- आया नीतीश, गया नीतीश के दौर में एकल नेता पार्टी को मिली ताकत
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पटना, करीब साढ़े तीन साल बाद एक फिर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव और वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। विधान सभा चुनाव से पहले मुकेश सहनी ने प्रेस कांफ्रेंस में तेजस्वी यादव पर पीठ में छुरा भोंकने का आरोप लगाकर बाहर निकल गये थे। शुक्रवार को मुकेश सहनी तेजस्वी यादव के प्रति आस्था व्यक्त कर फिर महागठबंधन में शामिल हो गये। इन तीन वर्षों में उन्होंने कई दरवाजे छान आये। सत्ता की मलाई भी चाभी। उनके अपने तीन विधायक साल भर में ही साथ छोड़ चुके थे। मंत्री पद भी गंवाना पड़ा था। उसके बाद से सत्ता की नयी नाद तलाश रहे थे। लेकिन किसी ने मुंह मारने का मौका नहीं दिया। लोकसभा चुनाव में एनडीए ने महत्व नहीं दिया और महागठबंधन घास नहीं डाल रहा था। इससे परेशान मुकेश सहनी नया घाट तलाश रहे थे। उधर लालू यादव को भी तीन सीटों पर मनपंसद उम्मीदवार नहीं मिल रहे थे। जो थे, उन पर भरोसा नहीं था। उम्मीदवार का टोटा पड़ गया था। वैसी स्थिति में राजद ने वीआईपी के साथ सौदा किया। तीन सीट वीआईपी को दे दिया। वीआईपी के साथ संकट है कि एक आदमी की पार्टी है। दूसरा कोई उम्मीदवार नहीं है। किरायेदार पर उम्मीदवार की तलाश शुरू हो गयी है। माना जा रहा है कि मुकेश सहनी खुद झंझारपुर से चुनाव लड़ सकते हैं। पूर्वी चंपारण सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश सिंह वीआईपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। इसके बावजूद गोपालगंज सीट पर उम्मीदवार का संकट बरकरार है। माना जा रहा है कि राजद ही अपने किसी कार्यकर्ता या नेता को वीआईपी से टिकट दिलवा सकता है।
तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी को महागठबंधन में शामिल करके उन्हें संजीवनी दे दी है। मुख्य धारा से हाशिये में धकेल दिये गये मुकेश सहनी को जीवनदान मिल गया है। लेकिन वे जीतनराम मांझी या उपेंद्र कुशवाहा की तरह ही मुकेश भरोसे के लायक नहीं हैं। एक सीट की राजनीति करने वाले ऐसा नेता को न पार्टी बदलते देर लगती है और न गठबंधन बदलने में परहेज है। जब से बिहार में आया नीतीश, गया नीतीश की राजनीति शुरू हो गयी है तब से मांझी, कुशवाहा और सहनी जैसे नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है।
— बीरेंद्र यादव न्यूज —
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