- धूम-धाम से राम सीता विवाहोत्सव सम्पन्न हुआ।
सुरसण्ड/सीतामढ़ी (रजनीश के झा)। ,हरारी दुलारपुर में आयोजित नौ दिवसीय श्रीरामकथा के व्यासपीठाधीश सह पूर्व काॅलेज प्राध्यापक डाॅ.रमेशाचार्य महाराज ने धनुष-यज्ञ एवं सीता राम विवाह प्रसंग के आलोक में कहा-महाराज जनक ने धनुष-यज्ञ में यह शर्त रखा कि जो शिव-धनुष को तोड़ेगा उसी से सीता का विवाह होगा। उस अवसर पर एक से बढ़कर एक बाहुबली राजा ने धनुष के ऊपर अपना पूरा जोर आजमा लिया पर किसी ने भी धनुष को टस से मस नहीं किया।यहाँ तक कि रावण और बाणासुर ने धनुष को छुआ तक भी नहीं।यह देखकर जनक जी निराश होकर बोल उठे-'वीर विहिन मही मैं जाना'।यह सुनकर लक्ष्मण जी क्रोधित होकर जनक जी को फटकार लगाते हुए बोले-यह सर्वथा अनुचित है।रघुवंशियों में से जहाँ एक भी कोई हो तो ऐसी वाणी नहीं बोलनी चाहिए।फिर उचित समय जानकर विश्वामित्र मुनि ने रामभद्र से कहा-उठहु राम भंजहु भव चापा,मेटहु तात जनक्संग परितापा। गुरु का आदेश पाकर रामचन्द्र ने देखते-देखते धनुष तोड़ डालते हैं।
आगे डाॅ.रमेशाचार्य ने कहा-धनुष टूट जाने के बाद सीता जी ने राम जी को विजय जयमाला पहनाकर सुशोभित किया।पुन:वैदिक रीति-रिवाज से राम-सीता का विवाह सम्पन्न हुआ।महाराज जनक ने बहुत सारा दहेज की अनमोल वस्तु देते हुए सीता की विदाई चरते हैं।विवाह दो आत्माओं का सहृदय मिलन है।प्रेम व स्वेच्छा से दिया गया दान-दहेज ही शुद्ध माना गया है।किसी पर दबाव डालकर दहेज लेना महापाप है।समाज को दहेज से दूर रहना ही श्रेयस्कर है।विदित हो कि श्रीराम कथा को सफल बनाने में अवधेश चौधरी,मनोज ठाकुर,कृष्ण ठाकुर,राजेन्दर ठाकुर,भबिखन दास,पूरन दास,संजीव झा,छोटन ठाकुर,बेचन दास,जयराम झा,सुरेश ठाकुर,मदन साव,बिरेन्दर यादव ,मिस रुबि,मिस रंगीला,निरंजन चौधरी आदि हैं।मंच संचालन रामबाबू ठाकुर ने किया।
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