आलेख : दुर्दिन के बीहड़ से अच्छे दिन की डगर : बीएसएनल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

आलेख : दुर्दिन के बीहड़ से अच्छे दिन की डगर : बीएसएनल

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पिछला सप्ताहांत कॉरपोरेट क्षेत्र के दिग्गजों, टेलीकॉम सेक्टर के विशेषज्ञों, आर्थिक मामलों के जानकारों के साथ इस विषय में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए खासा हैरानी भरा रहा l शनिवार को जब दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बरसों से घाटे में चल रही बेदम, सुस्त-पस्त और थकी-मांदी सरकारी दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के लाभ में आने की घोषणा की तो यह कोई सामान्यतः रूटीन में की जाने वाली घोषणा मात्र नहीं थी l यह पूर्व में भारत के एक दिग्गज रहे सार्वजनिक क्षेत्र को संजीवनी मिलने जैसी घोषणा थी l बीते सत्रह बरसों में बीएसएनएल साल-दर-साल इस कदर घाटे में चला आ रहा था कि दूरसंचार और आर्थिक मामलों के जानकारों, वित्तीय विशेषज्ञों, लेखकों, पत्रकारों ने इसके निकट भविष्य में अवसान होने के अनुमान लगाते हुए इसके लिए मर्सिए (शोक-गीत) पढ़ने शुरू कर दिए थे, इसलिए जब इस वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में 262 करोड़ रुपए कमाने की घोषणा हुई तो सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ l दरअसल भारत की पहली सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल के लिए पिछले करीब दो दशक दुर्दिनों की दास्तां है तो शोक-गीत से मंगल-गान तक लौटने की एक गाथा भी l यह इसके दुर्दिन की बीहड़ से निकल कर अच्छे दिन की डगर पर आने की गाथा भी है. थोड़ा अतीत की ओर झांकें तो इस गाथा की गुत्थी को समझा जा सकता है। बीएसएनएल के पतन की गाथा के बीज 1990 में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के साथ ही दूरसंचार क्षेत्र में निजी कंपनियों की एंट्री से ही शुरू हो गई थी l  19 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ से जब बीएसएनएल की मोबाईल सेवा की शुरुआत की तो उस समय इसकी ग्राहक संख्या देश मे सर्वाधिक 1.78 लाख थी l महज डेढ़-दो वर्षों में यह संख्या बढ़कर रिकॉर्ड 52.54 लाख तक पहुंच गई l  वित्तीय वर्ष 2001-2 के ‘टेलीफोन युग’ में इसका लाभ 747 करोड़ से 2005 के ‘मोबाईल युग’ में लम्बी छलांग लगाकर 5976 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था l  2006-7 तक ग्राहक और राजस्व के मामले में बीएसएनएल देश की सबसे बड़ी कंपनी थी l इस दौर में बीएसएनएल का राजस्व 41,200 करोड़ और लाभ 8, 240 करोड़ था l        


बावज़ूद इन तथ्यों के, भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में प्राइवेट कंपनियां तेजी से विस्तार करती जा रही थीं l बीएसएनएल की प्रतिस्पर्धा भारती एयरटेल, आर कॉम, हच, वोडाफोन जैसी कम्पनियों से थी l 2007-8 में सबसे ज़्यादा राजस्व और उपभोक्ताओं पर पकड़ होने के बावज़ूद बीएसएनएल हांफने लगा l इस कालखंड में यूपीए गठबंधन की डॉ. मनमोहनसिंह सरकार में स्पेक्ट्रम आवंटन हुआ, बीएसएनएल को बीडब्ल्यूए (ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस) मिला ज़रूर लेकिन तब तक प्राइवेट कम्पनियां अपनी आक्रामक बाजार रणनीति से पेशेवर तौर-तरीकों से ग्राहकों तक अपना प्रभाव बढ़ाती जा रहीं थीं l इधर रहस्यमय तरीके से सरकार का अपनी ही कंपनी के प्रति उपेक्षा और उदासीनता का रवैया बढ़ता ही जा रहा था l गौरतलब है कि अपने स्वर्णिम दौर में बीएसएनएल 40 हज़र करोड़ रुपए का आईपीओ लाने की भी तैयारी कर चुका था l बोर्ड की मंजूरी भी मिल चुकी थी, स्वीकृति मिलनी थी तो सिर्फ़ सरकार से l इस समय दूरसंचार मंत्री डीएमके के ए.राजा थे. इस आईपीओ के ज़रिए बीएसएनएल अपनी दस प्रतिशत हिस्सेदारी बेचना चाहती थी l भारतीय मुद्रा में इसका वैल्यूएशन 4 लाख करोड़ रुपए का था l आज की दर से अनुमानित तौर पर यह 12 लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा वैल्यूएशन वाली कंपनी होती l बीएसएनएल के आईपीओ को यूपीए सरकार से मंजूरी न मिलने का रहस्य आज भी बना हुआ है l यूपीए के दूसरे कार्यकाल में समाजवादी पार्टी के बेनीप्रसाद वर्मा दूरसंचार मंत्री थे, उस दौरान भी सार्वजनिक क्षेत्र के इस उपक्रम को विस्तार करने से रोका गया l इसका सीधा असर कम्पनी के ‘फाइबर टू द होम’ (एफटीटीएच) योजना पर पड़ा जिसका खामियाजा यह हुआ कि प्राइवेट कंपनियों के आगे बीएसएनएल लगातार पिछड़ता रहा l हाल यह हो गया कि प्राइवेट कंपनियां जहाँ 5जी तकनीक के लिए तैयारी कर रही थीं, बीएसएनएल के पास 4जी तकनीक भी नहीं थी. वर्ष 2007 में अंतिम बार मुनाफ़ा कमाने वाला यह सरकारी उपक्रम अब हर साल घाटे से छटपटा रहा था।


