- बिहार के प्रथम नागरिक, परम आदरणीय राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के कर कमलो द्वारा “BIPEX-2024” के आयोजन का भव्य उद्घाटन
- बिहार के गौरवपूर्ण इतिहास तथा असाधारण व्यक्तित्व को डाक टिकट के माध्यम से रेखांकित करता हुआ अनूठा,अद्वितीय आकर्षक एवं ज्ञानवर्धक डाक टिकट प्रदर्शनी BIPEX-2024.
जारी किए गए विशेष आवरण ‘चाणक्य, चन्द्रगुप्त एवं अर्थशास्त्र’ का विवरण -
चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने अपने गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन में लगभग 321 ईसा पूर्व प्राचीन भारत का एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, एक विलक्षण रणनीतिकार और विद्वान थे, जिन्होंने चंद्रगुप्त को सत्ता तक पहुँचाने में कूटनीति और रणनीतिक बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कौटिल्य का "अर्थशास्त्र," जो प्राचीन भारतीय राज्यशास्त्र, आर्थिक नीति और सैन्य रणनीति पर एक ग्रंथ है, चाणक्य द्वारा रचित माना जाता है और यह राजनीति विज्ञान और प्रशासन में एक बुनियादी पाठ है। चंद्रगुप्त और चाणक्य के गठबंधन ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को एकजुट किया और एक सशक्त केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना की। अर्थशास्त्र शासन पर अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जिसमें गुप्तचरी, कर प्रणाली, और राज्य की भलाई पर जोर दिया गया है जो सत्ता और स्थिरता बनाए रखने में चाणक्य कि व्यवहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है |
जारी किए गए पिक्चर पोस्ट कार्ड ‘बिहार के ऋषियों‘ का विवरण -
ब्रह्मऋषि च्यवन को एक महान वैदिक ऋषि, चिकित्सा व आयुर्वेद के अग्रदूत के रूप में माना जाता है। उनके नाम पर च्यवनप्राश जैसे औषधीय घटक बनाए गए है, जो आज भी आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किए जाते हैं। च्यवन ऋषि का आश्रम आज भी बक्सर में अवस्थित है। महर्षि मंडन मिश्र एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे, उनके द्वारा लिखित "ब्रह्मसिद्धि’’ अद्वैत वेदांत पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। उन्हें आदि शंकराचार्य के साथ अपनी ऐतिहासिक शास्त्रार्थ के लिए जाना जाता है, जो वास्तविकता और आध्यात्मिकता की प्रकृति पर केंद्रित थी। मंडन भारती धाम बिहार के सहरसा जिले के महिषी प्रखंड में स्थित है। महर्षि याज्ञवल्क्य एक सम्मानित ऋषि थे, जो वेदों और उपनिषदों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हें विशेष रूप से "ब्रह्म सूत्र’’ के लिए जाना जाता है। गार्गी और मैत्रेयी जैसी महान महिला विद्वानों के साथ उनके संवाद ने भारतीय दर्शन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उनकी शिक्षाएँ ज्ञान की खोज, आत्म- साक्षात्कार, और व्यक्ति के ब्रह्मांड के साथ एकत्व पर जोर देती हैं। बिहार का मधुबनी जिला उनका गृहनगर है।
महर्षि वात्स्यायन प्राचीन भारतीय दार्शनिक थे, जिन्हें प्रेम-संबंधों और जीवन कला पर आधारित ग्रंथ 'कामसूत्र’ के रचियता के रूप में जाना जाता है। यह ग्रंथ मानवीय संबंधों में सुख, भावनात्मक जुड़ाव और सामाजिक आचरण के महत्व पर जोर देता है। इनका संबंध पाटलिपुत्र (बिहार में आधुनिक पटना) से बताया जाता है। महर्षि विश्वामित्र एक सम्मानित ऋषि है, जिन्हें एक राजा से ब्रह्मर्षि बनने की अपनी असाधारण आध्यात्मिक यात्रा के लिए जाना जाता है। उन्हें "गायत्री मंत्र के रचियता के रूप में भी माना जाता है। विश्वामित्र रामायण महाकाव्य में अपनी भूमिका के लिए भी प्रसिद्ध है, जहाँ वे भगवान राम के मार्गदर्शक बनते हैं और राक्षस राजा रावण को पराजित करने के उनके प्रयास में सहायता करते हैं। उनका आश्रम/मंदिर आज भी बक्सर (बिहार) में स्थित है। महर्षि सुश्रुत, जिन्हें "शल्य चिकित्सा’’ के जनक के रूप में जाना जाता है, प्राचीन