बांग्लादेश में गुस्सा तो शेख हसीना के खिलाफ था, तख्ता पलट तो शेख हसीना का हुआ, लेकिन हसीना के विरोधियों और कट्टरपंथियों के गुस्से के शिकार बांग्लादेश के हिंदू परिवार हो रहे हैं. मतलब साफ है बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन तो बहाना था, मकसद हिन्दुओं पर हमले का है। उनके घरों-दुकानों में लूटपाट, महिलाओं संग बलातकार सहित उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है. मंदिरों को जमीनदोंज किया जा रहा है। वहां के क्षेत्रीय एजेंसियों की मानें तो इस दंगे में सैकड़ों लोगों की अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या भारत बांग्लादेश हिंसा पर कुछ नहीं बोल सकता? क्या वहां के जमात-ए-इस्लामी जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हो सकती? क्या गाजा की चिंता करने वाले भारतीय सियासतदान बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार की चिंता नहीं कर सकते? क्या बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा पर आवाज नहीं उठाना चाहिए? क्या ‘भय, भ्रम और अफवाह फैलाना वाले सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए? क्या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री को बधाई देने वाले वहां के हिंदुओं की सुरक्षा की आवाज नहीं उठा सकते? क्या मुहब्बत की दुकान चलाने की आड़ में हिंदुओं की कत्ल-ए-आम उन्हें रास आ रहा है? माना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले के विरोध में आवाज उठाई और मोहम्मद यूनुस से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया, लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए वहां के पीएम का अल जजीरा जैसा आंतकी संगठन पर इस अपील का कोई असर नहीं होगा
यूक्रेन के डोनस्क और लुहांस्क में जिस तरह रूसी भाषियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षित क्षे़ बनाया गया है उसी तरह भारत के निकट बांग्लादेश में हिंदुओं की घनी आबादी वाले क्षेत्र स्थापित किए जाएं. अगर हम यह नहीं कर सके तो बांग्लादेश में घटती हिंदओं की संख्या को विलुप्त होते देखेंगे. यही नहीं संभवतः उनकी सुरक्षा में हमारे समूचे पूर्वोत्तर के भविष्य की सुरक्षा भी हो सकेगी. फिलहाल भारत के लिए कोई मुश्किल नहीं है. क्योंकि भारतीय सेना बांग्लादेश से बहुत ताकतवर है. भारत अब परमाणु संपन्न देश भी है. भारत चाहे तो दबाव बनाकर बांग्लादेश के हिंसाग्रस्त इलाकों में फंसे हिंदुओं और अवामी लीग समर्थकों को वहां से निकाल कर भारतीय सीमा के निकट बांग्लादेशी भूमि पर ही राहत शिविरों मे टिकाया जा सकता है। कट्टरपंथियों के अत्याचार से नमशूद्रों को बचाने के लिए ही हरिचंद ठाकुर ने 19वीं सदी के मध्य में फरीदपुर (तत्कालीन पूर्वी बंगाल) में मतुआ पंथ की स्थापना की थी। मतुआ यानी जो मानवतावादी मतवाले हैं। कट्टरपंथियों के अत्याचार से बचने के लिए गुरुचंद ठाकुर के पौत्र प्रमथ रंजन विश्वास 1948 में बंगाल के बनगांव आ गए थे। उन्होंने बंगाल में मतुआ धर्म महासंघ को संगठित किया। मतुआ धर्म महासंघ बंगाल में अपने डेढ़ करोड़ अनुयायियों के साथ आज भी नमशूद्र शरणार्थियों के लिए संघर्षरत है। विभाजन के समय कट्टरपंथियों के अत्याचार रोकने के लिए ही जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान सरकार में शामिल हुए। जब पाकिस्तान में कानून एवं श्रम मंत्री बनने के बाद भी वह अत्याचार नहीं रोक पाए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। नौ अक्टूबर, 1950 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को भेजे त्यागपत्र में मंडल ने लिखा था कि पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर मुस्लिम कट्टरपंथियों के जैसे हमले बढ़ते जा रहे हैं, उससे उनका मंत्री पद पर बने रहना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा था कि देश विभाजन के बाद 50 लाख हिंदू पलायन करने को विवश हुए हैं। यह अलग बात है कि हिंदुओं का पलायन उसके बाद भी थमा नहीं। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के अत्याचार से तंग आकर 1974 से 1991 के बीच रोज औसतन 475 लोग यानी हर साल एक लाख 73 हजार 375 हिंदू हमेशा के लिए बांग्लादेश छोड़ने को बाध्य हुए। यदि उनका पलायन नहीं हुआ होता तो आज बांग्लादेश में हिंदू नागरिकों की आबादी सवा तीन करोड़ होती। सांप्रदायिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक हमले, नौकरियों में भेदभाव, दमनकारी शत्रु अर्पित संपत्ति कानून और देवोत्तर संपत्ति पर कब्जे ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को कहीं का नहीं छोड़ा है।
भारत से हसीना के रहे अच्छे संबंध
देखा जाएं तो बांग्लादेश की सेना हो या खालिदा जिया, सबको है भारत की जरूरत इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शेख हसीना भारत के प्रति पूर्ण समर्पित थीं. चीन और अमेरिका के दबाव में भी उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया जो भारत के हितों के विपरीत जाता. पूर्वोत्तर के आतंकवाद को पस्त करने में भी शेख हसीना ने मोदी सरकार की बहुत मदद की. पूर्वोत्तर के तमाम आतंकी संगठनों के ट्रेनिंग ककैंप, जो बांग्लादेश में चल रहे थे, उन्हें खत्म करने में उन्होंने मदद की. कई कुख्यात आतंकियों को भारत को बांग्लादेश ने सौंप कर आतंकवाद पर लगाम लगाने काम किया. जाहिर है कि अभी कुछ साल अवामी लीग फिर से सत्ता में आने से रही. बीएनपी की खालिदा जिया शुरू से ही पाकिस्तान और अमेरिका समर्थक रही हैं. उनकी पूरी राजनीति भारत विरोध पर टिकी रही है. इसलिए ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए की वो भारत विरोधी रणनीति पर ही काम करेंगी. पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कुछ भी अससंभव नहीं है. अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ऐसा महसूस किया जा रहा था कि भारत के लिए परेशानी और बढ़ेगी. पर आज भारत अपने पड़ोसियों में सबसे ज्यादा निश्चिंत शायद अफगानिस्तान से ही है. इसी तरह से अगर भविष्य में खालिदा जिया अगर सत्ता में आती हैं तो उनकी भी मजबूरी होगी भारत से रिश्ते सुधारना होगा. अगर सैन्य शासन कंटीन्यू होता है तो उसे भी भारतीय समर्थन की जरूरत होगी. दूसरी तरफ जिले के लिहाज से देंखे तो बांग्लादेश के चार जिले ऐसे हैं जहां की आबादी 20 फीसदी से अधिक है. ढ़ाका डिवीजन के गोपालगंज जिले में हिंदुओ की आबादी 26 फीसदी है, वहीं खुलना जिले में 20 फीसदी से अधिक हिंदू रहते हैं. रंगपुर डिवीजन के ठाकुरगांव जिले में 22 फीसदी हिंदू निवास करते हैं. स्यालहाट के मौलवी बाजार जिले में 24 फीसदी हैं.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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