अगले दो वर्षों के भीतर ही इसके मुनाफे में 81 प्रतिशत की गिरावट आ गई और इसके राजस्व में 6 फीसदी की कमी दर्ज की गई। तब से बीएसएनएल साल दर साल बीमार होता रहा और 31 मार्च 2022 तक घाटा 57,671 करोड़ रुपए तक पहुँच गया। अक्टूबर 2023 के अंत तक बीएसएनएल ने लगातार 22 महीनों में 21.4 मिलियन ग्राहकों का नुकसान झेला, जिससे इसके कुल ग्राहकों की संख्या घटकर केवल 92.87 मिलियन रह गई थी और 2022 तक इसकी बाजार हिस्सेदारी मात्र 7.9 प्रतिशत तक गिर गई। निगम जब बाहरी तौर पर बढ़ती बाजार प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा था तो आंतरिक रूप से वह ज़रूरत से ज़्यादा कर्मचारी लागत से भी परेशान था l गौरतलब यह है कि कंपनी में करीब 1.7 लाख कर्मचारियों की औसत उम्र 55 वर्ष थी और इनमें से अधिकांश बीएसएनएल पर बोझ बन चुके थे क्योंकि वो तकनीकी तौर पर ‘अनपढ़’ थे। इस दौर तक आते-आते केंद्र में भाजपा-नीत सरकार आ गई l प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के बड़े हिस्से में कंपनी पुराने ढर्रे पर चलती रही l पुरानी प्रौद्योगिकी, घिसी-पिटी 2-3 जी तकनीक, निष्क्रिय खड़े टॉवर्स, कॉल-ड्रॉप समस्या, घोंघे जैसी स्पीड वाला इंटरनेट, गैर जरूरी सरकारी हस्तक्षेप, ढीली-ढाली निर्णय-प्रक्रिया, निरंतर बदलती परिस्थितियों, तेजी से बदलती तकनीकें, ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धात्मक माहौल के बावजूद सुरक्षित,अभेद्य किले जैसी ‘पक्की नैकरी’ के चलते उदासीन सरकारी मशीनरी, पूरी तरह से ऊँघता वातावरण, उनींदा कार्य-स्थल, किसी की कोई जवाबदेही नहीं,कोई उत्तरदायी नहीं l ऐसे में बीएसएनएल मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था l अब सरकार को ज़रूरत थी,इसकी पूरी तरह शल्य-क्रिया कर इसमें आमूल-चूल परिवर्तन करने की। 


इतिहास के एक दौर में पुरोधा रहे बीएसएनएल के ये हाल देखकर केंद्र सरकार ने चरमरा रही इस सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बंद होने से बचाने के लिए सक्रिय कदम उठाए l अक्टूबर 2019 में केंद्र ने एक ‘ रिवाइवल प्लान ‘ यानी  पुनरुद्धार योजना को मंजूरी दी l इसमें बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए 69,000 करोड़ रुपए दिए गए l इस योजना के तहत 93,000 कर्मचारियों ने वीआरएस का विकल्प चुना था l  परिणामस्वरूप, बीएसएनएल और एमटीएनएल वित्तीय वर्ष 2020-2021 से ईबीआईटीडीए (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की कमाई) सकारात्मक हो गए। जुलाई 2022 तक, केंद्र ने बीएसएनएल के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपए का दूसरा पुनरुद्धार पैकेज मंजूर किया, जिसका उद्देश्य निगम की सेवाओं को उन्नत करना, स्पेक्ट्रम आवंटित करना और भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड को बीएसएनएल के साथ विलय करके इसके फाइबर नेटवर्क को बढ़ाना रहा। फिर 7 जून 2023 को सरकार ने 89,000 करोड़ रुपए से अधिक का तीसरा पैकेज दिया l सरकार ने बीएसएनएल को 4 जी और 5 जी स्पेक्ट्रम का आवंटन भी किया l फरवरी 2025 को केंद्र सरकार ने बीएसएनएल और एमटीएनएल के 4जी नेटवर्क विस्तार में तेजी लाने के लिए एक बार फिर 6,000 करोड़ रुपए के वित्तीय पैकेज को मंजूरी दी है। इतनी रहमतें बरसने के बाद पंगु-से पड़े बीएसएनएल में इतनी ताकत तो आ ही गई है कि वो कमजोर ही सही,अपने पैरों पर खड़े होने की स्थिति में आ गया है और सत्रह बरसों बाद एक बार फिर लाभ कमा कर दिया है l  




Harish-shivnani


हरीश शिवनानी

(वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार)

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