भारतीय चिकित्सक और सर्जन थे, जो चिकित्सा और शल्य चिकित्सा, विशेष रूप से प्लास्टिक सर्जरी, मोतियाबिंद सर्जरी, सीजेरियन सेक्शन और एनेस्थीसिया में अग्रणी कार्य के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हें सुश्रुत संहिता के रचयिता के रूप में जाना जाता है। सुश्रुत के योगदान ने आधुनिक शल्य चिकित्सा पद्धतियों की नींव रखी। उनकी चिकित्सा पद्धतियाँ और शिक्षाएँ बिहार सहित पूर्वी भारत तक फैली हुई थीं और वे पटना और वाराणसी में कहीं रहते थे। महर्षि वाल्मीकि प्राचीन भारत के महान ऋषि और संस्कृत महाकाव्य रामायण के रचयिता थे। उन्हें आदि कवि (प्रथम कवि) माना जाता है, और उनकी रचनाएँ धर्म, आदर्श, और नैतिकता के लिए प्रेरणास्रोत हैं। वाल्मीकिनगर (बेतिया) में इनका आश्रम अवस्थित है। ऋषि अष्टावक्र प्राचीन भारत के एक महान मुनि और दार्शनिक थे, जिनके नाम पर प्रसिद्ध अष्टावक्र गीता है, जो आत्मज्ञान और अद्वैत वेदांत पर आधारित शिक्षाओं का संग्रह है। वह अपने शरीर के आठ स्थानों से विकृत होने के बावजूद अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। अष्टावक्र मंदिर उनकी स्मृति में बिहार के कहलगांव के पास पवित्र गंगा नदी के तट पर बनाया गया है। कहलगांव को उनका जन्मस्थान माना जाता है।
‘कबूतर पोस्ट’ (Pigeon Post)
इतिहास में संदेशों के आदान प्रदान का प्रथम उदाहरण कबूतर पोस्ट है | जब पालतू कबूतरों का उपयोग संदेशवाहक के रूप में किया जाता था, जिन्हें आमतौर पर उनकी प्राकृतिक घरेलू क्षमताओं के कारण 'कबूतर पोस्ट' कहा जाता था। कुछ उल्लेखों में यह भी मिला है कि ईसा पूर्व 5 वीं शताब्दी में साइप्रस महान द्वारा कबूतर दूतों का पहला नेटवर्क असीरिया और फारस में स्थापित किया गया था। मध्य युग से उन्नीसवीं सदी तक, कबूतरों का उपयोग वाणिज्य और विशेष रूप से सशस्त्र बलों के द्वारा सन्देश के आदान प्रदान हेतु किया जाता था। 1870 - 1871 में पेरिस पर कब्जे के दौरान, परेशान निवासियों के द्वारा कबूतरों और गुब्बारों के माध्यम से संदेश भेजेने का विवरण बहुत प्रसिद्ध है | कबूतर पोस्ट का एक और महत्वपूर्ण उल्लेख प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मिलता है जब इनका उपयोग महत्वपूर्ण संदेशों को मुख्यालयों तथा अन्य बेसों तक पहुँचाने के लिए किया जाता था जिनकी दूरी 100 मील तक हुआ करती थी। 1915 ई. में पश्चिमी मोर्चे पर दो कबूतर कोर की स्थापना की गई, जिसमें 15 कबूतर स्टेशन शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक में चार (4) पक्षी थे और एक हैंडलर थे | कबूतर दल में अतिरिक्त पक्षियों की भर्ती की गई और सेवा का काफी विस्तार हुआ। युद्ध के अंत तक कबूतर दल में 150 मोबाइल मचानों में 400 आदमी और 22000 कबूतर शामिल थे, ये कबूतर पोस्ट के चरम विकास का समय था |
सिंध डॉक डाक टिकट: भारत का पहला चिपकने वाला डाक टिकट
सिंध डॉक भारत और एशिया का पहला चिपकने वाला डाक टिकट था। यह एक ऐतिहासिक डाक टिकट है जिसने भारत में डाक सेवाओं को आधुनिक बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सिंध डॉक कुछ रोचक तथ्य
● 1 जुलाई, 1852 को सिंध प्रांत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासक सर बार्टले फ्रेरे ने सिंध डॉक को जारी किया।
● उस समय भारत में डाक सेवाएं बहुत विकेंद्रीकृत और अविश्वसनीय थीं। सिंध डॉक को डाक सेवाओं को व्यवस्थित करने और अधिक कुशल बनाने के लिए पेश किया गया था।
● यह एक गोल आकार का डाक टिकट था और इसे सिंध प्रांत में डाक सेवाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
● यह ब्रिटेन में पैनी ब्लैक डाक टिकट के बाद जारी किया गया था और इसने भारत में भी डाक टिकटों के इस्तेमाल को लोकप्रिय बनाया।
● सिंध डॉक को सिंध प्रांत में इसलिए जारी किया गया क्योंकि यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सीधे नियंत्रण में था।
