उन्होंने बिहार में बढ़ते पुलिस राज की ओर इशारा किया, खासकर मधुबनी के बेनीपट्टी और मुजफ्फरपुर के कांटी में पुलिस की क्रूरता को उजागर किया. कहा कि आज भाजपा की अगुवाई में बिहार में पुलिस का राज चल रहा है. यह स्थिति बेहद चिंताजनक है. उन्होंने संविधान और लोकतंत्र पर खतरे की ओर भी ध्यान आकर्षित किया. शाहीनबाग आंदोलन ने इस खतरे को पहचानते हुए संघर्ष शुरू किया. 2024 के लोकसभा चुनाव में लोकतंत्र और संविधान के मुद्दे को मुख्य बनाकर भाजपा को चुनौती दी गई. भाजपा यह सोच रही थी कि वे अंबेडकर और भगत सिंह को अपने हिसाब से ढाल लेंगे, लेकिन जब यह देखा कि यह संभव नहीं है, तो वे बौखला गए हैं. अमित शाह डॉ. अंबेडकर पर अपमाजनक बयान देते हैं और मोहन भागवत कहते हैं कि राम मंदिर बनने के बाद आजादी आई. उन्होंने बिहार के सामाजिक न्याय, आरक्षण और जाति आधारित गणना के मुद्दे को भी उठाया. कहा कि बिहार में 65 प्रतिशत आरक्षण लागू होना चाहिए, जैसा कि तमिलनाडु में है, और जाति आधारित गणना पूरे देश में लागू होनी चाहिए. बिहार के आगामी चुनाव केवल राजनीतिक साजिशों और धोखाधड़ी का मुकाबला नहीं होंगे, बल्कि यह चुनाव जनता के असल मुद्दों पर केंद्रित हों. उन्होंने बिहार की जनता से आह्वान किया कि आगामी विधानसभा सत्र और चुनाव में बदलाव की इस आवाज को मजबूत करें. 2 मार्च को पटना के गांधी मैदान में महाजुटान एक महत्वपूर्ण मोड़ है. यह बिहार के भविष्य का रास्ता तय करने का वक्त है.
आर्टिकल 19 के संपादक नवीन कुमार ने कहा कि जिस मुश्किल वक्त में यह परिचर्चा हो रही है वह केवल बिहार के लिए, केवल भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए मुश्किल वक्त है. आज किसी एक हुकूमत े या सत्ता को हटाने का नहीं बल्कि अपने आत्मसम्मान की लड़ाई है. उन्होंने कहा कि बिहार में विगत सालों में सामाजिक न्याय की धारा की राजनीति रही है, लेकिन इतने सालों में शिक्षा, रोजगार और विकास के पैमाने पर आज बिहार की बड़ी आबादी आज कहां पहुंची? मीडिया क्या हाल है? इन सबों की हमें जांच-पड़ताल करनी होगी. उच्च शिक्षा व शिक्षण संस्थानों का निजीकरण सबसे बड़े घेाटाले हैं. यह निजीकरण वंचित समुदाय के बच्चों को शिक्षा से वंचित करने के लिए ही की जा रही है. हमें इस सच को स्वीकार करके आगे का रास्ता तय होना होगा. दिल्ली वि.वि. के पूर्व सहायक प्राध्यापक लक्ष्मण यादव ने कहा कि गणतंत्र के 75 साल में हमने जो हासिल किया आज वह सब खतरे में है. यूपी में हम सब देख रहे हैं कि कैसे संविधान की हत्या की जा रही है. बिहार से पूरे देश को उम्मीद है. बिहार सामाजिक न्याय और किसान आंदोलन की धरती है. आज सवाल यह है कि बिहार भी यूपी की राह पर बढ़ जाएगा या एक नई राह रौशन करेगा. उन्होंने कहा कि न्यूनतम सहमति पर व्यापक एकता का निर्माण करते हुए हमें देश को फासीवादी हमले से बचाना है. शिक्षा-रोजगार पर भाजपा के लगातार हमले बताते हैं कि वे हमें न तो संविधान पढ़ने देना चाहते हैं और न शिक्षा देना चाहते हैं. हमें पढ़ना है और अपने हक-अधिकार को पहचानना है.
दिल्ली वि.वि. के शिक्षक रतनलाल ने अपरोक्ष तरीके से एनडीए खेमे में शामिल दलित नेताओं पर हमला करते हुए कहा कि दलितों के शिक्षा-रोजगार की बेहतरी से इन्हें कोई मतलब नहीं है. ये सब तथाकथित हिंदू राष्ट्र की पालकी ढो रहे हैं. शिक्षा व रोजगार पर जो हमले हैं उसकी मार केवल दलित या हाशिए पर पड़े लोगों पर नहीं पड़ रही बल्कि हर जाति-समुदाय पर पड़ रही है. 75 सालों में नेहरू से लेकर अंबेडकर ने जिस भविष्य के भारत के सपने देखे थे, जिसमें लोगों को रोजी-रोजगार मिला, उन सब पर हमला है. इसलिए अपने आपसी मतभेद भुलाकर हमें एक व्यापक एकता का निर्माण करना होगा. अन्यथा गुलामी का एक नया दौर शुरू होगा. माले विधायक गोपाल रविदास ने अपनी साथ हुई आपबीती की चर्चा करते हुए कहा कि आज भी दलित होने के नाम पर हमें अपमान सहना पड़ता है. नीतीश जी के राज में विकास की बातें काफी हुईं लेकिन इस विकास में रोजगार कहां है? प्रोफेसर चिंटू कुमारी ने विस्तार से बिहार में स्कीम वर्कर्स सहित कामकाजी महिलाओं की स्थिति, शिक्षा-रोजगार की लगातार खराब होती स्थिति आदि की चर्चा की. सामाजिक कार्यकर्ता वंदना प्रभा ने कहा कि आज देश के नागरिकों को महज सरकार की योजनाओं का लाभार्थी बनाया जा रहा है. उन्होंने कर्ज के जाल में फंसी महिलाओं के मुद्दे को उठाया. पूर्व प्रोफेसर शमीम आलम ने देश की गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूती से आगे बढ़ाना है. परिचर्चा में विश्वविद्यालय के शिक्षक, बुद्धिजीवी, विभिन्न आंदोलनों के कार्यकर्ता, वकील आदि बड़े पैमाने पर शामिल हुए।
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