घाटी में एक बार फिर आतंकवाद सिर उठाने लगा है. बीते 36 घंटों में 4 बड़े आतंकी हमले इस बात का संकेत है कि घाटी को अशांत करने के लिए आतंकी किसी बड़ी साजिश के तहत बड़ा अटैक करने वाले है। इस साजिश को नाकाम करने के लिए घाटी में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरुरत तो हे ही, लेकिन अमरनाथ यात्रा से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सर्जिकल व एअर स्ट्राइक से भी कुछ बड़ा करने के लिए तैयार रहना चाहिए। आम दिनों में शिवखोड़ी जा रही बस पर जिस तरह आतंकियों ने गोलीबारी कर 10 लोगों को मौत की नींद सुलाया, वह अक्ष्य है। पीएम मोदी के शपथ ग्रहण कार्यक्रम वाले दिन आतंकियों द्वारा मासूमों को निशाना बनाया जाना एक तरह से पीएम मोदी को खुली चुनौती है। देखा जाएं तो “पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की घटनाएं काफी ज्यादा हुई हैं. सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की नजर से ये चूक हुई जिसकी वजह से अब हिंसा में एक बार फिर बढ़ोतरी देखी जा रही है. आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान शामिल रहता है. पिछले काफी समय से जम्मू के कठुआ, पुंछ, राजौरी और अन्य इलाकों में घुसपैठ ज्यादा बढ़ी है. जरूरी ये है कि सभी एजेंसियां एक साथ काम करें और इससे निपटें. ये जरूरी इसलिए भी है क्योंकि आतंकी एक बार फिर से हिन्दू तीर्थयात्रियों को निशाना बना रहे हैं.” माना ऊरी स्ट्राइक और बालाकोट स्ट्राइक से कुछ समय के लिए पाकिस्तान आतंक के रास्ते से पीछे हटा लेकिन आतंकवाद की पॉलिसी को कभी नहीं छोड़ा. अब देखना यह है कि क्या बालाकोट और उरी स्ट्राइक से बड़ी कोई करवाई करने का वक़्त आया है या नहीं, यह फैसला मोदी सरकार को करना है
भारत के लोकतंत्र में जम्मू-कश्मीर की जनता की भागीदारी आतंकियों का न सिर्फ ऊपरी मदद खत्म कर देगी बल्कि उन्हें वैचारिक समर्थन भी मिलना बंद हो जाएगा. ऐसे में पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आका ऐसा कभी नहीं चाहेंगे, इसलिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अटैक बढ़ा दिया है. खुफिया इनपुट के मुताबिक आतंकी संगठने फॉल्कन स्क्वाड के जरिए ऐसे हमलों को अंजाम दे रहा है. आतंकियों के इस गिरोह में विदेशी दहशतगर्द भी शामिल हैं. इसके अलावा हाल के दिनों में जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों की लंबी-लंबी कतारें भी पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के सरगनाओं को खटक रही है. इसलिए ये तत्व घाटी में अमन के माहौल को किसी भी हालत में खत्म करना चाहते हैं. जम्मू में हुए हमलों के पीछे पाकिस्तान की सोची समझी साज़िश थी. जिसमें नई सरकार के शपथग्रहण के दिन पहला हमला और उसके बाद अब जी-7 बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर को एक बार फिर से इंटरनेशनल लेबल पर दोबारा वापस लाने की कोशिश के तौर भी देखा जा रहा है. कश्मीर में सुरक्षा बालों से आतंकी अब नहीं लड़ सकते. इसीलिए जम्मू में सॉफ्ट टारगेट पर हमले होने लगे हैं. जिससे निपटने के लिए नई रणनीति की ज़रुरत है और सतर्कता के साथ इस से लड़ना होगा. खुफिया एजेंसी सूत्रों के ममुताबिक जम्मू में पिछले तीन दिनों में हुए तीन आतंकी हमले में लश्कर और जैश से जुड़े छद्म गुटों की भागीदारी बताई जा रही है. ये दहशतगर्द कुछ महीने पहले पाकिस्तान से दाखिल होकर जम्मू की पहाड़ियों में छिपकर अपनी गतिविधियां चला रहे थे. अब सुरक्षा एजेंसियां कदम कदम पर इतनी तलाश कर रही हैं. बता दें कि रियासी के शिवखोड़ी की बस में हुए हमले की जांच में एजेंसियों और एटीएस ने अभी तक जो सुराग जुटाए हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि विदेशी आतंकियों के साथ-साथ लोकल ओवर ग्राउंड वर्कर भी इस हमले में शामिल हैं. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि घुसपैठ कर हमारी सीमा में घुस आए आतंकियों के स्थानीय मददगार भी कम नहीं हैं। हमारे जवानों की शहादत भी इसीलिए हो जाती है क्योंकि आतंकियों के इन मददगारों की कमर अभी पूरी तरह टूटी नहीं है। जम्मू-कश्मीर में बीते तीन दिन में एक के बाद एक आतंकी घटनाओं ने सीमा पार से हो रही घुसपैठ के खतरों की ओर फिर से आगाह किया है।
