सीहोर : 11 सौ से अधिक पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर लिया रुद्राभिषेक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 28 जुलाई 2024

सीहोर : 11 सौ से अधिक पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर लिया रुद्राभिषेक

Rudrabhishek-sehore
सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी श्रावण मास के पावन अवसर पर शहर के माता मंदिर चौराहा गंज स्थित सेन कुटी में माता मंदिर चौराहा उत्सव समिति के तत्वाधान में 11 सौ से अधिक पार्थिव शिव लिंग का निर्माण के अलावा रुद्राभिषेक किया गया। इस मौके पर नगर पालिका अध्यक्ष प्रिंस राठौर सहित बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी मौजूद थे। इस संबंध में कार्यक्रम के अध्यक्ष युवा समाजसेवी प्रिंस राठौर छोटा ने बताया कि माता मंदिर चौराहा उत्सव समिति के तत्वाधान में पार्थिव शिवलिंग निर्माण कार्यक्रम का आयोजन रविवार को किया गया था। इस मौके पर गुरुदेव महादेव शर्मा और पंडित वासुदेव शर्मा आदि के मार्गदर्शन में किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में क्षेत्रवासियों ने पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण के उपरांत अभिषेक किया गया।


पंडित श्री शर्मा ने बताया कि रुद्राभिषेक करना शिव आराधनाओ में सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रुद्राभिषेक के रुद्राष्टक अध्यायी पाठ के मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में आया है। रुद्र का मतलब होता है कि जो संसार के जीवों के कष्टो को देखकर जिसका हृदय द्रवित हो जावे, उसे रूद्र कहते हैं। संसार में भगवान शिव इतने भोले भंडारी हैं कि वह अपने भक्तों का दुख कष्ट देख नहीं सकते इसीलिए शास्त्रों में उनका नाम रूद्र रखा है ऐसे रुद्र का अभिषेक पूजन मनुष्य के लिए अत्यंत कल्याण कारी होता है रुद्राभिषेक का मतलब है? भगवान रुद्र के ऊपर जल की धारा लगाकर रुद्राष्टक अध्यायी के मंत्रों से किसी भी वस्तु में भगवान शिव को अभीषिक्त करना, जिससे वह कल्याण करने के लिए भक्तों के सामने प्रकट हो जावें और उन्हें अभी अविचल भक्ति प्रदान कर उनके कष्टों का निवारण करें। रुद्राष्टाध्यायी के मित्रों द्वारा भगवान शिव के ऊपर जो धारा गिरती है।

कोई टिप्पणी नहीं: