व्यक्तिगत और राजनीतिक आख्यानों को क्वियरनेस के उत्सव में पिरोते हुए, यह नाटक इतिहास, साहित्य, और वास्तविक जीवन अनुभवों का एक अद्भुत मिश्रण था। ‘बी-लव्ड’ ने अपने प्रभावी संवादों, गीतों, व्यंग्य और संगीत से दर्शकों को उत्साहपूर्वक जोड़े रखा. इस अवसर पर नज़रिया फाउंडेशन की डायरेक्टर, रितुपरना बोराह ने कहा कि "इस तरह के आयोजन दुनिया को यह दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है कि एडवोकेसी विभिन्न तरीकों से की जा सकती है, चाहे वह यूनाइटेड नेशन्स की प्रणालियों के माध्यम से हो, सरकार के माध्यम से हो, या इस तरह के नाटकों के माध्यम से हो. हमने हमेशा सहयोगिक कार्य की शक्ति में विश्वास किया है और SAATHII के साथ इसका सह-आयोजन दर्शाता है कि एक जुट हो कर हम क्वीर-ट्रांस समुदाय के खिलाफ किसी भी नफरत, भेदभाव और हिंसा को चुनौती दे सकते हैं". वहीं SAATHII की असिस्टेंट डायरेक्टर, रंधोनी लाइरिकयेंगबम ने कहा, "ऐसे कार्यक्रम हमें उन दर्शकों तक पहुँचने में मदद करते हैं जिनके साथ व जिनके लिए, आम तौर पर प्रशिक्षण व संवेदिकरण सत्रों के माध्यम से जुड़ना कठिन होता है. जब हम थिएटर, संगीत आदि जैसे स्वीकृत माध्यमों का प्रयोग करते हैं, तब बहुत ज़रूरी जानकारी एक बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँच पाती है. LGBTQIA+ व्यक्तियों के बारे में समाज की धारणा को बदलने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन इस तरह के आयोजन और नाटक निश्चित रूप से समावेशिता का मार्ग प्रशस्त करेंगे".
इस अवसर पर नाटक के निर्देशक सपन सरन ने कहा कि "बी-लव्ड एक सहयोगिक प्रयास है. इसे तैयार करने में हमें लगभग तीन महीने लगे. 45 दिनों के कड़े पूर्वाभ्यास के बाद हमने पिछले साल जून में यह नाटक शुरू किया था. इस नाटक में सात कलाकार, तीन संगीतकार, एक मूवमेंट आर्टिस्ट, दो संगीतकार हैं जो लाइव परफॉर्म कर रहे हैं तथा 17 लेखक, अनुकूलन लेखक, एक शोध दल और एक ऑब्जेक्ट थिएटर ट्रेनर हैं जो इस नाटक में जान डालते हैं". ज्ञात हो कि नज़रिया फाउंडेशन एक क्वीर फेमिनिस्ट रिसोर्स ग्रुप है, जो क्वीर महिलाओं और ट्रांस व्यक्तियों पर विशेष ध्यान देते हुए LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के लिए काम करता है. जबकि सोलिडैरिटी एण्ड एक्शन अगैन्स्ट द एच आई वी इन्फेक्शन इन इंडिया एक स्वयंसेवी संस्था है, जो सामाजिक व आर्थिक रूप से हाशिए पर मौजूद महिलाओं और बच्चों, एच आई वी/एड्स (HIV/AIDS), टीबी (TB) और कोविड (COVID) से प्रभावित समुदायों, और अपनी यौनिकता या लिंग पहचान के कारण हाशिए पर मौजूद समूहों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, न्याय और सामाजिक सुरक्षा जैसी सेवाओं को सुगम बनाने की ओर काम करता है.
(चरखा फीचर)
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