आलेख : पुनरावृत्ति ना हो, के लिए कुचलना ही होगा संभल के दोषियों का फन? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 28 नवंबर 2024

आलेख : पुनरावृत्ति ना हो, के लिए कुचलना ही होगा संभल के दोषियों का फन?

यूपी के संभल में वर्चस्व के लिए साजिश के तहत जिस तरह हिंसा के लिए भड़काया गया, उससे साफ है सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले गुंडों की पार्टी आगे भी इससे बड़ा कुछ कर सकती है। सर्वे के दौरान सुनियोजित हिंसा को खत्म करने के बजाएं गुंडो के मुखिया द्वारा एक वर्ग विशेष की वकालत करना इसकी चीख-चीख कर गवाही भी दे रही है। मोबाइल नेटवर्क, डेटा, सोशल मीडिया, सीसीटीवी फुटेज, ड्रोन फुटेज आदि से स्पष्ट हो चुका है घरों की छतों पर ईंट, पत्थर व कांच की बोतलें एकत्र की गई थीं। महिलाओं को दो टूक संदेश था यदि मोर्चा लेने के दौरान पुलिस की जवाबी कार्रवाई में घिर जाएं तो बचाव के लिए छतों से वार कर देना और हुआ भी यही। उपद्रवियों के हावी होने पर पुलिस ने जब सख्ती की तो छतों से महिलाओं ने मोर्चा संभाला और अंधाधुध पत्थर बरसाएं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या इस तरह की हिंसक घटनाओं की पनरावृत्ति ना हो, के लिए योगी सरकार का बुलडोजर एक बार फिर गरजेगा? हालांकि कार्रवाई में योगी सरकार एक्शन में तो है, लेकिन कार्रवाई ऐसी करनी ही पडेगी, जिससे दंगाईयों एवं उन्हें पनाह व उकसाने वालो की सात पीढ़ी भी साजिश तो दूर साजिश की सपना भी देखने में रुह कांपें 


Sambhal-violance
फिरहाल, यूपी के संभल में कोर्ट के आदेश पर हुए जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान भड़की हिंसा के बाद पुलिस प्रशासन लगातार कार्रवाई कर रही है। इस मामले में 27 आरोपी पकड़े जा चुके हैं। इनमें से 3 नाबालिग भी हैं। 74 अन्य दंगाइयों की पहचान की गई है जो कि फरार हैं। इनकी तलाश जारी है। इस बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार संभल में उपद्रव करने वाले आरोपियों पर सख्त एक्शन लेने के मूड में है। संभल के पत्थरबाजों और उपद्रवियों पर योगी सरकार कैसे एक्शन लेगी इसकी जानकारी सामने आई है। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, सार्वजनिक स्थानों पर इन पत्थरबाजों और उपद्रवियों के पोस्टर लगेंगे। इनसे नुकसान की वसूली भी होगी। इसके साथ ही इनपर इनाम भी जारी किया जा सकता है। यूपी सरकार पहले से ही उपद्रवियों और अपराधियों के खिलाफ नुकसान की वसूली और पोस्टर का अध्यादेश जारी कर चुकी है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा वाले दिन जमा मस्जिद के आसपास भीड़ किसके कहने पर इकट्ठा हुई, की जानकारी हो चुकी है। मौजूद भीड़ को हिंसा के लिए किसने उकसाया, इसका खुलासा हो चुका है। बता दें, संभल में कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस की मौजूदगी में मुगलों के समय की मस्जिद का सर्वेक्षण हो रहा था। इस दौरान कई लोग सर्वेक्षण का विरोध करने आ गए और पुलिसकर्मियों के साथ उनकी झड़प हो गई। इस झड़प में चार लोगों की मौत हुई और करीब 20 सुरक्षाकर्मियों सहित कई अन्य लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद से ही यूपी की सियासत गरमाई हुई है। अलग-अलग दलों के नेता संभल हिंसा को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि अराजक तत्वों ने पहले से ही इस हिंसा की तैयारी कर रखी थी। अब तक पुलिस ने 27 आरोपियों की गिरफ्तारी करने के साथ ही 74 दंगाइयों की पहचान की है। हालांकि ये आरोपी अब भी फरार चल रहे हैं। पुलिस इन्हें पकड़ने के लिए लगातार दबिश दे रही है।


