सो, मनमौजी ट्रंप से अपने रिश्तों के इस री-चार्ज से नरेंद्र भाई घरेलू सियासत में निश्चित ही मजबूत होंगे। लोकसभा चुनावों के बाद यह माहौल बन गया था कि नरेंद्र भाई बतौर प्रधानमंत्री अपना यह कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इस बार वे भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत नहीं दिला पाए हैं और बमुश्क़िल 161+79=240 सीटें ही जीते हैं। मुझे लगता है कि अव्वल तो ट्रंप हमारे नरेंद्र भाई से कभी ख़फ़ा थे ही नहीं और अगर बीच में थोड़े-बहुत रूठे हुए रहे भी होंगे तो मान-मनौवल से अब मान गए हैं। इसलिए हाथ में दोबारा आ गए ट्रंप-कार्ड के दृश्यों का लोकव्यापीकरण इस अमेरिका यात्रा में नरेंद्र भाई की सब से महती उपलब्धि है। इस से नरेंद्र भाई की भावी सियासी राह के हाशिए से झांक रही आशंकाएं ख़ुद-ब-ख़ुद दूर हो जाएंगी। मैं आश्वस्त हूं कि अब उन का यह कार्यकाल पूरी तरह अबाधित रहेगा। भारत-अमेरिका के बीच अगले पांच साल में 500 बिलियन डॉलर यानी क़रीब सवा चार सौ खरब रुपए के व्यापार अनुबंध, भारत को अमेरिका से मिलने वाले एफ-35 युद्धक विमान, ऊर्जा समझौता, मुंबई के आतंकी हमले के आरोपी के भारत प्रत्यर्पण, शुल्क दरों, अवैध भारतीय प्रवासियों की वापसी, रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत-चीन सीमा विवाद जैसे मसलों की औपचारिकताओं में जिन्हें ख़ुशी तलाशनी हो, तलाशें, मेरी आत्मा तो इस से गदगद है कि बारह-बारह बच्चों के बाप इलॉन मस्क अपने तीन नए-नकौर बच्चों को ले कर हमारे प्रधानमंत्री से मिलने ब्लेयर हाउस पहंचे। इन में वह बच्चा भी था, जिस के नाम पर मतवाले मस्क ने ट्विटर का नाम बदल कर ‘एक्स’ कर दिया है। यह वही बच्चा है, जिसे व्हाइट हाउस के अपने अधिकारिक कार्यालय ओवल रूम में ट्रंप द्वारा एक सरकारी आदेश पर दस्तख़त करते वक़्त आप ने मस्क के कंधे पर चढ़े मस्ती करते हुए तस्वीरों में देखा होगा।
इस बच्चे का पूरा नाम है ‘एक्स एश ए-12 मस्क’। संख्या और अजीबोगरीब प्रतीक चिह्न से सजे इस नाम को ले कर अमेरिका में ख़ासी खलबली मची थी। नरेंद्र भाई से मुलाकात में मौजूद मस्क के बाकी दो बच्चे थे स्ट्राइडर और अजूरे। इन की मां शिवॉन जिलिस भी साथ थीं। मगर वे मस्क की ब्याहता नहीं हैं। सहजीवन साथी हैं। वे उन की कंपनी न्यूरोलिंक में काम करती हैं। जिलिस की मां भारतीय हैं। उन का नाम शारदा है। जिलिस पहले मस्क की कंपनी टेस्ला में भी काम कर चुकी हैं। वे उन सैम ऑल्टमेन की ओपन एआई कंपनी में भी काम कर चुकी हैं, जिन से आजकल कारोबार और ट्रंप से नजदीकी के मामले में चल रही स्पर्धा की वज़ह से मस्क की तलवारें खिंची हुई हैं। यह अच्छा हुआ कि मस्क के बेटे एक्स ने नरेंद्र भाई से मुलाकात के दौरान अपने पिता के कंधे पर खेलने का शगल नहीं किया और पूरी संजीदगी से हमारे प्रधानमंत्री और मस्क के बीच हुई बातचीत सुनी। बाकी दोनों बच्चे ज़रूर थोड़े चंचल बने रहे। यह भी बहुत अच्छा हुआ कि मस्क अपनी पूर्व