विचार : पर्यावरण- उद्योगों के रसायनयुक्त प्रदूषित पानी से खेत सूखे, गाँव उजड़े - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 28 अप्रैल 2025

विचार : पर्यावरण- उद्योगों के रसायनयुक्त प्रदूषित पानी से खेत सूखे, गाँव उजड़े

  • विकास का कहर- ज़हरीली हुई  मरुधरा की जीवनधारा

मरुधरा के अनेक गाँव विकास का कहर झेल रहे हैं। यह बात उनके गाँवों और उनकी ज़िंदगी पर पूरी तरह साबित हो रही है कि विकास अपने साथ विनाश ज़रूर लाता है। इस कहर के चलते पश्चिमी राजस्थान के गांवों के ग्रामीण अपनी जान हथेली पर रखकर जीने को मजबूर हैं। विडंबना यह है कि उनकी जान के लिए कहर वही नदी बन गई है जो सदियों तक उनके लिए जीवनदायिनी थी। मारवाड़ की मरु गंगा कहलाने वाली लूणी नदी और उसकी सहायक नदी जोजरी लंबे समय से प्रदूषण और अतिक्रमण की चपेट में हैं। पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े शहर जोधपुर और निकटवर्ती बालोतरा ज़िले के कई गांव जोजरी  में छोड़े जा रहे औद्योगिक कचरे से जल प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं। इन गांवों के खेत सूख रहे हैं, मवेशी मर रहे हैं और ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया है। गांव-गांव में दुर्गंध, बीमारियां और ख़ौफ फ़ैलता जा रहा है। करीब 83 किलोमीटर लंबी जोजरी लूणी की सहायक मौसमी नदी है, जो नागौर के पंदलू गांव से निकलकर जोधपुर होते हुए कल्याणपुर से  बालोतरा के पास तिलवाड़ा में लूणी नदी में मिलती है। 


जोजरी नदी में जोधपुर के औद्योगिक इलाके की कई इंडस्ट्रीज का वेस्टेज आता है। इनमें स्टील और टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज का तेजाबी और केमिकल युक्त पानी भी शामिल है। जोधपुर की वैध के अलावा अवैध फैक्ट्रियां टेक्सटाइल के कैमिकल युक्त पानी को नदी में छोड़ देती हैं। नदी में बह रहे इस खतरनाक रसायन की जद में सालावास, नंदवान, राजेश्वर नगर, मेलबा, डोली और कल्याणपुर गांव के ग्रामीण त्रस्त हैं। करीब 40-50 किलोमीटर तक इस पानी के आसपास की जमीनें बंजर हो रही हैं। जोधपुर में लगभग 250 कपड़ा उद्योग हैं। जोधपुर के कपड़ा उद्योग ज्यादातर स्क्रीन प्रिंटिंग प्रक्रियाओं से संबंधित है। 60 प्रतिशत उद्योगों में तैयार उत्पाद मुद्रित कपड़े हैं, जबकि 40 प्रतिशत में रंगे और प्रक्षालित कपड़े हैं। इस क्षेत्र में अन्य औद्योगिक इकाइयां सीमेंट, औद्योगिक गैसों, वस्त्र, ग्वारगम, रसायन, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, खनिज आधारित आदि के निर्माण में लगी हुई हैं।


एक रिपोर्ट के अनुसार नदी में प्रतिदिन 180 एमएलडी प्रदूषित अपशिष्ट छोड़ा जाता है।

जोजरी में आ रहे इस केमिकल युक्त प्रदूषित पानी जोधपुर और बालोतरा ज़िले के पचास से ज़्यादा गांव-ढाणियों के लोगों, उनके खेतों और पशुधन को प्रभावित कर रहा है। इनमें धवा, मेलबा, लोनावास, कल्याणपुर, आरबा और डोली, राजेश्वर नगर और दूदावता जैसे गांवों में लोग जोजरी नदी से बहते काले और बदबूदार पानी से बेहाल हैं। यह ज़हरीला पानी खेतों में भरकर किसानों की फसलें नष्ट कर रहा है और बीमारियां फैला रहा है। उद्यमियों का कहना है कि  ज़्यादा समस्या इसलिए  है क्योंकि जोधपुर के सीईटीपी (इंडस्ट्रीज़ के पानी का ट्रीटमेंट प्लांट) की कैपेसिटी कम है। जोधपुर में अभी दो सौ एमएलडी क्षमता के सीईटीपी प्लांट की आवश्यकता है। जोधपुर के रीको इंडस्ट्रियल एरिया में क़रीब दो हजार फैक्ट्रियां हैं। एम्स अस्पताल का पानी भी रीको ड्रेन से होकर जोजरी नदी में मिल जाता है।जोजरी नदी में दो तरह का गंदा पानी जा रहा है, बिना ट्रीटमेंट के इंडस्ट्रीज़ का पानी और सीवर का पानी। यहाँ की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ में कई तरह की डाइ पाई गई है तो स्टील इंडस्ट्रीज़ से कॉपर, क्रोमियम,बैटरी से कैडमियम। जोधपुर से गुजरते समय इतनी बड़ी मात्रा में घरेलू और इंडस्ट्रियल अपशिष्ट छोड़ा जाता है, जिससे नदी में बहाव शुरू हो जाता है। जोधपुर के अधिकांश उद्योग अपने अपशिष्ट जल को बिना किसी उपचार के सीधे नालियों के माध्यम से जोजरी नदी में बहा रहे हैं। लंबे समय तक अपशिष्ट छोड़ने से अपने बहाव क्षेत्र को छोड़कर तीन किलोमीटर पूर्व में बहने लगी इस विषैले पानी की वजह से जल स्रोत, कुएं-तालाब, स्कूल,अस्पताल, तक भी दूषित चुके हैं। हालांकि उद्योगों का प्रदूषित पानी लगभग डेढ़ दशक से बहाया जा रहा है।  लेकिन तीन -चार साल से यह समस्या गहराती जा रही है। जैसे-जैसे प्रदूषित पानी की समस्या बढ़ी है, तो उसका प्रभाव स्कूलों में बच्चों के नामांकन पर भी हुआ है। स्कूलों में बच्चों की संख्या घटने लगी है। जो बच्चे हैं वो दुर्गंध से खांसते रहते हैं, बीमार रहते हैं। रात में गांव गैस के चैंबर बन जाते हैं। घरों  में दरारें आ गई हैं और पानी के टांके से गंदा पानी निकल रहा है। जिन घरों के पास ये पानी बहता है, वहां दीवारों और फ़र्श में दरारें आ चुकी हैं।


