सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर मनाया गया भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 24 अगस्त 2024

सीहोर : कुबेरेश्वरधाम पर मनाया गया भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव

  • सैकड़ों की संख्या में आए श्रद्धालुओं को किया प्रसादी का वितरण
  • भगवान राम और कृष्ण जैसे व्यक्तित्व के लिए बच्चों को उसी तरह के संस्कार देने होंगे : पंडित शिवम मिश्रा

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सीहोर। भगवान राम और कृष्ण जैसे व्यक्तित्व के लिए बच्चों को उसी तरह के संस्कार देने होंगे और यह कार्य माताओं को करना होगा।  मनुष्य के जीवन में मां, महात्मा और परमात्मा का विशेष स्थान होता है। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन पंडित शिवम मिश्रा ने कहे। कथा के दौरान कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा ने यहां पर जारी कथा के दौरान मधुर भजनों की प्रस्तुति दी। विठलेश सेवा समिति की ओर से पंडित दीपक मिश्रा, पंडित विनय मिश्रा, पंडित समीर शुक्ला, जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, कथा के यजमान आकाश शर्मा, महेन्द्र शर्मा, मंत्री परिवार, यश अग्रवाल, भूपेन्द्र शर्मा, अभिषेक शर्मा आदि ने आरती की। श्रीमद् भागवत कथा में भगवान श्रीराम और श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। इसमें श्रद्धालु जमकर थिरके। भगवान श्री कृष्ण के जयकारों तथा नंद के आनन्द भयो, जय कन्हैयालाल की जय से गूंजायमान हो उठा। पंडित श्री मिश्रा ने शनिवार को भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा जब-जब अत्याचार और अन्याय बढ़ता है, तब-तब प्रभु का अवतार होता है। प्रभु का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है। जब कंस ने सभी मर्यादाएं तोड़ दी तो प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। यहां पर जैसे ही श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग कथा में आया तो श्रद्धालु हरे राधा-कृष्ण के उदघोष के साथ नृत्य करने लगे।  


राजकुमारों की बाललीला का सुंदर वर्णन किया

पंडित श्री मिश्रा ने अयोध्या में चारों राजकुमारों की बाललीला का सुंदर वर्णन किया। उन्होंनें कहा कि चारों राजकुमार सब के चहेते थे। चारों बालक राजमहल में जब पैरों में पायल पहनकर चलने की कोशिश करते तो तीनों माताएं प्रसन्नता से भर जाती। इधर राजा दशरथ भी अपने चारों पुत्रों को बड़ा होता देख आनंद पाते। इन सबमें बालक राम का आकर्षण ही कुछ और था। जैसे-जैसे चारों बड़े होते गए तीनों अनुज अपने बड़े भाई राम के प्रति और लगाव रखने लगे।  राजकुमारों की गुरुवरों की देखरेख में शिक्षा दीक्षा का कार्यक्रम तय किया गया और महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से उन्हें पढऩे के लिए विश्वामित्र के गुरुकुल भेजा जाता है। अस्त शस्त्रों की सीख के बाद जब राजकुमार गुरु के साथ वन उपवन देखने जाते हैं तो एक उजाड़ आश्रम की तरफ उनका ध्यान जाता है। विश्वामित्र बताते हैं कि यह महर्षि गौतम का आश्रम था। उन्होंने पूरी कहानी सुनाते हुए बताया कि किस तरह महर्षि गौतम ने श्राप देकर अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बना दिया। ये कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी। तुम इस शिला को छुओ ताकि वह श्राप मुक्त हो जाए। यहां राम अहिल्या का उद्धार करते हैं।

 

जीव अपना तो कल्याण कर ही सकता

पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा में लिखें मंत्र और श्लोक केवल भगवान की आराधना और उनके चरित्र का वर्णन ही नहीं है बल्कि कथा मेंं वह सारे तत्व हैं जिनके माध्यम से जीव अपना तो कल्याण कर ही सकता है साथ में अपने से जुडे हुए लोगों का भी कल्याण होता है। जीवन में व्यक्ति को अवश्य ही भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। बिना आमंत्रण के भी अगर कहीं भागवत कथा हो रही है तो वहां अवश्य जाना चाहिए। इससे जीव का कल्याण ही होता है। भागवत कथा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव वर्णन किया। जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण से संस्कार की सीख लेने की बात कही। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि वह परमात्मा हैं उसके बाद भी वह अपने माता पिता के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे। यह सीख में भगवान श्रीकृष्ण से सभी को लेनी चाहिए।

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