रामपुर/मधवापुर (मधुबनी) यह कहना कुछ बड़ा ही कठिन और जोखिम भरा है कि इन्सान कब किस पथ का पथिक बन जायेगा। मानस में कहा गया है कि होइहि सोई जो राम रचि राखा,को करि तर्क बढ़ावहि साखा।हम सब जीव ईश्वर के हाथ के कठपुतला हैं।डाॅ.रमेश कुमार मिश्र भोजपुर जिला के नऊआँ गाँव में जन्मे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (हिन्दी) प्रथम श्रेणी(1992) से उत्तीर्ण कर वही "मध्यवर्गीय मनोवृत्ति और अज्ञेय के उपन्यास"विषय पर सन् 1994 में पी-एच.डी.की उपाधि प्राप्त करने से पूर्व और बाद के कालों में स्थानीय समाचार पत्रों एवं आकाशवाणी केन्द्र वाराणसी में जहाँ एक ओर समसामयिक आलेखों एवं कहानियों के जरिये निरन्तर बने रहे वही तीन उपन्यासों की भी रचना कर डाले। डाॅ. रमेश कुमार मिश्र का प्रथम उपन्यास "नया विहान"(1992) एम.ए. अंतिम वर्ष में वाराणसी से प्रकाशित हुआ।पुन:पी-एच. डी. करने के दौरान दूसरा उपन्यास"अंधेरे का फकीर"(1994) एवं तीसरा उपन्यास (1997) में "आकाश चुप क्यों" नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ।शोध-कार्य सम्पन्न करने के बाद आप नई दिल्ली, फरीदाबाद (तिगाँव), और मुम्बई में कुछ दिनों तक अध्यापन ,लेखन और पत्रकारिता की सेवा करने के बाद डाॅ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या से सम्बद्ध वित्त रहित डिग्री काॅलेज महिला महाविद्यालय बेला परसा अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश में प्राचार्य पद पर सन् 2018 से आज तक आसीन हैं। डाॅ.रमेश कुमार मिश्र ने बताया कि अब पूर्ण रूप से प्रभु श्रीराम का शरण गहकर राम कथा के माध्यम से सनातन धर्म को जागृत करना है। राम नाम में ही पूर्ण विश्राम है।हर घर राम हर घर रामायण को पहुँचाना ही एकमात्र ध्येय है।राम ही तो पूर्ण सनातन संस्कृति व सभ्यता हैं।जहाँ राम नहीं वहाँ रावण का निवास होता है। समाज से रावणी प्रवृति को राम कथा से मिटाना है।कुल मिलाकर रमेश कुमार मिश्र के संदर्भ में कह सकते हैं कि आपका जीवन बहु आयामों का संगम है।
गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024
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प्रध्यापक लेखक पत्रकार से अध्यात्म की ओर "डाॅ.रमेशाचार्य बनाम डाॅ. रमेश कुमार मिश्र "
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