष कुमार कुशवाहा कर रहे हैं। संतोष कुशवाहा दोनों बार जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतने में कामयाब रहे। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) उम्मीदवार एवं (जदयू) के निवर्तमान सांसद संतोष कुशवाहा का लक्ष्य ‘हैट्रिक’ लगाना है, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी से पाला बदलकर राजद में शामिल हुयी विधायक बीमा भारती विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं, उनका सपना विधायक से सांसद बनने का है। निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पूर्व सांसद पप्पू यादव राजद की टेंशन बढ़ा दी है। उन्होने चुनावी समा बांध दिया है, उनका सपना भी सांसद बनने का है। यह देखना दिलचस्प होगा कि निर्दलीय पप्पू यादव की बगावत किस पर भारी पड़ेगी। त्रिकोणीय मुकाबले में कौन बाजी मारेगा। पूर्णिया सीट राजग और इंडिया गठबंधन दोनों के लिये महत्वपूर्ण सीट है। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजग उम्मीदवार संतोष कुश्वाहा के पक्ष में रैली की है ,वहीं नेता प्रतिपक्ष पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बीमा भारती के पक्ष में चुनावी सभा की है। तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव का नाम लिए बगैर मतदाताओं से अपील करते हुए कहा है कि यह एनडीए और इडिया की लड़ाई है।या तो आप इंडिया को चुनो ,और इंडिया को यदि नही चुनते हैं बीमा भारती को, तो एनडीए को चुनो। इससे साफ है कि तेजस्वी हर हाल में पप्पू यादव को हराने चाहते हैं। ढ़ाई दशक से पूर्णिया संसदीय क्षेत्र की लड़ाई पप्पू सिंह उर्फ उदय सिंह के ईद-गिर्द घूम रही थी। इस बार वह चुनाव नही लड़ रहे हैं।बिहार के रसूखदार राजनीतिक परिवार से आने वाले पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने यहां चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। उदय सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी है।उदय सिंह से मिलने के लिये पप्पू यादव और बीमा भारती गयी थी। उदय सिंह ने पूर्णिया लोकसभा चुनाव में किसी भी कैंडिडेट का समर्थन या विरोध करने से मना कर दिया है।उन्होंने कहा है कि वह प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज अभियान को 2025 की विधान सभा चुनाव में कोसी और सीमांचल में मजबूत कर बिहार में एक मजबूत सरकार बनाएंगे। वर्ष 2019 लोकसभा में जदयू के संतोष कुशवाहा की कांग्रेस के उदय सिंह से सीधी टक्कर थी। उस समय संतोष कुशवाहा को भारी मतों से जीत हुई थी। इस बार पूर्णिया का संघर्ष त्रिकोणात्मक हो गया है।युवाओं में लोकप्रिय निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में लड़ रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव यहां न सिर्फ बड़े दलीय प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं, बल्कि देशभर के मीडिया की सुर्खी भी बने हैं। कभी ट्रैक्टर चलाते, कभी बुलेट दौड़ाते उनकी तस्वीरें चर्चा पाती हैं। हालांकि चर्चा से इतर और चुनावी महासमर में बाजी मारना दूसरी बात है।पप्पू यादव ने इस सीट पर अपनी जीत का दावा किया है। उन्होंने कहा है कि पूर्णिया की जनता का समर्थन हमारे साथ है और लोकसभा चुनाव में हमारी जीत होगी। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर जीत हासिल कर पायेगे या नहीं। सियासी पारे के बीच पूर्णिया संसदीय सीट से कांग्रेस, जदयू, समेत सात प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। इस क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र इनमें पांच पूर्णिया, बनमनखी, धमदाहा, रुपौली और कसबा, पूर्णिया और एक कोढ़ा कटिहार जिले में हैं। बनमंखी, पूर्णिया और कोढ़ा में भाजपा का कब्जा है।कसबा में कांग्रेस, रूपौली में राजद और धमदाहा में जदयू का कब्जा है। पूर्णिया के त्रिकोणात्मक संघर्ष के बीच जहां जदयू के संतोष कुश्वाहा जीत की हैट्रिक लगाने का ख्वाब पाले है, वहीं पप्पू यादव भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हैट्रिक लगाने की पुरजोर कोशिश करेंगे। इन सबके बीच बीमा भारती का सांसद बनने की दौड़ में हैं। इनमें किसना सपना पूरा होता है, यह तो 04 जून को नतीजे के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा। 

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