समारोह का संयोजन कर रहे आलोचक डॉ पल्लव ने कहा कि इस पुस्तक में विष्णु नगर के चयनित व्यंग्यों का संकलन है जिसमें नागरजी की व्यंग्य शैली के सभी रंग हैं। पल्लव ने पुस्तक से 'रीढ़ की हड्डी गुम है' अंश पाठ भी किया। आलोचक बलवंत कौर ने कहा कि मौखिक से लिखित रूप में परिवर्तित होने पर व्यंग्य विद्या की प्रकृति बदल जाती है। व्यंग्य के साथ अक्सर हास्य को जोड़ा जाता है जिसके कारण व्यंग्य को निम्न कोटि की रचना समझा जाता है। नागर जी अपनी कथा में एक बीज शब्द का प्रयोग करते हैं, ये बीज शब्द हमारे समाज के बीच के शब्द हैं। ये व्यंग्य अपने समय के दस्तावेज बन जाते हैं। आधुनिक शैली में पंचतंत्र की कथा की शैली में लिखे गए व्यंग्य हैं। कवि जितेंद्र श्रीवास्तव अपने वक्तव्य में कहा कि नागर जी वरिष्ठतम पीढ़ी के लेखक हैं। उनकी कविताएं भी व्यंग्य की कोटि में ही आती हैं। वरिष्ठ आलोचक प्रो माधव हाड़ा ने विष्णु नागर जी को पुस्तक के लिए बधाई और शुभकामनाएं ज्ञापित करते हुए पाठकों को इस पुस्तक को पढ़ने के लिये अनुशंसा की। उन्होंने कहा कि विष्णु नागर की ये विशेषता है कि वह नए रास्तों की तलाश करते चलते हैं। उनकी साहित्यिक यात्रा उपन्यास, कहानी से होते हुए व्यंग्य तक पहुंची है। जैसे व्यंग्य लेखन में परसाई जी को याद किया जाता है वैसे ही नागर जी को याद किया जाएगा। अंत में मीरा जौहरी ने आभार व्यक्त किया।
नई दिल्ली (रजनीश के झा)। हम बहुत ही विडबंना के दौर से गुज़र रहे हैं। विड़बना आधुनिक समाज का बीज शब्द है। अतिशयोक्ति शब्द का सबसे खूबसूरत प्रयोग कार्टून आदि में होता है लेकिन नागर जैसे व्यंग्यकार गद्य में भी इसका विलक्षण प्रयोग करते हैं। विख्यात लेखक प्रियदर्शन ने विश्व पुस्तक मेले में विष्णु नागर के व्यंग्य संग्रह आदमी की पूंछ का लोकार्पण करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने आर के लक्ष्मण के कार्टून का उल्लेख किया और विष्णु नागर के व्यंग्य को उससे जोड़ा। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में सबसे मुश्किल काम है व्यंग्य लिखना। विष्णु नागर इसमें बहुत प्रखर नज़र आते हैं।
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