- मंडन मिश्र- शंकराचार्य पर विशेष आवरण का विमोचन, बिहार के संगीत घराने पर पिक्चर पोस्टकार्ड का अनावरण
- AR-VR के तकनिकी के द्वारा टिकटों की डिजिटल दुनिया देखने कि लगी रही भीड़, बच्चों के जबरदस्त प्रदर्शन नें कार्यक्रम में लगाया चार चाँद
प्रदर्शनी में लगाये गए अत्यंत दुर्लभ टिकट, एवं थीम पर आधारित बहुमूल्य टिकटों ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया l टिकटों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करने हेतु सभी जगह गाइड भी मौजूद थे l दूसरी ओर आधुनिक तकनीक आधारित AR-VR के माध्यम से टिकटों की दुनिया में झाकने और समझने वालों की जिज्ञासा शांत होती नहीं दिख रही थी l आयोजित क्विज प्रतियोगितओं में बच्चों ने अपनी ज्ञान और बुद्धिमत्ता का खूब परिचय दिया यह देखते ही बन रहा था की जब ये प्रतियोगिता चल रही थी तब कोई भी दर्शन अपना स्थान छोड़ने के लिए तैयार नहीं था l इस प्रतियोगिता जूनियर ग्रुप में राजकीय मध्य विद्यालय राजापुर , मैनपुरा , पटना के बच्चों ने बाजी मारा वहीँ क्राइस्ट चर्च, डायोसेसन स्कूल, खगौल ने दूसरा स्थान प्राप्त किया एवं बीडी पब्लिक स्कूल, बुद्धा कॉलोनी, पटना के छात्रों ने तीसरा स्थान प्राप्त किया जबकि सीनियर ग्रुप में राजकीय बालक सीनियर सेकेंडरी विद्यालय, राजेंद्र नगर, पटना के बच्चों ने प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा डॉन बॉस्को अकादमी पटना ने दूसरा स्थान प्राप्त किया एवं सेंट जोसेफ कॉन्वेंट हाई स्कूल, बांकीपुर , पटना के छात्र तीसरे स्थान पर रहे l इस प्रदर्शनी परिसर में आगंतुकों के लिए बनाये गए डाकघर काउंटर पर दी जाने वाली सुविधाओं को भी दर्शकों ने खूब सराहा, जहां लोग फिलेटली डिपॉजिट अकाउंट खुलवाए , माय स्टाम्प बनवाकर अति प्रसन्न हुए l इसके अतरिक्त डाक विभाग द्वारा एक पोस्ट शॉपी का काउंटर भी लगाया गया है जहां आगंतुकों ने कई प्रकार कि डाक वस्तुएं जैसे फिलाटेली किट, टी. शर्ट, मग, मोबाइल होल्डर डायरी इत्यादि खरीदने में खूब दिलचस्पी दिखाई l इसके अलावे बहुत सारे महत्वपूर्ण एवं स्थानीय कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बहुत सारे काउंटर ने भी लोगों को अपने विशेषताओं के प्रति खूब आकर्षित किया l
मंडन मिश्र औरआदि शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच हुआ शास्त्रार्थ भारतीय इतिहास की सबसे चर्चित दार्शनिक घटनाओं में से एक है, जो दो प्रमुख विचारधाराओं- अद्वैत वेदांत और कर्मकांडी मीमांसा दर्शन के बीच के संघर्ष का प्रतीक है। मंडन मिश्र मीमांसा के एक प्रख्यात विद्वान थे, जो वैदिक कर्मकांडों में अपनी विशेषज्ञता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए कर्म (कर्मकांडीय क्रियाओं) के महत्व में विश्वास के लिए जाने जाते थे। आदि शंकराचार्य, जो अद्वैत वेदांत के समर्थक थे, आत्मा और ब्रह्म चेतना की सर्वोत्तम एकता का पक्ष लेते थे, और भौतिक संसार की माया को महत्वपूर्ण मानते थे।यह शास्त्रार्थ मंडन मिश्र के घर में आयोजित की गई थी, और इसका निर्णय उनकी विदुषी पत्नी उभया भारती ने किया, जिन्होंने कठोर नियम तय किए और दोनों दार्शनिकों का निष्पक्षता से मूल्यांकन किया। कई दिनों की कठोर चर्चा के बाद, मंडन मिश्र ने अपनी पराजय स्वीकार की और शंकराचार्य की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उनके शिष्य बन गए, जो अद्वैत वेदांत के प्रसार में एक महत्वपूर्ण क्षण था। यह वाद-विवाद प्राचीन भारत की समृद्ध बौद्धिक संस्कृति का प्रमाण है, जहाँ दार्शनिक जिज्ञासा को गहनता, सम्मान और गहरे सत्यों को उजागर करने के साझा लक्ष्य के साथ किया जाता था।
बिहार के संगीत घराने