आगामी दिनों में विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच ये आतंकी हमले बताते हैं कि आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर में आम लोगों में खौफ पैदा करने में जुटे हैं। डोडा में आतंककारियों ने सेना की चौकी पर हमला कर दिया। यह कठुआ में आतंकियों की गोलाबारी में एक जने की मौत और दो अन्य के घायल होने के कुछ घंटों बाद ही हुआ। वहीं तीन दिन पहले ही आतंककारियों ने तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर कायराना हमला किया था। इन घटनाओं में सीमा पार की शह तो जगजाहिर है ही। ये घटनाएं यह भी बता रही है कि आतंकी साजिश रचकर घात लगाकर हमले करने लगे हैं। हमले भी इस इरादे से किए जाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग हताहत हों जिससे डर का माहौल बने। तीर्थ यात्रियों की बस पर हमला ऐसी ही साजिश का हिस्सा थी। यह भी कहा जा सकता है कि अपनी कायराना करतूतों के माध्यम से ये आतंकी यह भी जताने का विफल प्रयास करने में जुटे हैं कि कश्मीर में अभी अमन-चैन लौटा नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में पर्यटन परवान पर चढ़ा है। आतंकियों को सीमा पार से मिल रही मदद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन दिनों सुरक्षाबलों को मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के पास बड़ी संख्या गोला-बारूद, पाकिस्तान में बनी चॉकलेट और दवाइयां बरामद हुए हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने डोडा जिले में हुए आतंकी हमलों के बाद चार आतंकियों के स्केच जारी किए हैं. पुलिस ने इन आतंकियों के बारे में ठोस जानकारी देने पर 20 लाख रुपये का इनाम देने की भी घोषणा की है. सेना और पुलिस के जवान सभी इलाकों में तलाशी अभियान चलाकर आतंकियों का सफाया करने में लगे हुए हैं।
इन स्थानों पर हमले का इनपुट
जम्मू और कश्मीर पुलिस की पीसीआर रिपोर्ट में इस बारे में विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त इनपुट का हवाला दिया गया है। जानकारी के मुताबिक, आतंकवादी अगले 48-72 घंटों में विशेष रूप से राजौरी और जम्मू जिलों के सुंदरबनी, नौशेरा, लंबेरी, अखनूर और डोमाना इलाकों में सुरक्षा बलों - शिविरों/सैन्य प्रतिष्ठानों पर आत्मघाती हमलों की योजना बना रहे हैं। निचले स्तर पर सभी को सतर्क रहने के लिए कहा गया है। खास बात है कि दो दशक पहले तक ये इलाके शांत माने जाते थे। स्थिति यह है कि आतंकी अब घाटी में आने वाले पर्यटकों को निशाना बनाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। जम्मू में रियासी, कठुवा, डोडा में एक के बाद एक तीन हमलों से फिर वही सवाल सामने खड़ा हुआ है कि पिछले कुछ समय से अचानक जम्मू में आतंकी वारदातें क्यों बढ़ी हैं।
जितनी फोर्स हटी उतनी नहीं आई
भारतीय सेना की फोर्स- रोमियो, डेल्टा, यूनिफॉर्म फोर्स के पास यहां अलग अलग इलाके का जिम्मा था। लेकिन करीब चार साल पहले जब ईस्टर्न लद्दाख में चीन के साथ एलएसी पर तनाव बढ़ा और स्थिति हिंसक झड़प तक पहुंच गई तब यहां से यूनिफॉर्म फोर्स को हटाकर एलएसी पर भेज दिया गया। यहां से तीन ब्रिगेड जितने सैनिकों को कम किया गया। उनकी संख्या कम होने की वजह से बाकी फोर्स के पास उन इलाकों का जिम्मा भी आ गया जहां यूनिफॉर्म फोर्स तैनात थी। जानकारों के मुताबिक इसका फायदा भी आतंकियों ने उठाया और खुद को फिर से खड़ा करने के लिए काम किया। पिछले कुछ समय में भारतीय सेना ने इन इलाकों में गैप भरने के लिए ज्यादा सैनिकों की तैनाती की है लेकिन सूत्रों के मुताबिक अब भी वह पुराने नंबर को मैच नहीं करते, यानी उतनी फोर्स नहीं है जितनी चार साल पहले थी। साथ ही स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने और ह्यूमन इंटेलिजेंस नेटवर्क तैयार करने के लिए लगातार काम करना होता है और उनके बीच रहना होता है। चार साल में जो गैप आया है उसे भरने में वक्त लगेगा।
पुलिस से क्यों नहीं मिल रहा सटीक इंटेलिजेंस
यहां सभी सिक्योरिटी फोर्स मिलकर आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाती है। सेना की तैनाती कम होने की वजह से उनके ह्यूमन इंटेलिजेंस नेटवर्क पर फर्क पड़ा क्योंकि लोग तभी भरोसा करते हैं जब लगातार आप उनके साथ हैं। फोर्स कम होने का असर दिखा। लेकिन सवाल यह भी है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस लगातार वहां है लेकिन आतंकियों के खिलाफ ह्यूमन इंटेलिजेंस क्यों नहीं मिल पा रहा है? आतंकी वारदात को अंजाम देकर भाग निकल रहे हैं और उनका पता क्यों नहीं चल पा रहा है। जानकारों के मुताबिक बिना लोकल सपोर्ट के आतंकियों के लिए ऑपरेट करना मुश्किल है, ऐसे में आतंकियों के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार ह्यूमन इंटेलिजेंस को मजबूत करना है। सूत्रों के मुताबिक टेक्निकल इंटेलिजेंस भी कई बार इसलिए फेल हो जाता है क्योंकि आतंकी लेटेस्ट टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कर रहे हैं और सिगनल पकड़ना इतना आसान नहीं है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें