संगीतमय श्रीराम कथा के चौथे दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर भगवान श्रीराम की झांकी सजाई गई थी। उन्होंने कहा कि सीखना ज्ञान की साधना है। इस पथ पर चलना अर्थात नियमित साधना, कर्म की साधना है। भक्ति तो मोक्ष साधना का चरम बिंदु है। श्रीराम का जन्म हुआ। श्रीराम की मां कौशल्या थी और पिता दशरथ। रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा की तीन रानियां थी। कौशल्या, कैकई और सुमित्रा, राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए गुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन में पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया। जिसे श्रृंगी ऋ षि ने संपन्न किया। यज्ञ संपन्न हुआ तो यज्ञ कुंड से अग्निदेव स्वंय खीर का पात्र लेकर प्रकट हुए। इस खीर को उन्होंने तीनों रानियों को बांट दिया। खीर खाने के कुछ दिन बाद कौशल्या के गर्भ से भगवान श्रीराम, कैकई के गर्भ से भरत और सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। रामकथा के श्रवण से मन के राग, द्वेष, ईष्या और भेदभाव समाप्त हो जाते हैं। यह मन को शांत कर हिंसक भावनाओं का रोकती है। राम नाम की महिमा बतलाते हुए कहा कि राम का नाम अनमोल है, यदि पापी भी राम का नाम लेता है तो उसे सदगति मिल जाती है। जिसके ह्दय में प्रभु के प्रति भाव जागते हैं, जिस पर हरि कृपा होती है। वह मनुष्य ही प्रभु की कथा में शामिल होता है। श्रीराम कथा का मनोयोग से श्रवण कर उसके उपदेश को जीवन में उतारें। तभी कथा की सार्थकता है। मन व ध्यान की एकाग्रता से हर कार्य में सफलता मिलती है। भगवान का आगमन सदैव धर्म की रक्षा के लिए हुआ है। रामायण हमें समाज के संस्कार, अच्छे- बुरे की पहचान सिखाती है। सच्ची भक्ति से ही भगवान की प्राप्ति की जा सकती है।
सीहोर। श्रीराम कथा हमें मर्यादा में रहना सिखाती है। साथ ही यह मानव का सही मार्गदर्शन भी करती है। जो मनुष्य सच्चे मन से श्रीराम कथा का श्रवण कर लेता है, उसका लोक ही नहीं परलोक भी सुधर जाता है। राम कथा का श्रवण पूरे मन से करना चाहिए। उक्त बात शहर के जगदीश मंदिर स्थित प्राचीन मंदिर के परिसर में समस्त महाकाल सेवा समिति सब्जी मंडी के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथा व्यास पंडित राहुल कृष्ण आचार्य ने कहे।
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