सोशल मीडिया पर लाखों लोग उनकी तस्वीरों और वीडियो को देखकर उनके भोलेपन और सादगी की तारीफ कर रहे हैं।कोई उसकी नीली हिरनी जैसी आंखों का प्रशंशक है तो कोई उसकी बातचीत के लहजे का।कोई उसकी तुलना वॉलीवुड की हिरोइन से कर रहा है तो कोई उसे दुनिया की सबसे खूबसूरत युवती मान रहा है।इन सबके बीच कुछ लोग इसे ट्रोल भी कर रहे हैं कि कुंभ जैसे धार्मिक स्थल पर ऐसी चीजें क्यों वायरल हो रही हैं। उनका मानना है कि कुंभ में केवल आध्यात्म और धर्म पर चर्चा होनी चाहिए। यह सोच हमारी आधुनिकता और परंपरा के बीच एक अंतर्निहित द्वंद्व को उजागर करती है। आलोचकों का तर्क है कि कुंभ जैसी पवित्र जगह पर वायरल होने वाली चीजें केवल धर्म और अध्यात्म से संबंधित होनी चाहिए। अचरज होता है कुंठित मानसिकता के उन बुद्धजीवियों पर जो हर चीज को नकारात्मकता के पैमाने से देखते हुए गिलास को आधा खाली ही देखते है। समझ नही आता कि सनातन की सतरंगी संस्कति की झलक दिखाने बाले कुम्भ में सादगी पर चर्चा क्यो नही हो सकती।सवाल यह है कि क्या सादगी और भोलापन किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ है? क्या यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है? क्या प्रयागराज की पुण्य धरा पर माँ गंगा के तट पर साधारण परिवार की माला ,रुद्राक्ष बेचने बाली सादगी से लबरेज युवती का सेलिब्रिटी बनना सनातनी संस्कृति का सुखद पहलू नही है,वह भी तब जब सोशल प्लेटफार्म पर अश्लीलता चरम पर हो...?क्या बदन की नुमाइश करने बाली प्रतिस्पर्धा में सर से पांव तक साधारण कपड़ो में लिपटी यह भोली से युवती नारी सम्मान का भाव नही रखती..?
जब एक नवयुवती अपनी सादगी से लाखों दिलों को छू सकती है, तो यह इस बात का प्रतीक है कि हमारी संस्कृति में अब भी सरलता और शालीनता की गहरी जड़ें हैं। मोनालिसा का सेलिब्रिटी बनना न केवल उनकी व्यक्तिगत पहचान का प्रमाण है, बल्कि यह हमारी संस्कृति की उस सच्चाई को भी उजागर करता है कि खूबसूरती केवल बाहरी आकर्षण में नहीं, बल्कि सनातनी संस्कृति में होती है। आज के युग में जहां अश्लीलता और फुहड़ता ने सोशल मीडिया को अपने चंगुल में ले रखा है, ऐसे में "मोनालिसा" जैसी साधारण युवती का वायरल होना उम्मीद की किरण नजर आता है। मोनालिसा की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सामाजिक मीडिया पर हर चीज को आलोचना के तराजू पर तौलने की आवश्यकता नहीं है। कुंभ जैसे मेले में जहां आध्यात्म, धर्म और सनातन की चर्चा होती है, वहां यदि सादगी और शालीनता का कोई उदाहरण सामने आता है, तो वह भी हमारी संस्कृति और परंपरा का सम्मान है। कुंभ की इस पवित्र धरती पर मोनालिसा नाम की एक स्त्री का वायरल होना यह बताता है कि आकर्षण का केंद्र विंदु सादगी और भोलापन भी है। यह घटना एक नई शुरुआत की ओर इशारा करती है—एक ऐसी शुरुआत जहां सादगी, शालीनता और शुद्धता को सम्मान मिलता है।किसी ने ठीक ही कहा है-
"अच्छी सूरत को संवरने की क्या जरूरत है..
सादगी में कयामत की अदा होती है...!!
बृजेश सिंह तोमर
वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक
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