देश की जनसंख्या देश की मौजूदा स्थिति से बहुत गंभीर हो गई है, इसलिए देश की संसद में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनना बहुत ही जरूरी हो गया है. 140 करोड़ की आबादी हो गई है और देश इससे अधिक बोझ झेल नहीं पाएगा. ’हम इतने ही लोगों को रेलवे, एयरपोर्ट, कॉलेज यूनिवर्सिटी, रोजगार दे पाएं तो यही बहुत है. मतलब साफ है देश की संसद में जनसंख्या नियंत्रण का कानून भी बनना चाहिए तभी हम देश के संसाधनों का सही से उपयोग कर पाएंगे। देश के ऊपर अब अतिरिक्त बोझ नहीं होना चाहिए. ’दो बच्चों के बाद पैदा होने वाले बच्चे को मताधिकार, चुनाव लड़ने के अधिकार और अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाना चाहिए. क्योंकि जिस तरह से देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसके लिये भारत के पास संसाधनों का अभाव पड़ना तय है। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जनसंख्या नियंत्रण का फॉर्मूला तैयार है, फिर भी वह तीन साल आफिस की फाइलों में धूल खा रहा है, तो इसकी बड़ी वजह क्या हो सकती है? कहीं योगी सरकार भी गजवा-ए-हिन्द के नाम जिस तरह से पूरे देश में एकतरफा वोटिंग हुई है, उससे धबरा तो नहीं गए है? हो जो भी जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करना आज की मांग बन चुका है
ड्राफ्ट में क्या है सिफारिश
- इस ड्राफ्ट में कहा गया है कि दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति का राशन कार्ड चार सदस्यों तक सीमित होगा और वह किसी भी प्रकार की सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होगा.
- कानून लागू होने के सालभर के भीतर सभी सरकारी कर्मचारियों और स्थानीय निकाय चुनाव में चुन हए जनप्रतिनिधियों को एक शपथपत्र देना होगा कि वो नियम का उल्लंघन नहीं करेंगे.
- शपथपत्र देने के बाद अगर वह तीसरा बच्चा पैदा करते हैं तो ड्राफ्ट में सरकारी कर्मचारियों का प्रमोशन रोका जायेगा.
- दो बच्चों की पॉलिसी का पालन करने वाले और स्वैच्छिक नसबंदी करवाने वाले अभिभावकों को सरकार खास सुविधाएं देगी.
- ऐसे सरकारी कर्मचारियों को ददो एक्स्ट्रा सैलेरी इंक्रीमेंट, प्रमोशन 12 महीने का मातृत्व या पितृत्व अवकाश, जीवनसाथी को बीमा कवरेज, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट, पीएफ में एंप्लायरकॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं मिलेगी.
- जिनके पास सरकारी नौकरी नहीं है, ड्राफ्ट में उन्हें पानी, बिजली, होम टैक्स, होम लोन जै..सी कई सुविधाएं देने का प्रस्ताव है.
- दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा. वह व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए आवेदननहीं कर पाएगा और न ही किसी स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ सकेगा.
क्या है जनसंख्या नियंत्रण कानून
भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है. इस मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. आजादी के बाद से भारत की आबादी में काफी बड़ा उछाल देखने को मिला है. इस बढ़ती आबादी को लेकर पिछले कुछ दशकों में चिंता तो जताई गई, लेकिन इसे रोकने के लिए कभी कुछ ठोस प्रयास नहीं किए गए. पिछले करीब 10 साल से मोदी सरकार सत्ता में है, लेकिन लगातार मांग के बावजूद इसे लागू नहीं किया जा सका। जबकि संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल जनसंख्या 142.86 करोड़ पहुंच गई है, जबकि चीन की कुल जनसंख्या 142.57 करोड़ है. यानी चीन के मुकाबले भारत में करीब 30 लाख लोग ज्यादा हो गए हैं. अब आबादी के मामले में भारत के नंबर-1 पायदान पर पहुंचने की खूब चर्चा हो रही है, इसी बीच कुछ लोग जनसंख्या नियंत्रण कानून की बात भी छेड़ने लगे हैं. आने वाले कुछ दिनों में ये एक बड़ा मुद्दा बन सकता है. यह अलग बात है कि भले ही भारत पहली बार जनसंख्या के मामले में दुनिया का नंबर-1 देश बना हो, लेकिन आबादी को नियंत्रण करने की मांग नई नहीं है. जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर पिछले कई दशकों से बहस चल रही है. 1970 के दशक से हम सभी ’हम दो हमारे दो’ का नारा सुनते आए हैं. हालांकि कभी भी किसी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के कानून को लागू करने की हिम्मत नहीं दिखाई. संजय गांधी ने एमरजेंसी के दौरान नसबंदी का अभियान चलाने के निर्देश दे दिए थे. इसके बाद भारत के अलग-अलग शहरों और गांवों में जबरन लोगों को पकड़कर नसबंदी की जाने लगी. एक साल में ही लाखों लोगों की नसबंदी कर दी गई. हालांकि जनसंख्या नियंत्रण के इस तरीके का खूब विरोध हुआ था. जिसका नतीजा ये रहा कि कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार मिली. इसके बाद से किसी भी सरकार ने ऐसा कदम उठाने का सोचा भी नहीं. मोदी सरकार ने जनसंख्या कानून को लेकर साफ रुख