विशेष : संसद में गूंजा इमरजेंसी की क्रूरता, बौखलाएं कांग्रेसी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 26 जून 2024

विशेष : संसद में गूंजा इमरजेंसी की क्रूरता, बौखलाएं कांग्रेसी

संविधान की दुहाई देने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित पूरा विपक्ष उस वक्त खड़बड़ा गया, जब लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने एक एक कर इमरजेंसी की क्रूरता को बया करते हुए कहा, इस घटनाक्रम को हमारे युवा पीढ़ी को भी जानने का हक है। कैसे इंदिरा गांधी ने देश में 1975 में इमरजेंसी लगाई थी और संविधान को ध्वस्त किया था। किस तरह उसके पूर्वजों के अधिकार को सीज करने के साथ ही जेल में ठूस दिया गया। बता दें, भारत में अब तक कुल तीन बार आपातकाल लग चुका है. इसमें वर्ष 1962, 1971 तथा 1975 में अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया था. लेकिन 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला किया। उस दौरान भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताका गला घोंटा गया. इस दौरान लोगों को जबरदस्ती बाजारों, बसों, और ट्रेनों से पकड़ा जाता और उनकी नसबंदी कर दी जाती. सर्जरी के बाद टिटनेस की वजह से कई लोगों की जान भी चली गई. इस नसबंदी कार्यक्रम से जुड़े जो भी सरकारी मुलाजिम थे, टार्गेट पूरा न करने पर उनकी सैलरी रोक दी जाती थी. कुछेक जगहों पर सत्याग्रह जरुर हुए, लेकिन इससे इतर सूबे में खौफ की एक मोटी परत बिछी रही


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आपातकाल का जिन्न लोकसभा में आज फिर जागा और जब ये जागा तो एनडीए के खिलाफ एकजुट होने का दावा कर रहे इंडि गठबंधन में फूट नजर आया. दरअसल, इंडिया गठबंधन से जुड़े सांसद संविधान के मुद्दे पर बीजेपी को घेर रहे हैं. तो एनडीए से जुड़े सांसद आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हैं. इस बीच लोकसभा के स्पीकर चुने जाने के बाद ओम बिरला ने भी इमरजेंसी पर सदन में एक प्रस्ताव रखा. जैसे ही उन्होंने निंदा प्रस्ताव रखा, सदन में हंगामा शुरू हो गया. पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच नारेबाजी शुरु हो गई. कांग्रेस सांसदों ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया. लेकिन इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी, टीएमसी, आरजेडी और लेफ्ट, इस विरोध से दूर रहे. जब कांग्रेस सांसद विरोध जताने के लिए स्पीकर की कुर्सी के पास पहुंच गए. इस दौरान भी कांग्रेस के सहयोगी दलों के सांसद चुपचाप बैठ रहे. लेकिन जब स्पीकर ने इमरजेंसी के दौरान जान गंवाने वालों की याद में मौन रखते समय ये सांसद श्रद्धांजलि देने के लिए खड़े हो गए. भारी हो हंगामे के बीच स्पीकर ने सदन को संबोधित करते हुए 1975 में देश में आपातकाल लगाने के फैसले की निंदा की. और इसे भारतीय इतिहास का काला अध्याय बताते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर तनाशाही थोपने, संविधान-लोकतंत्र का अपमान करने लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलने और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने के संगीन आरोप लगाए. तो क्या आपातकाल पर मोदी के मास्टस्ट्रोक से विपक्ष बिखर गया. क्या एलओपी बनते ही राहुल सियासी चक्रव्यूह में फंस गए.


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फिरहाल, लोकसभा में बुधवार को अलग ही नजारा दिखा. एक तरफ ओम बिरला के फिर से लोकसभा स्पीकर बनने पर विपक्ष ने जहां स्वागत किया, साथ ही निष्कासन के मामलों को लेकर ताने कसे. वहीं कुछ देर में गेम एकदम से पलटता दिखा. स्पीकर ओम बिरला ने अपनी पहली ही स्पीच में एकदम अलग रुख दिखाया. विपक्ष हक्का-बक्का रह गया. ओम बिरला ने 1975 में इंदिरा सरकार के द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की बरसी पर जमकर सदन में सुनाया. इमरजेंसी को लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बतया, कांग्रेस को उसके लिए घेरा और सदन में दो मिनट का मौन भी रखवा दिया. ओम बिरला ने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला किया. भारत पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है. भारत में हमेशा से लोकतांत्रिक मूल्यों और वाद-विवाद का समर्थन किया गया है. ओम बिरला जब तक इमरजेंसी की क्रूरता को लोगों के सामने रख पाते संविधान की दुहाई देने वाले नेता राहुल गांधी सहित पूरा विपक्ष हूटिंग करने लगा। शोरगूल के चलते सदन को अगले दिन तक के लिए स्थगित करना पड़ा। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या इमरजेंसी के काले अध्याय को हमारी पीढ़ी को जानने का हक नहीं है? देखा जाएं तो इमरजेंसी का वह समय हमारे देश के इतिहास में अन्यायकाल का एक काला खंड था. इमरजेंसी लगाने के बाद कांग्रेस सरकार ने कुछ ऐसे फैसले किए, जिन्होंने हमारे संविधान की भावनाओं को कुचलने का काम किया. आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम में बदलवा करके कांग्रेस पार्टी ने सुनिश्चित किया कि हमारी अदालतें गिरफ्तार लोगों को न्याय नहींं दे सकती। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस सरकार ने देश में इमरजेंसी लागू कर लोगों की बुनियादी आज़ादी को खत्म कर दिया था और सारे विरोधी दलों के नेताओं को जेलों में डाल दिया था। लेकिन वे सभी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया। ऐसे में हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए। इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी। बता दें, आज से ठीक  50 साल पहले 25 जून की आधी रात को इमरजेंसी लगाई गई थी। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रहें, इसके लिए देश के नागरिकों की आजादी छीन ली गई थी। रातों रात इंदिरा जी का विरोध करने वाले सारे नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। इनमें जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल जैसे तमाम नेता शामिल थे।


