- अद्भुत, अलौकिक, भव्य और दिव्य महाकुंभ में दिखा सनातनियों का जनसमुद्र, आसमान से 20 क्विंटल पुष्प वर्षा
- बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर 2.33 करोड़ ने लगाई आस्था की डुबकी
- सबसे पहले नागा साधु, फिर महानिर्वाणी और निरंजनी अखाड़े ने लगाई संगम में डुबकी.
दिखा अचूक सुरक्षा चक्रव्यूह
भीड़ को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी गई है. श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिहाज से वन वे रूट तैयार किया गया है. इसके अलावा पांटून पुलों पर मेले में आने वाले लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत न आए, इसका भी विशेष इंतजाम किया गया है. संगम जाने वाले सभी रास्तों पर 10 किमी तक श्रद्धालुओं का रेला है। प्रयागराज जंक्शन से 8 से 10 किमी पैदल चलकर लोग संगम पहुंच रहे हैं। भीड़ को देखते हुए लेटे हनुमान मंदिर को बंद कर दिया गया है। मेला क्षेत्र के सभी रास्ते वन-वे हैं। पुलिसकर्मी सायरन बजाकर भीड़ को हटा रहे हैं। अन्य साधु संत भी पवित्र त्रिवेणी में स्नान कर देश और प्रदेश की उन्नति की कामना करते दिखे। श्रृंगवेरपुर धाम के पीठाधीश्वर नारायणाचार्य स्वामी शांडिल्य जी महाराज ने बसंत पंचमी के स्नान पर्व पर लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से स्नान कर मां सरस्वती की आराधना करने का संदेश दिया है.50 करोड़ के ऊपर पहुंच सकते है श्रद्धालु
मां गंगा, मां यमुना और अदृश्य मां सरस्वती के पवित्र संगम में श्रद्धा और आस्था से ओत-प्रोत साधु-संतो, श्रद्धालुओं, कल्पवासियों, स्नानार्थियों और गृहस्थों का स्नान अब एक नए शिखर पर पहुंच गया है। अभी महाकुम्भ को 23 दिन शेष है और पूरी उम्मीद है कि स्नानार्थियों की संख्या 50 करोड़ के ऊपर जा सकती है।
महाकुम्भ में दिखा विविध संस्कृतियों की झलक
साजिश के तहत किए गए भगदड़ के बाद भी स्नानार्थियों के जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही है। पूरे देश और दुनिया से पवित्र त्रिवेणी में श्रद्धा और आस्था के साथ डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु प्रतिदिन करोड़ों की संख्या में प्रयागराज पहुंच रहे हैं। बसंत पंचमी के अंतिम अमृत स्नान पर भी सुबह से ही करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम स्नान को पहुंचे। स्नानार्थियों में 10 लाख कल्पवासियों के साथ-साथ देश विदेश से आए श्रद्धालु एवं साधु-संत शामिल रहे।
एक नजर स्नान के आंकड़ों पर
यदि अब तक के कुल स्नानार्थियों की संख्या का विश्लेषण करें तो सर्वाधिक 8 करोड़ श्रद्धालुओं ने मौनी अमावस्या पर स्नान किया था, जबकि 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने मकर संक्रांति के अवसर पर अमृत स्नान किया था। एक फरवरी और 30 जनवरी को 2-2 करोड़ के पार और पौष पूर्णिमा पर 1.7 करोड़ श्रद्धालुओं ने पुण्य डुबकी लगाई।
ये प्रमुख लोग लगा चुके हैं डुबकी
गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ (मंत्रिमंडल समेत) संगम में डुबकी लगा चुके हैं। इसके अलावा राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल, केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी, राज्य सभा सांसद सुधा मूर्ति, असम विधानसभा अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडे, गोरखपुर के सांसद रवि किशन, हेमा मालिनी, बॉलीवुड एक्ट्रेस भाग्यश्री, अनुपम खेर, मिलिंद सोमण, एक्ट्रेस से किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं ममता कुलकर्णी, कवि कुमार विश्वास, क्रिकेटर सुरेश रैना, खली और कोरियोग्राफर रेमो डिसूजा भी संगम में स्नान कर चुके हैं।
महाकुम्भ ने दिया वसुधैव कुटुंबकम का संदेश
महाकुम्भ में भारत के हर राज्य और हर जाति लोगों ने एक साथ संगम में अमृत स्नान कर रहे है। इसके साथ दुनिया भर के कई देशों के श्रद्धालु भी पहुंचे और जय श्री राम, हर हर गंगे, बम बम भोले के उद्घोष के साथ भारतीय जनमानस के साथ घुल मिल गए। अमृत स्नान पर महाकुम्भ नगर में एकता का महाकुम्भ नजर आया। यहां भारत की सनातन संस्कृति से अभिभूत विदेशी नागरिकों ने परिवार के साथ पहुंचकर गंगा स्नान किया। जय श्री राम, हर हर गंगे का नारा लगाकर लोग उत्साह से लबरेज नजर आए।
