सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर भागवत कथा के पहले दिन बताया कथा का महत्व - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 22 अगस्त 2024

सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर भागवत कथा के पहले दिन बताया कथा का महत्व

  • व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है-पंडित शिवम मिश्रा

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सीहोर। भगवान के चरणों में जितना समय बीत जाए उतना अच्छा है। इस संसार में एक-एक पल बहुत कीमती है। जो बीत गया सो बीत गया। इसलिए जीवन को व्यर्थ में बर्बाद नहीं करना चाहिए। भगवान द्वारा प्रदान किए गए जीवन को भगवान के साथ और भगवान के सत्संग में ही व्यतीत करना चाहिए। भागवत प्रश्न से प्रारंभ होती है और पहला ही प्रश्न है कि कलयुग के प्राणी का कल्याण कैसे होगा। इसमें सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की चर्चा ही नहीं की गई है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि बार-बार यही चर्चा क्यों की जाती है, अन्य किसी की क्यों नहीं। इसके कई कारण हैं जैसे अल्प आयु, भाग्यहीन और रोगी। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में बुधवार से आरंभ हुई संगीतमय भागवत कथा के पहले दिन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के भतीजे पंडित शिवम मिश्रा ने कहे। कथा के दौरान आशीर्वाद देने के लिए भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा के अलावा उनके पिता श्री दीपक मिश्रा, विठलेश सेवा समिति की ओर से पंडित विनय मिश्रा, समीर शुक्ला सहित अन्य उपस्थित थे। पंडित शिवम मिश्रा ने बुधवार से भागवत कथा के साथ यहां पर सुंदर भजनों की प्रस्तुती प्रदान कर यहां पर आए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। गुरुवार को  कथा के दूसरे दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह उत्सव मनाया जाएगा।  कथा के पहले दिन उन्होंने कहा कि इस संसार में जो भगवान का भजन न कर सके, वह सबसे बड़ा भाग्यहीन है। भगवान इस धरती पर बार-बार इसलिए आते हैं ताकि हम कलयुग में उनकी कथाओं में आनंद ले सकें और कथाओं के माध्यम से अपना चित्त शुद्ध कर सकें। व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनो।


आत्मदेव ब्राह्मण की कथा सुनाई

आत्मदेव ब्राह्मण की कथा सुनाई, जिसे सुन श्रोता श्रद्धालु मंत्रमुग्ध रहे। उन्होंने बताया कि नदी के तट पर रहने वाले ब्राह्मण आत्मदेव बड़े ज्ञानी थे। उनकी पत्नी धंधुली कुलीन और सुंदर थी, लेकिन अपनी बात मनवाने वाली क्रुरु और झगड़ालु थी। धन वैभव से संपन्न आत्मदेव को कोई संतान नहीं होने का बड़ा ही दुख था, अवस्था ढल जाने पर संतान के लिए वह दान करने लगे. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ तो प्राण त्याग के लिए वन चले गये। जब अपने जीवन का अंत करने जा रहे थे तो एक रास्ते में संत महात्मा मिले, संत के पूछने पर उन्होंने संतान के बिना जीवन सूना-सूना लगने की बात कही गयी. बहाने के लिए एक गाय रखी थी सोचा था कि बछड़े होंगे उनके साथ अपना मन बहला लूंगा, लेकिन वह भी बांझ निकली। संतान की इच्छा के हट करने पर महात्मा द्वारा आत्मदेव को एक फल दिया गया। आत्मदेव की पत्नी धंधुली ने संदेह की वजह से फल स्वयं नहीं खाया. बहन जो गर्भवती थी जब घर आई तो उसने पूरी बात बताई जिसपर बहन ने कहा कि मेरे पेट में जो बच्चा है वह तुम ले लेना फल गाय को खिला दो। आत्मदेव की पत्नी ने फल गाय को खिला दिया। कुछ माह बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया. जिसका शरीर पूरा मनुष्य का था, कान गाय के तरह थे। जिसका का नाम गोकर्ण रखा गया। धंधुली की बहन ने जिस बच्चे को जन्म दिया उसका नाम धुंधकारी रखा गया। गोकर्ण ज्ञानी और धर्ममात्मा हुआ और धुधंकारी दुराचारी, मदिराचारी और दुरात्मा निकला। बुरी आदत में पड़कर चोरी करने लगा और उसकी हत्या हो गयी। बाद में वह प्रेत बना जिसकी मुक्ति के लिए गोकर्ण महाराज ने भागवत कथा का आयोजन किया। श्रीमदभागवत कथा के श्रवण करने से धुंधकारी को प्रेत योनी से मुक्ति मिली। भागवत कथा कुबेरेश्वरधाम पर दोपहर एक बजे से चार बजे तक जारी रहती है। कथा में भगवान शिव और माता पार्वती विवाह, भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव सहित अन्य भी आगामी दिनों में मनाया जाएगा।

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