गया घराना: भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित घराना है, जो अपने अद्वितीय गायन शैली और समृद्ध परंपरा के लिए जाना जाता है। गया घराने की जड़ें प्राचीन समय से जुड़ी हुई हैं, जब बिहार राज्य में अवस्थित गया शहर, संगीत और संस्कृति का केंद्र था। गया घराना मुख्य रूप से उसके ठेठ, ठहराव और संगीतमयता के लिए जाना जाता है। इस घराने की ठुमरी के उन्नायको में ढेला बाई, सोनी महाराज, राम प्रसाद मिश्र उर्फ रामूजी, जय राम तिवारी और गयावाल पंडों का नाम अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है। गया घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक अद्वितीय धारा है, जो न केवल संगीत प्रेमियों को आकर्षित करता है, बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि का भी प्रतीक है।
बेतिया घराना: भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख घरानों में से एक है, जो विशेष रूप से अपनी अनूठी गायन शैली और संगीत परंपरा के लिए जाना जाता है। यह घराना बिहार में बेतिया के तत्कालीन शाही दरबार से जुड़ा है, जो मुख्य रूप से 19वीं शताब्दी के दौरान विकसित हुआ था। बेतिया परंपरा में ध्रुपद की उत्पत्ति नेपाल दरबार के प्रसिद्ध संगीतकारों रहीमसेन और करीमसेन के प्रमुख शिष्य पंडित शिवदयाल मिश्र के बेतिया आगमन से जुड़ी है। बेतिया शैली में ध्रुपद को गायन प्रस्तुति की स्पष्ट सादगी के साथ-साथ रचना पर जोर दिया जाता है। बेतिया घराने की रचनाएँ महाराजा-कवि-ध्रुपदिया, आनंद और नवल किशोर की कविता पर आधारित हैं। सेनी घराने के प्यार खान और हैदर खान का इस घराने पर प्रमुख प्रभाव माना जाता है। इस घराने की परंपरा में कई महत्वपूर्ण संगीतकार हुए हैं। इनमें शिवराहल मिश्र, गुरुप्रसाद मिश्र, जयकरण मिश्र, भोलानाथ पाठक, बीनकर शिवेंद्र नाथ बसु, शिब मित्रा और फाल्गुनी मित्रा शामिल हैं।
दरभंगा घराना: भारतीय शास्त्रीय संगीत के समृद्ध घरानों में से एक है, जो अपनी विशेष गायन शैली और अद्वितीय परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। बिहार के दरभंगा जिले से संबंधित यह घराना इसके अद्भुत रागों और भावनात्मक प्रस्तुति के लिए जाना जाता है। दरभंगा घराना अठारहवीं शताब्दी से शुरू होता है, जिसे दरभंगा के महाराजा के दरबार में संगीतकारों राधाकृष्ण और करताराम द्वारा शुरू किया गया था। यह शैली अपने मुखर वितरण और ऊर्जावान प्रदर्शन के लिए उल्लेखनीय है। दरभंगा घराना की गायकी में रागों की गहराई और लय की विविधता का अनूठा संगम होता है। दरभंगा घराने के कई प्रसिद्ध कलाकार हुए हैं, जैसे दरभंगा के मल्लिक, लक्ष्मण भट्ट तैलंग और सियाराम तिवारी। यह घराना न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है।
डुमराँव घराना: भारतीय शास्त्रीय संगीत के विशिष्ट घरानों में से एक है, जो अपनी अनूठी गायन शैली और सांगीतिक गहराई के लिए जाना जाता है। यह घराना बिहार के डुमराँव क्षेत्र से जुड़ा हुआ है और इसकी जड़ें गहरी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपराओं में फैली हुई हैं। इस घराने की नींव 19वीं सदी में पंडित मानिकचंद दुबे और पंडित अनूप चंद दुबे ने रखी थी, जिन्हें मुगल सम्राट शाहजहां ने सम्मानित किया था। पंडित रामजी मिश्र डुमरांव घराने के प्रसिद्ध जीवित गायक हैं। डुमरांव घराने के बारे में लिखी गई कुछ पुस्तकों में पंडित घाना द्वारा लिखित श्री कृष्ण रामायण, रंग दुबे, सुर-प्रकाश, भैरव, प्रकाश, जय प्रकाश दुबे और प्रकाश कवि द्वारा रश-प्रकाश, और डॉ. अरविंद कुमार द्वारा अभिषेक संगीत पल्लव शामिल हैं।
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