जोजरी में फैल रहे ज़हर को लेकर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय,जोधपुर के केमिस्ट्री विभाग की वंदना कछवाहा, गरिमा शर्मा, प्रिया तंवर और पल्लवी मिश्रा ने ‘एसेसमेंट ऑफ़ वाटर क्वालिटी इंडिसेज़ ऑफ़ हैवी मेटल पॉल्यूशन इन जोजरी रिवर’ पर शोध किया है। उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि जोजरी नदी के सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले औद्योगिक अपशिष्ट पानी में सीसा, क्रोमियम और कैडमियम की उच्च सांद्रता आसपास रहने वाले लोगों में सांस संबंधी विकार, लीवर, गुर्दा, तंत्रिका संबंधी समस्याएं, पेट संबंधी समस्याएं और कैंसर का कारण बन सकती हैं, जो इस पानी से उगाई गई सब्जियां, अनाज और दालें खा रहे हैं। मनुष्य के अलावा इसका नकारात्मक प्रभाव पशुओं पर भी पड़ रहा है। जोजरी के विषैले पानी में नाइट्रेट की मात्रा बहुत ज़्यादा है। ये नाइट्रेट पानी या चारे के माध्यम से पशुओं के पेट में जाता है जो नाइट्राइट बनता है जिससे पशुओं की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, उनकी ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता भी बेहद कम हो जाती है जिसका प्रभाव पशु के जीवन चक्र पर पड़ता है वो कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। उनके खुर सड़ने लगते हैं। पशु प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं। इसके कारण कई पशुओं की मौत भी हो चुकी है। केमिकल युक्त पानी से रोहिड़ा, खेजड़ी जैसे सैकड़ों पेड़ सूख गए हैं। प्रदूषित पानी से गाँवों में किसानों की खेती उजड़ने लगी है, पेड़ सूखने लगे हैं । खेतों में सफेद परत जम चुकी है और उपजाऊपन कम हो रहा है। फसलों में  विषाक्त अवयवों की अधिकता पाई जा रही है इससे ज़मीन भी बंजर होती जा रही है। डोली गाँव की भूमि कई स्थानों पर औद्योगिक अपशिष्टों से भर गई है इससे खेती की जमीन खराब हो रही है। क्षेत्र में ताजे पानी के स्रोत जैसे कुएं, तालाब और भूजल प्रदूषित हो गए हैं और अब उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं हैं। वे अपने मवेशियों के नहाने और पीने के लिए पानी की कमी से भी पीड़ित हैं। इन सब हालात में करीब आधा दर्जन से ज्यादा लोग गांव से पलायन कर गए हैं। अराबा दुदावता गांव में कई परिवार अपना घर भी छोड़कर जा चुके हैं।


हालांकि इस समस्या के समाधान के लिए बजट में 176 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है लेकिन यह नाकाफ़ी है। जोजरी नदी का दूषित पानी  से जैव विविधता भी नष्ट होने लग गई है। धवा और डोली गांव सहित आसपास के क्षेत्र में पहले बड़ी संख्या में चिंकारा, नीलगाय, खरगोश, पोक्योपाइन, रेगिस्तानी लोमड़ी और कुछ अन्य दुर्लभ रेगिस्तानी सरीसृप रहते थे। लेकिन अब उनके जीवन पर जोजरी नदी के दूषित पानी की वजह से संकट पैदा हो गया। वन्यजीवों की संख्या में भी गिरावट आई हैं। भारत के विलुप्त होते जा रहे जानवरों में से एक काला हिरण और अन्य वन्यजीव निवास स्थान डोली और अराबा गांव के बीच एनीकट के पास देखे गए थे, जो दूषित अपशिष्ट जल के कारण खतरे में हैं। ऐसे में समय रहते अगर सरकार और स्वयं उद्यमियों ने कदम नहीं उठाए तो स्थिति ज़्यादा भयावह हो सकती है।





Harish-shivnani

हरीश शिवनानी

(वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार)

ईमेल :shivnaniharish@gmail.com

संपर्क : 9829210936

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