पत्नियों, उप-पत्नियों, सहेलियों, आदि-इत्यादि को साथ ले कर नरेंद्र भाई से मिलने नहीं पहुंचे। औपचारिक मुलाकातों को पर्सनल-टच से इतना सराबोर कर देना भी ठीक नहीं होता। भारतवासियों के लिए मस्क का इतना संदेश ही काफी है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी से अपने संबंधों को कारोबारी कम, ‘पारिवारिक’ ज़्यादा मानते हैं। फ़रिश्तों की तरह मासूम भारत के लोगों के लिए यह दृश्य-रचना ही बड़े फ़ख़्र की बात है कि उन के प्रधानमंत्री की पताका ऐसी फहर-फहर फहरा रही है कि मस्क उन्हें मस्का लगा रहे हैं और डॉनल्ड भी उन के सामने ऐसे डक बने बैठे हैं कि उन्होंने भारत की हुकूमत के एक सहचर पूंजीपति के मद्देनज़र बहुत पुराने और अर्थपूर्ण अमेरिकी क़ानून को ही विराम अवस्था में भेज दिया।
इतने सब के बाद भी जिन्हें यह सोच-सोच कर अपने-अपने आनंद भवन में बैठे रहना है, वे मजे से आलथी-पालथी मार कर बैठे रहें कि नरेंद्र भाई को ट्रंप के दबावों के सामने झुकना पड़ा है, कि अब उन्हें रूस से सस्ता तेल लेने के बजाय अमेरिका से महंगा तेल लेना पड़ेगा, कि अमेरिका ने अपने युद्धक विमान भारत पर थोप दिए, कि संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में नरेंद्र भाई की बगल में बैठ कर ट्रंप ने भारत की आयात शुल्क दरें ज़्यादा होने को ले कर एक तरह से उन्हें धमकाया, कि ट्रंप ने भारतीय डीप स्टेट को ले कर हमारे प्रधानमंत्री के मुंह पर ही प्रतिकूल टिप्पणी कर डाली, कि गौतम अडानी प्रकरण पर जानबूझ कर ऐसा सवाल पूछा गया कि नरेंद्र भाई का चेहरा फक्क पड़ गया। सो, बाल की खाल निकालने वाले न कभी बाज़ आए हैं, न अब आएंगे, मगर आप देखते रहना कि अमेरिका की इस यात्रा से लौटने के बाद प्रधानमंत्री जी के सियासी गालों का गुलाबीपन कितनी तेज़ी से दिन दूना-रात चौगुना बढ़ता है। अंतरराष्ट्रीय राजनय और वैश्विक कारोबार के अध्येता जानते थे कि भारतीय प्रधानमंत्री की यह अमेरिका यात्रा मिजाज़पुर्सी और स्व-हित के मकसद से ज़्यादा है, राष्ट्रीय हित साधने के लिए उतनी नहीं। यह भी पहले से ही मालूम था कि हमेशा की तरह ही इस बार भी पलड़ा अमेरिकी हितों के पक्ष में झुका रहेगा और नरेंद्र भाई ज़्यादा आनाकानी करने की स्थिति में नहीं होंगे। वही हुआ। ट्रंप की चंद आदरसूचक भावभंगिमाओं के छद्म का नगाड़ा पीटने वाले यह कभी नहीं समझ पाएंगे कि उन के ‘प्रधानमंत्री महोदय, आप महान हैं’ कहने में अभिधा है, लक्षणा है या व्यंजना है? ट्रंप के कहे और किए को एकदम सपाट मान लेने का भोलापन आप को मुबारक! इसीलिए मैं फिर कहता हूं कि बावजूद रसातल को जा चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था के, बावजूद बेतरह छिन्न-भिन्न हो चुके भारतीय समाज के और बावजूद कथनांक तक पहुंच चुकी आम उकताहट के यह अमेरिकी यात्रा नरेंद्र भाई के दरक रहे तानेबाने को फिर से सशक्त बनाएगी।
पंकज शर्मा
वरिष्ठ स्तंभकार
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