● सिंध डॉक के बाद भारत में कई अन्य प्रकार के डाक टिकट जारी किए गए, जिनमें भारतीय ध्वज वाला डाक टिकट और अशोक स्तंभ वाला डाक टिकट शामिल हैं। सिंध डॉक ने भारत में डाक सेवाओं के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। यह एक ऐसा आविष्कार था जिसने भारत में डाक सेवाओं को अधिक व्यवस्थित और कुशल बनाने का राह खोल दिया।
पैनी ब्लैक डाक टिकट: डाक सेवा का एक क्रांतिकारी अध्याय
पैनी ब्लैक दुनिया का पहला चिपकने वाला डाक टिकट था जिसे सार्वजनिक डाक प्रणाली में इस्तेमाल किया गया। यह एक ऐतिहासिक डाक टिकट है जिसने डाक सेवा के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी थी।
पैनी ब्लैक का कुछ रोचक तथ्य
● 1 मई, 1840 को ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की यूनाइटेड किंगडम ने इस डाक टिकट को जारी किया। हालांकि, इसका इस्तेमाल 6 मई, 1840 से शुरू हुआ।
● उस समय डाक सेवाएं बहुत महंगी और जटिल थीं। डाकिया को पत्र पहुंचाने के लिए पैसे दिए जाते थे और डाक का खर्च प्राप्तकर्ता को देना होता था। पैनी ब्लैक के आगमन से डाक सेवाएं सस्ती और आसान हो गईं।
● यह एक छोटा सा काला रंग का टिकट था जिस पर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का चित्र बना हुआ था। इसे लिफाफे पर चिपकाया जाता था और डाक का खर्च पहले से ही दे दिया जाता था।
● पैनी ब्लैक के आगमन से डाक सेवाएं आम लोगों के लिए सुलभ हो गईं। लोगों ने अधिक से अधिक पत्र लिखने शुरू किए और इससे समाज में संचार के नए रास्ते खुले।
● पैनी ब्लैक ने डाक सेवाओं को आधुनिक बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के समय में पैनी ब्लैक डाक टिकट बहुत दुर्लभ और मूल्यवान हैं।
हरकारा: भारत के डाक तंत्र का एक महत्वपूर्ण अतीत
हरकारा भारत में डाक व्यवस्था के अहम हिस्से थे, जो पैदल संदेश पहुंचाते थे। इनकी पहचान घुंघरू बंधा हुआ भाला तथा पैरों में बंधे हुए कपड़े हुआ करते थे | शेरशाह सूरी के शासन काल में हरकारों के लिए एक सुव्यस्थित तंत्र का व्यवस्था किया गया जिसके तहत ग्रैंड ट्रंक रोड पर सरायों का निर्माण कराया गाया, जहाँ हराकारें यात्रा के दौरान विश्राम किया करते थे | यही सराय समय बीतने के साथ डाकबंगला के नाम से प्रसिद्ध हो गए | मुगल काल में हरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जहां वे संदेशवाहक, सूचना संग्रहकर्ता और सैन्य संदेश वाहक के रूप में कार्य करते थे। अकबर के शासनकाल में डाक व्यवस्था को उन्नत बनाया गया था, जिससे सूचनाएं तेजी से प्रसारित होती थीं और प्रशासन कुशल बनता था। अंग्रेजी शासन के दौरान, डाक व्यवस्था में बदलाव आए और हरकारों की भूमिका कम होती गई। ट्रेन और टेलीग्राफ के आगमन के साथ, आधुनिक डाक व्यवस्था का विकास हुआ। भले ही हरकारे अब नहीं रहे, उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने भारत में संचार क्रांति में अहम भूमिका निभाई थी, और आज भी गांवों में डाकिया की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।
विश्व का प्रथम पूर्व देय डाक टिकट – ताम्र टिकट
31 मार्च 1774 को तत्कालीन पोस्टमास्टर जनरल श्री थॉमस इवांस और तत्कालीन डिप्टी पोस्टमास्टर जनरल श्री चार्ल्स ग्रीम के अगुआई में पोस्ट ऑफिस रेगुलेशन एक्ट, 1774 के अनुसार डाक शुल्क के अग्रिम अदायगी हेतु 1 और 2 आना, मूल्यवर्ग में, सिक्का के आकार के ताम्र टिकट ढाले गये, जिस पर ‘पटना पोस्ट’ टंकित था| इन टिकटों को ‘अजीमाबाद एकन्नी’ और ‘अजीमाबाद दुअन्नी’ के नाम से भी जाना जाता था | 2 आना के टिकट के अग्र भाग पर ‘पटना पोस्ट दो आना’ और पृष्ठ भाग पर फारसी में ‘अजीमाबाद डाक दो अनी’प्रदर्शित था| इन टिकटों को उनके जरी होने के 11 साल बाद, सितम्बर 1785 ई. में अंततः वापस ले लिया गया| यह अनूठा प्रयोग ग्रेट ब्रिटेन में यूनिफार्म पेनी डाक और पेनी ब्लैक की शुरुआत से 55 साल पहले हुआ था|"
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