- धर्म, आध्यात्म व संस्कृति के साथ-साथ आस्था की नगरी काशी के उमरहां में निर्मित स्वर्वेद महामंदिर अपने आप में अनोखा है। यह मंदिर शिल्प और अत्याधुनिक तकनीक के अदभुत सामंजस्य का प्रतीक है। स्वर्वेद मंदिर का नाम स्वः और वेद से जुड़कर बना है. स्वः का एक अर्थ है आत्मा या परमात्मा, वेद का अर्थ है ज्ञान. आत्मा का ज्ञान जिसके जरिए हो वही स्वर्वेद कहा जाता है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर भगवान की नहीं, योग- साधना की पूजा होगी. इस वर्ष मंदिर में विहंगम योग संत समाज का दो दिपसीय शताब्दी समारोह 6 एवं 7 दिसंबर को होगा। इस दौरान 25 हजार कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ होगा. इसकी सुंदरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, जो पर्यटक काशी आता है, वह स्वर्वेद मंदिर मत्था टेकने जरुर जाता है। 64 हजार वर्ग फीट में बने सात मंजिला महामंदिर के दीवारों पर 4000 स्वर्वेद के दोहे अंकित हैं। मंदिर का मुख्य गुंबद 125 पंखुड़ियों के विशालकाय कमल पुष्प की तरह है। स्वर्वेद महामंदिर को देश का सबसे बड़ा मेडिटेशन सेंटर भी माना जा रहा है। जहां एक साथ 20 हजार लोग बैठकर योग और ध्यान कर सकते हैं.
स्वर्वेद महामंदिर की वास्तुकला में 101 फव्वारे, जटिल नक्काशीदार दरवाजे और सागौन की लकड़ी की छतें शामिल हैं। 2004 में शुरू हुए इस मंदिर के निर्माण में 600 श्रमिकों और 15 इंजीनियरों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता थी। मंदिर की वेबसाइट के अनुसार, विहंगम योग के संस्थापक सदाफल देवजी महाराज ने स्वर्वेद की रचना की थी, जो एक ऐसा ग्रंथ है जिसे स्वर्वेद महामंदिर समर्पित करता है। वेबसाइट पर कहा गया है, “महामंदिर का उद्देश्य मानव जाति को अपनी शानदार आध्यात्मिक आभा से प्रकाशित करना और दुनिया को शांतिपूर्ण सतर्कता की स्थिति में ले जाना है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वर्वेद महामंदिर को भारत की सामाजिक और आध्यात्मिक क्षमताओं का आधुनिक प्रतीक बताया है। मोदी ने कहा है यह भारत की सामाजिक और आध्यात्मिक शक्ति का आधुनिक प्रतीक है। विश्व में विहंगम योग और ध्यान के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाने वाला स्वर्वेद महामंदिर एक 7-स्तरीय अधिरचना है, मंदिर में मकराना संगमरमर पर 3,137 स्वर्वेद छंद उत्कीर्ण हैं। यह मंदिर वाराणसी और गाजीपुर हाईवे के बीच उमरहा में स्थित है। जब वाराणसी से गाजीपुर की तरफ बस के जरिए जाते हैं तो बाएं हाथ की तरफ खुले इलाके में विशालकाय मंदिर दिखने लगता है। बता दें, विश्वभर में संत सदाफल महाराज के ऐसे दर्जनों आश्रम मौजूद हैं। लेकिन वाराणसी स्थित स्वर्वेद मंदिर सबसे बड़ा आश्रम है। करीब 20 वर्षों से इस आश्रम का निर्माण जारी है। मकराना मार्बल से बने इस मंदिर की चर्चा अब हर तरफ होने लगी है। यह मंदिर अपने आप में बेहद खास है। खास यह है कि इस मंदिर में किसी भी भगवान की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। यहां केवल ब्रह्म की प्राप्ति की शिक्षा दी जाती है।
मंदिर में संत सदाफल महाराज की 135 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित की गई है। स्वर्वेद मंदिर अपनी खास भव्यता को लेकर चर्चा में है, क्योंकि इस मंदिर का भव्य निर्माण किया गया है. इस मंदिर का नाम है स्वर्वेद. स्वर्वेद दो शब्दों से मिलकर बना है स्वः और वेद. स्वः का एक अर्थ है आत्मा, वेद का अर्थ है ज्ञान. स्वः का दूसरा अर्थ है परमात्मा, वेद का अर्थ है ज्ञान. जिसके द्वारा आत्मा का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, जिसके द्वारा स्वयं का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसे ही स्वर्वेद कहते हैं. इस मंदिर में किसी विशेष भगवान की पूजा के बजाय मेडिटेशन किया जाता है और यह एक मेडिटेशन स्थल है. स्वर्वेद महामंदिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यहां के अनुयायी भारत के करीब सभी राज्यों एवं विदेशों में भी हैं. विहंगम योग का वार्षिक समागम 19वीं सदी के आध्यात्मिक नेता, रहस्यवादी कवि और द्रष्टा सद्गुरु सदाफल देवजी महाराज द्वारा विहंगम योग संस्थान की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ का प्रतीक है। महामंदिर में पूज्य द्रष्टा की मूर्ति है। सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव और संत प्रवर विज्ञान देव ने 2004 में इस विशाल ध्यान केंद्र की नींव रखी थी। इसके निर्माण में 15 इंजीनियरों और 600 श्रमिकों ने काम किया है। महामंदिर का नाम स्वर्वेद के नाम पर रखा गया है, जो सद्गुरु श्री सदाफल देवजी महाराज द्वारा लिखित एक आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो एक शाश्वत योगी और विहंगम योग के संस्थापक हैं। इस महामंदिर में सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक बुराइयों का उन्मूलन शामिल है। इसको ग्रामीण भारत की भलाई के लिए अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक परियोजनाओं का केंद्र भी बनाया गया है। यज्ञ व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए यज्ञ के दौरान ढाई हजार कार्यकर्ता अपनी सेवा प्रदान करेंगे. महायज्ञ में आश्रम द्वारा संचालित वैदिक गुरुकुल से प्रशिक्षित कुल 108 पुरोहित मंत्रोच्चार करेंगे. अस्थायी नगरों के नाम गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, ब्रह्मपुत्रा के साथ ही काशी के सप्तऋषियों के नाम पर रखे जाएंगे. महायज्ञ में 108 ब्लॉक बनाए जा रहे हैं. इन ब्लॉक का नाम प्राचीनतम मंत्र द्रष्टा ऋषियों और ऋषिकाओं के नाम पर होंगे. इसमें हर ब्लॉक में 232 कुंड होंगे. महायज्ञ में आने वाले भक्तों को भारत की विभिन्न संस्कृतियों के अनुसार सात्विक भोजन उपलब्ध होगा. सुगमता से भोजन प्रसाद के इंतजाम के लिए 12 भोजनालय बनाए जा रहे हैं. इसमें प्रत्येक में बीस-बीस काउंटर होंगे. साथ ही छह सांस्कृतिक भोजनालय भी बनाए जा रहे हैं जिसमें अलग-अलग राज्यों के अनुसार व्यंजन तैयार किए जाएंगे. पुलिस प्रशासन के साथ ही साथ विहंगम सुरक्षा बल के भी पांच सौ पुरुष और दो सौ महिलाएं सेवा प्रदान करेंगी. जन सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए कुल 45 सौ शौचालयों की व्यवस्था की गई है. पांच किलोमीटर में विस्तृत संपूर्ण परिसर में अशक्त एवं वृद्धजनों की सुगमता के लिए कुल 50 ई रिक्शा निशुल्क संचालित रहेंगे.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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