कभी नहीं दिखाया. इसे लेकर सरकार के मंत्री अलग-अलग बयान देते रहे. इसे लेकर 2019 में जनसंख्या विनियमन विधेयक लाया गया था. जिसके तहत दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सजा और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित करने का प्रस्ताव रखा गया था. ये एक प्राइवेट मेंबर बिल था, जिसे आरएसएस नेता और बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने राज्यसभा में पेश किया था. इस बिल का जमकर विरोध हुआ था. बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, आजादी के बाद से करीब 35 बार जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बिल पेश किया गया, लेकिन आज तक इसे कानूनी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है.पीएम मोदी भी कर चुके है जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बढ़ती जनसंख्या को लेकर लाल किल से बयान दिया था. 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम ने देश के लोगों से छोटे परिवार की अपील की. उन्होंने कहा, “हमारे यहां बेतहाशा जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये जनसंख्या विस्फोट हमारे लिए, हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक नए संकट पैदा कर सकता है.“ इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि बच्चे के जन्म से पहले एक शिक्षित वर्ग उसकी जरूरतों के बारे में सोचता है. इससे न सिर्फ आपका बल्कि देश का भी भला होता है.
क्यों आ रही अड़चन
जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर तमाम अल्पसंख्यक समुदाय लगातार मुखर रहे हैं. खासतौर पर मुस्लिम नेताओं का कहना है कि ये कानून नहीं बनाया जाना चाहिए. वहीं संविधान के जानकारों का मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बजाय अलग-अलग तरह से लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है. लोगों को बैंक लोन, ब्जाय, रोजगार जैसी अलग-अलग चीजों में राहत देकर इसे ठीक किया जा सकता है. जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करने के खतरों की बात करें तो इससे असुरक्षित गर्भपात के मामलों में भारी उछाल आ सकता है. क्योंकि देश में कई हिस्से ऐसे हैं, जहां गर्भनिरोधक सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं, ऐसे में सजा से बचने के लिए महिलाओं को जबरन गर्भपात कराया जा सकता है. असुरक्षित गर्भपात से महिलाओं की जान को खतरा पैदा हो सकता है. इसी तरह के कुछ और खतरे भी हैं, जिन्हें कानून बनाने से पहले देखना और समझना जरूरी होगा.
ये हैं चुनौतियां
भारत की जनसंख्या साल 2024 में 1,441.7 हो गई है और अगर जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार इसी तरह की रही, तो अगले 77 सालों में भारत की आबादी दोगुनी हो जाएगी. यह सूचना सामने आई है यूनाइडेट नेशन की रिपोर्ट से. यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड की नवीनतम रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तो कई सावधान करने वाले आंकड़े मौजूद हैं. यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी है, जो लोगों को जनसंख्या वृद्धि और उससे उत्पन्न चुनौतियों के बारे में शिक्षित करती है. आखिर किस तरह भारत की आबादी अगले 77 साल में दोगुनी हो जाएगी इस जानने के लिए कुछ आंकड़ों को भी जानना बहुत जरूरी है. रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल आबादी का 68.7 फीसदी 15-64 साल की आयुवर्ग का है. 0-14 साल की आबादी का प्रतिशत 24.2 प्रतिशत है, जबकि 7.1 प्रतिशत आबादी 65 साल से अधिक आयुवर्ग के लोगों की है. इसमें 10-19 साल की आबादी 17 प्रतिशत है, जबकि 10-24 साल की आबादी 26 प्रतिशत है. कुल आबादी में एक महिला की औसत आयु 74 वर्ष और पुरुष की 71 साल है, वहीं एक महिला पर कुल प्रजनन दर 2 है, यानी औसतन एक महिला दो बच्चों को जन्म देती है. संस्थागत प्रसव के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में साल 2004 से 2020 के बीच 89 प्रतिशत प्रसव कुशल और ट्रेंड लोगों की देखरेख में हुए हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रति एक लाख बच्चों पर 103 बच्चों की मौत प्रसव के दौरान हो रही है. यह आंकड़ा पहले के आंकड़ों से बेहतर है. बात अगर परिवार नियोजन की करें, तो देश में 15-49 साल की 78 प्रतिशत महिलाएं परिवार नियोजन के आधुनिक तरीके अपनाती हैं. वहीं अगर किसी भी तरीके की बात करें तो 51 प्रतिशत महिलाएं परिवार नियोजन के तरीकों को अपना रही हैं. वहीं विवाहित और विवाह योग्य महिलाओं में यह आंकड़ा 68 प्रतिशत का है. परिवार नियोजन के आधुनिक तरीकों से संतुष्टि की अगर बात करें तो यह 78 प्रतिशत है.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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