सीहोर : सात दिवसीय श्रीराम कथा के समापन पर उमड़ा आस्था का सैलाब - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 23 जून 2024

सीहोर : सात दिवसीय श्रीराम कथा के समापन पर उमड़ा आस्था का सैलाब

  • अंतिम दिन भव्य भंडारे का आयोजन किया गया, देर रात्रि तक जारी रहा प्रसादी का वितरण

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सीहोर। रामायण हमें जीने के तरीके सिखाती है। दूसरों की सम्पत्ति चाहे कितनी भी मूल्यवान हो उस पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। चौदह वर्ष वनवास पूर्ण करने के बाद भगवान श्रीराम जब वापस अयोध्या पहुंचे तो अयोध्यावासी खुशियों से झूम उठे। रामायण हमें आदर, सेवा भाव, त्याग व बलिदान के साथ दूसरों की सम्पत्ति पर हमारा कोई अधिकार नहीं है, ऐसा सिखाती है। उक्त विचार शहर के छावनी स्थित जगदीश मंदिर स्थित परिसर में संगीतमय सात दिवसीय श्रीराम कथा के अंतिम दिवस कथा व्यास पंडित राहुल कृष्ण आचार्य ने कहे। रात्रि साढ़े दस बजे कथा का समापन किया गया था और उसके पश्चात विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें  बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की।

 

उन्होंने समापन अवसर पर लंका दहन, रावण वध के बाद राजतिलक का प्रसंग सुनाया। वीर हनुमान ने लंका पहुंचकर अशोक वाटिका उजाड़ी। जब राक्षसों ने हनुमान की पूंछ पर आग लगाई तो उन्होंने पूरी लंका को आगे के हवाले कर दिया। भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर माता-सीता को मुक्त करवाया। भगवार श्रीराम सीता व लक्ष्मण साथ अयोध्या पहुंचे, जहां लोगों ने दीपक जलाकर खुशी मनाई व भगवान राम का राजतिलक किया गया। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार भगवान श्रीराम ने दीन-दुखियों, वनवासियों आदिवासियों के कष्ट दूर करते हुए, उन्हें संगठित करने का कार्य किया एवं उस संगठित शक्ति के द्वारा ही समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर किया। हर राम भक्त का दायित्व है कि पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें। यह राम कार्य है। श्रीराम के राज्याभिषेक का वर्णन किया और बताया कि बुराई और असत्य ज्यादा समय तक नहीं चलता। अन्तत: अच्छाई और सत्य की जय होती है। अधर्म पर धर्म की जीत हमेशा होती आई है। श्रीराम के राज्याभिषेक के प्रसंग के दौरान पूरे पंडाल में पुष्पों की वर्षा भक्तों द्वारा की गई। पंडित राहुल कृष्ण आचार्य ने कहा कि ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनों जीवन की आवश्यकताएं हैं। मनुष्य को सत्य की ओर चलना है और यह मोक्ष की साधना है। यह दीक्षा के बिना संभव नहीं है। अगर कोई अंधकार में चलता है तो उसे एक टार्च द्वारा प्रकाश देने वाला यंत्र चाहिए अन्यथा वह गहरी खाई में गिर जाएगा। उसी तरह यदि कोई साधना के पथ पर चलता है तो उसे प्रकाश के लिए टार्च की आवश्यकता होती है अन्यथा उसका अंध पतन अवश्यंभावी है। 

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