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देश भर में उस जमाने के जितने छात्र नेता थे, अरुण जेटली, लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे अनगिनत छात्र नेता थे, उनके घर रात को पुलिस ने दस्तक दी, कुछ पकड़े गए, कुछ अंडरग्राउंड हो गए, जनता को कुछ खबर नहीं थी, रात को अखबारों की बिजली काट दी गई थी, उस समय सिर्फ दूरदर्शन एकमात्र टीवी चैनल था जो सिर्फ सरकार द्वारा स्वीकृत खबरें दिखाता था, अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, किसी को खुलकर बोलने की आजादी नहीं थी, पुलिस को देखते ही गोली मारने का अधिकार दे दिया गया था। वो दिन जब मीडिया पर पहरा लगा दिया गया, विरोधी दलों के सारे नेताओं की आवाज को दबा दिया गया, न्यायपालिका पर सरकार ने कब्जा कर लिया, संविधान को गिरवी रख दिया गया, लोकतंत्र की हत्या कर दी गई। 50 साल बीत चुके हैं। ज्यादातर लोगों को वो ज़माना याद नहीं है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, उस संघर्ष को उस लड़ाई को जानना और समझना हमारे युवाओं के लिए जरूरी है। ये इमरजेंसी 21 मार्च, 1977 तक देशभर में लागू रही। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये 21 महीने काफी विवादास्पद रहे। इन 21 महीनों में लोगों को एक एक पल गुजारना कांटो पर चलने जैसा रहा। इमरजेंसी को साक्षा करते हुए 85 वर्षीय कौशलराम कहते है उन दिनों इंदिरा गांधी की सरकार पर भारत अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। गुजरात में सरकार के खिलाफ छात्रों का नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था। बिहार में जयप्रकाश नारायण (जेपी) का आंदोलन चल रहा था। 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे हड़ताल चल रही थी। 12 जून, 1975 का इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा के लिए चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था। गुजरात चुनावों में पांच दलों के गठबंधन से कांग्रेस की हार और 26 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष की रैली ने इंदिरा गांधी की सरकार को मुश्किल में डाल दिया। इन्हीं सब को देखते हुए इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी थोप दी। इमरजेंसी लागू होने के तुरंत बाद विपक्षी नेताओं को जेल में डालने का सिलसिला शुरु हो गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई समेत कई बड़े नेताओं का नाम था, जो कई महीनों और सालों तक जेल में पड़े रहे थे। इंदिरा गांधी सरकार 21 महीने की इमरजेंसी आज भी चर्चा में रहती है। सियासी गलियारों में विपक्ष इमरजेंसी को काला धब्बा बताने के साथ कांग्रेस पर हमलावर हो जाता है।


इमरजेंसी के वक्त पीएम मोदी की उम्र 24 वर्ष थी

नरेंद्र मोदी महज 24 साल के थे जब भारत में इमरजेंसी की घोषणा हुई थी। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के खिलाफ उन्होंने अपनी आवाज भी उठाई। उस दौरान वह ऐसे लोगों से मिलते थे जिनके परिवार का मुखिया या तो जेल में था या फिर पुलिस के डर से छिपता फिर रहा था। वह परिवारों से मिलते थे और उन्हें आश्वासन भी देते थे। आपातकाल के बाद 1978 में मोदी ने लिखी थी पहली पुस्तक ’संघर्ष मा गुजरात’ं इस किताब को पीएम मोदी नाई की दुकान पर रखवाते थे। वह लगातार सरकार विरोधी प्रदर्शन का हिस्सा रहे थे। उनकी किताब गुजरात में आपातकाल के खिलाफ भूमिगत आंदोलन में एक नेता के रूप में उनके अनुभवों का एक संस्मरण है। इस किताब को खूब सराहा गया और व्यापक रूप से स्वीकार किया गया। खास यह है कि मोदी उस वक्त हर उस परिवार के लोगों से मिल रहे थे, जिनके परिवार का मुखिया या तो जेल में था या फिर पुलिस के डर से छिपता फिर रहा था। वह सभी परिवारों से मिलते उनकी जरूरतें समझते, उनका कुशल क्षेम पूछते और हर संभव मदद करते और आश्वासन भी देते थे। अजीत सिंह भाई गढ़वी के मुताबिक इमरजेंसी के समय नरेन्द्र मोदी पूरे भारत में भेष बदलकर इधर-उधर जाया करते थे। नरेन्द्र मोदी पंजाब में सरदार बनकर गए थे। जब वह अहमदाबाद आते थे तो उनके लिए सारी व्यवस्था वही करते थे। यह सब वह अंडर ग्राउंड होते हुए करते थे।






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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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