यहां जिक्र करना जरुरी है कि संभल की जामा मस्जिद को लेकर एक अर्से से यह कहा जा रहा है कि यहां पहले भगवान विष्णु के नाम का हरिहर मंदिर था जिसे बाबर के आदेश पर तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई गई। ऐसा कई इतिहासकार भी कहते हैं। दावा है कि इस प्राचीन मंदिर के शिखर को 15वीं सदी में आक्रमणकारी सुल्तान महमूद बेगड़ा ने ध्वस्त कर वहां एक पीर की दरगाह बनवा दी थी। दोनों पक्षों के बीच लंबी बातचीत के बाद मंदिर के शिखर पर ध्वज फहराने की सहमति बनी और इस तरह सैकड़ों साल बाद 2002 में मंदिर के शिखर पर भगवा ध्वज फहराया गया। मंदिर की जगह मस्जिद का निर्माण कराए जाने के दावे के आधार पर कुछ लोग स्थानीय अदालत गए। 19 नवंबर को अदालत ने सर्वे के आदेश दिए। आदेश के बाद सर्वे कराया जा रहा था। सर्वे का काम उसी दिन शाम को शुरू हो गया, लेकिन अंधेरा होने के कारण वह पूरा नहीं हो पाया और यह तय हुआ कि आगे फिर किसी दिन होगा। इसे रोकने के लिए ऊपरी अदालत जाने का रास्ता खुला था। लगता है कि उसका सहारा लेने के बजाय कुछ लोगों ने पत्थरबाजी करना बेहतर समझा। पता नहीं संभल में मस्जिद के सर्वे को लेकर क्या अफवाह उड़ाई गई, लेकिन यह तो साफ ही है कि सर्वे के बाद भी यथास्थिति में कोई बदलाव होने वाला नहीं था। आखिर जब अयोध्या में मंदिर के अकाट्य प्रमाण मिलने के बाद भी ऐसा नहीं हो सका तो भला संभल में कैसे हो जाता? यह एक तथ्य है कि ज्ञानवापी और भोजशाला के सर्वे के बाद भी यथास्थिति कायम बावजूद पत्थरबाजी के बीच पुलिस के वाहनों को भी निशाना बनाया गया और गोलीबारी भी की गई। पुलिस की मानें तो जो चार लोग मरे, वह उसकी गोली से नहीं मरे। पता नहीं सच क्या है। अब इस पर खूब बहस हो रही है कि हिंसा क्यों हुई और किसने की? शायद इसका पता चल जाए, लेकिन इससे वे वापस नहीं आने वाले, जिनकी जान चली गई।


संभल की इस मस्जिद के पहले इस तरह के आदेश पहले वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के लिए भी दी गई थी. यह अधिनियम धार्मिक स्थलों के स्वरूप में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को प्रतिबंधित करता है और यह प्रावधान करता है कि 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसे बनाए रखा जाएगा. पर इस अधिनियम में दिए गए कुछ अपवादों को न्यायालयों ने अपने अपने हिसाब व्याख्यायित किया है. इस आदेश के बाद जगह-जगह न्यायालय के आदेश पर ही सर्वे किया जा रहा है। मतलब साफ है बाबरी-अयोध्या, ज्ञानवापी व मथुरा जैसे विवाद आगे भी आयेंगे। यदि उपद्र्रवियों की उग्रवादी विचार व हरकतों पर नकेल नहिं कसा गया तो ये मनबढ़ आगे भी यूपी की शांति व अमन-चैन छिन सकते है।  ड्रोन कैमरे से बनाई गई वीडियो में साफ दिख रहा है, जामा मस्जिद के पिछले हिस्से में स्थित हाफिजों वाली मस्जिद के पास एकत्र भीड़ वहां पहुंची थी, सभी के हाथ में पत्थर थे और पहले उन्होंने निजी वाहनों में तोड़फोड़ शुरू की। इस समय तक पुलिस और भीड़ के बीच करीब 30 मीटर की दूरी थी। तोड़फोड़ के बाद भीड़ उग्र हो गई और इसके बाद ही आगजनी की गई। जब पुलिस ने मोर्चा संभाला तो भीड़ पथराव और फायरिंग करती हुई उसी सड़क से लौटी जिससे वह जामा मस्जिद तक पहुंचे थे। अंदेशा है कि इसी भीड़ ने नखासा तिराहा और हिंदूपुरा खेड़ा में पुलिस पर पथराव किया। शहर के अन्य किसी इलाके में पुलिस से झड़प नहीं हुई। इस पूरे घटनाक्रम की भी पुलिस-प्रशासन द्वारा समीक्षा की जा रही है।


