- भगवान शिव की पूजा से मिलता मनोवांछित फल-पंडित चेतन उपाध्याय
कथा वाचक पंडित श्री उपाध्याय ने कहा कि महायज्ञ में नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा की जाती है, जिससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव सही अर्थों में परिवार के देवता हैं, क्योंकि ये एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिनका परिवार संपूर्ण है. भगवान शिव परिवार के मुखिया हैं, लेकिन सच मायने में गौरी के हाथों में है त्रिलोक के स्वामी के घर की सत्ता. शिव को सृष्टि का प्राण माना जाता है, लेकिन शिव का प्राण गौरी में बसता है. जिस शिव के क्रोध से सृष्टि कांप उठती है, वो शिव बेचैन हो जाते हैं जब गौरी रूठ जाती है. परिवार की जिम्मेदारी, परिवार का सामंजस और परिवार का दुख-सुख शिव में जितना दिखाई देता है उतना किसी दूसरे में नजर नहीं आता. शायद यही वजह है कि शिव विवाह सनातन धर्म का सबसे बड़ा उत्सव है, जो दक्षिण से उत्तर तक सभी जगहों पर समान रूप से मनाया जाता है।शिव के साथ उनके पूरे परिवार की महिमा भी आम लोगों के मन मानस पर दर्ज है। सनातन धर्म में पूजे जाने वाले प्रमुख देवी देवताओ में भगवान् शिव, माँ पार्वती, गणेश रिद्धी, सिद्धि का विशेष स्थान है। कोई भी दैविक कार्य इनके बिना संभव नहीं हो सकता। भगवान शिव मात्र एक लोटा जल से प्रसन्न हो जाते हैं. भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं आर्य अनार्य दोनों के देवता शिव सबको लेकर चलने का सूत्र देते हैं। उनके आंगन में मोर भी है और सांप भी। साढ़ भी है और शेर भी. शिव किसी को छोड़ते नहीं है। वो विष भी ग्रहण कर लेते हैं। शिव के लिए सब समान है। इनकी बारात में सुर भी आये थे तो असुर भी। इन्हें सभी पूजते हैं। भगवान शिव शंकर की पहली जीवनसंगिनी माँ सती थी। पार्वती सती की छोटी बहन और भगवान शिव की दूसरी पत्नी हैं. ये पर्वतराज हिमालय व मैना की पुत्री हैं. पार्वती को ही शक्ति माना गया है. शरीर में शक्ति ना हो तो शरीर बेकार है. शक्ति तेज का पुंज है। मानव को हर काम में सफलता की शक्ति पार्वती यानी दुर्गा देती हैं. बिना शक्ति के कोई कार्य नहीं हो सकता। यह भगवान शिव की ताकत है। शरीर में शक्ति ना हो तो शरीर बेकार है। भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरूप में स्वयं शक्ति के महत्व को सिद्ध किया है। भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरूप से यही शिक्षा दी की मां शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं।
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