आस्था का संगम
महाकुम्भ के इस ऐतिहासिक मौके पर संगम का तट भारतीय और विदेशी श्रद्धालुओं से पूरी तरह से भर गया। आस्था का ऐसा संगम हुआ कि संगम की रेत तक नजर नहीं आ रही थी। हर जगह सिर्फ मुंड ही मुंड नजर आ रहे थे। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश समेत हर राज्य, हर जाति के लोग और अन्य देशों से आए विदेशी नागरिकों ने संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित किया। अमेरिकी, इजरायली, फ्रांसीसी समेत कई अन्य देशों के नागरिक गंगा स्नान करते हुए भारत की सनातन संस्कृति से अभिभूत हुए। वे भी बम बम भोले के नारे लगाते हुए उत्साह से झूमते नजर आए।
महाकुम्भ से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी भारत की ब्रांडिग
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में दिव्य और भव्य महाकुम्भ का अलौकिक आयोजन किया गया है। भारत की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक शक्ति महाकुम्भ के इस बार के अद्भुत आयोजन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी ज्यादा बढ़ा दी है। महाकुम्भ में दुनिया भर के कई देशों के नागरिकों ने भाग लिया और भारत की संस्कृति को अनुभव किया। विदेशी श्रद्धालु भारत की सनातन संस्कृति से गहरे प्रभावित हुए और परिवार के साथ गंगा में स्नान किया। संगम के तट पर जय श्री राम और हर हर गंगे के उद्घोष से माहौल बना और श्रद्धालु श्रद्धा से गंगा में डुबकी लगाते रहे।
हर वर्ग, संप्रदाय के लिए समानता का भाव
महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुम्भ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। सीएम योगी का मानना है कि महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां सब एक समान हैं। करोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु, समस्त साधु, संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भण्डारों में खाना खा रहे हैं। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है, जिसे दुनिया भर से आये पर्यटक देखकर आश्चर्यचकित हैं। कैसे अलग-अलग भाषायी, रहन-सहन, रीति-रिवाज को मानने वाले एकता के सूत्र में बंधे संगम में स्नान करने चले आते हैं। साधु-संन्यासियों के अखाड़े हों या तीर्थराज के मंदिर और घाट, बिना रोक टोक श्रद्धालु दर्शन,पूजन करने जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में चल रहे अनेक अन्न भण्डार सभी भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए दिनरात खुले हैं जहां सभी लोग एक साथ पंगत में बैठ कर भोजन ग्रहण कर रहे हैं। महाकुम्भ मेले में भारत कि विविधता इस तरह समरस हो जाती है कि उनमें किसी तरह का भेद कर पाना संभव नहीं है।
अनवरत जारी है सनातन संस्कृति की परंपरा
महाकुम्भ में सनातन परंपरा को मनाने वाले शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासीन, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी से लेकर भारशिव, अघोरी, कपालिक सभी पंथ और संप्रदायों के साधु,संत एक साथ मिलकर अपने-अपने रीति-रिवाजों से पूजन-अर्चन और गंगा स्नान कर रहे हैं। संगम तट पर लाखों की संख्या में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आए हैं। अलग-अलग जाति, वर्ग, भाषा को बोलने वाले साथ मिलकर महाकुम्भ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। महाकुम्भ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी तरह के भेदभाव भुलाकर एक साथ एक भाव में संगम में डुबकी लगा रहे हैं। महाकुम्भ और मां गंगा, नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली किसी में भेद नहीं करती। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समता,एकता कि ये परंपरा प्रयागराज में संगम तट पर महाकुम्भ में अनवरत चलती आ रही है।


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