जामा मस्जिद और नखासा तिराहा पर जो वाहनों में आग लगाई गई थी या तोड़फोड़ की गई थी उसका तकीनीकी मुआयना एआरटीओ द्वारा किया गया है। इसकी रिपोर्ट बनने के बाद उपद्रवियों से वसूली की जाएगी। पुलिस के अनुसार तय तैयारी के अनुसार ही पहले से घरों की छतों पर ईंट, पत्थर व कांच की बोतलें एकत्र की गई थीं। महिलाओं को दो टूक संदेश था कि यदि मोर्चा लेने के दौरान पुलिस की जवाबी कार्रवाई में घिर जाएं तो बचाव के लिए छतों से वार कर देना। जब उपद्रवियों के हावी होने पर पुलिस ने सख्ती की तो छतों से महिलाओं ने मोर्चा संभाला। पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों व कर्मचारियों पर हमला बोल दिया। ईंट, पत्थर व कांच की बोतलों से वार किया। इस पर पुलिस तितर-बितर हुई और मौका पाकर उपद्रवियों ने फायरिंग शुरू कर दी। आरोपितों से सरगना व हिंसा से जुड़े प्रमुख लोगों के नाम भी पता चले हैं। उनकी तलाश भी शुरू कर दी गई है। हिंसा में संभल पुलिस ने जिन 27 आरोपितों को जेल भेजा है, उसमें दो महिलाएं रुकैया, फरमाना व एक युवती नजराना भी शामिल है। इन महिलाओं ने खुलासा किया है कि सब तय योजना अनुसार हुआ। पुलिस पर हमले के बाद हालात बेकाबू होने की स्थिति में महिलाओं को घरों से बाहर निकलकर सामने आना था। यह रणनीति इसलिए थी कि महिलाएं जब आगे आ जाएंगी, तब पुलिस भी एक बार कदम पीछे खींचेगी और उपद्रवी इसका फायदा उठाकर भाग सकेंगे।


इसके अलावा उपद्रवी शाहजहांपुर से भी बुलाए गए थे। संभल हिंसा की दर्ज कराई गई एफआईआर में कहा गया है कि भीड़ में शामिल लोगों ने ललकारा था कि पुलिसवालों को जलाकर मार डालो। साथ ही, मैग्जीन छीनने का मामला भी सामने आया है। खास तौर पर संभल सीओ को टारगेट किया गया। उपद्रवियों की भीड़ की ओर से संभल सीओ पर फायरिंग भी की गई। इससे वह पैर में गोली लगने से घायल हो गए। दरोगा की तरफ से कोतवाली में दर्ज कराए गए केस में सांसद जियाउर्रहमान बर्क, विधायक पुत्र के साथ करीब 800 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि 22 नवंबर को सांसद ने जुमे की नमाज के बाद प्रशासन की अनुमति के बिना भीड़ को एकत्र कर राजनीतिक लाभ के लिए भड़काऊ बयान दिया गया। एफआईआर में कहा गया है कि सर्वे की कार्रवाई को बाधित करने के लिए भीड़ में मौजूद सुहेल इकबाल ने भीड़ को उकसाया। उसने कहा कि भीड़ को यह कहकर उकसाया गया कि जियाउर्रहमान बर्क हमारे साथ हैं। हमलोग भी तुम्हारे साथ हैं। हम तुम्हारा कुछ नहीं होने देंगे। सभी अपने मंसूबों को पूरा करो। इसके बाद उग्र भीड़ ने पथराव और फायरिंग की। आरोपियों ने शाही जामा मस्जिद सर्वे के बाद दरोगा की निजी बाइक और सरकारी लेपर्ड को आग के हवाले कर दिया। उपद्रवियों ने दरोगा की पिस्टल भी छीनने की कोशिश की। इसमें नाकाम रहने पर वे मैग्जीन छीनकर ले गए। दरोगा ने छह लोगों को नामजद करते हुए 150 से 200 अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज कराया है।


पहले भी मनबढ़ करते रहे हैं पत्थरबाजी

यह अजीब और हास्यास्पद है, क्योंकि कथित भ्रमित लोग नकाब पहनकर पत्थरबाजी करते देखे गए। यह पहली बार नहीं, जब सरकार या अदालत के किसी फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरकर हिंसा की गई हो। नागरिकता संशोधन कानून के मामले में भी ऐसा ही देखने को मिला था। तब सड़कों पर उतरकर बड़े पैमाने पर हिंसा की गई थी, जबकि इस कानून का किसी भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं था। इस हिंसा में सरकारी और गैरसरकारी संपत्ति को आग के हवाले किया गया था और दिल्ली में तो शाहीन बाग इलाके में करीब साल भर तक एक प्रमुख सड़क को घेरकर धरना दिया गया था। यही धरना बाद में दिल्ली में भीषण दंगे का कारण बना, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए थे। यह संभव है कि किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय को कोई फैसला रास न आए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह वैसा करे, जो संभल में किया गया। किसी को भी इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती कि यदि कोई काम उसके मन का न हो तो वह मनमानी करे। अगर प्रशासन ने सावधानी बरती होती, तो इतनी भीड़ इकट्ठी नहीं होती और भीड़ को मज़हब के नाम पर भड़काया न गया होता, तो वो पुलिस पर हमला न करती। सर्वे का काम शांति से हो सकता था। इस वक्त उत्तर प्रदेश के संभल में जबरदस्त तनाव है। अब दोनों तरफ के लोग एक दूसरे पर साजिश के इल्जाम लगा रहे हैं। इन्हें कितने भी सबूत दिखा दिए जाएं, कितने भी बयान सुनवा दिए जाएं, कोई नहीं मानेगा। दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहेंगे। दोनों एक दूसरे को दोषी ठहराएंगे।





Suresh-gandhi

सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार 

वाराणसी

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