जम्मू कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में हमास स्टाइल में हुए आतंकी हमले के बाद देश का हर शख्स बेचैन है, और ट्रंप से लेकर पुदीन सहित पूरी दुनिया चिंतित। या यूं कहे पाक परस्त आतंकी घटना से देश का हर नागरिक गुस्से में है और चाहता है कि सरकार अब हर आंसू का हिसाब करें। वैसे भी यह सामान्य आतंकी घटना नहीं बल्कि, पाकिस्तान की भारत के विरुद्ध खुले युद्ध की घोषणा है। मोदी सरकार को इसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। घटना में शामिल आंतकी पूरे देश के गुनहगार है। जल्द ही सर्जिकल स्ट्राइक या इससे बड़ा कार्रवाई कर उन्हें उनकी गुनाहों की सजा दी जानी चाहिए। इन्हीं इच्छाओं एवं जनभावनाओं के दबाव के बीच आतंकियों को करारा जवाब देने की संकल्पबद्धता को दुहराते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनका धरती के आखिरी छोर तक पीछा कर नेस्तनाबूद करने की बात कहीं है। मोदी के इस ऐलान व जवाबी कार्रवाई से तमतमाएं पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई कर आग में घी डाल दिया है। पाकिस्तान के सिंधु जल समझौता स्थगित करने को युद्ध जैसा बताने के बाद सुरक्षा बल तो सतर्क हो गए हैं, भारतीय सेना भी युद्धाभ्यास में जुट गई है। खास यह है कि केंद्र सरकार और सुरक्षा बल आतंकियों और उनके पनाहगारों पर बड़ा वार करने की तैयारी में नजर आ रहे हैं। मतलब साफ है भारत के 140 करोड़ लोगों की इच्छाशक्ति अब आतंक के आकाओं की कमर तोड़कर रहेगी

फिरहाल, अब पाकिस्तान को सबक सीखानें का समय आ गया है। यह कायराना हरकत है और सीधे हमारी सेनाओं और सरकार को आतंकियों ने चुनौती दी है। शायद यही वजह है कि देश के लोगों की भावनाओं के अनुरुप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की धरती से आतंकियों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि हमले के जिम्मेदार हर आतंकी और उसके समर्थकों की पहचान की जाएगी। उनकी पृथ्वी के आखिरी छोर तक पीछा किया जाएगा और ऐसी सजा दी जाएगी जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। आतंकियों की बची-खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। भारत के 140 करोड लोगों की इच्छाशक्ति अब आतंक के आकाओं को कमर तोड़ कर रहेगी। यह अलग बात है कि यह सब तभी संभव हो पायेगा जब जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों को आतंक के खिलाफ भरोसे में लेते हुए पूरे विपक्ष साथ होगा और यह सब करने के लिए भारत को संयम के साथ सख्त नीति अपनानी होगी। न ज्यादा शांत, न ज्यादा आक्रामक बल्कि सर्जिकल, स्मार्ट और रणनीतिक चरणबद्ध योजना बनानी होगी। पाकिस्तान को एक ऐसा संदेश जाना चाहिए कि भारत शांति चाहता है, लेकिन कमजोरी नहीं है। ठीक उसी तरह जैसे 2016 का उरी हमला और सर्जिकल स्ट्राइक, “स्ट्रैटेजिक रिस्ट्रेंट डॉक्ट्रिन“ (1999 के बाद अपनाई गई संयम की नीति) को बदलने की जरूरत महसूस हुई और संदेश गया कि भारत अब केवल रक्षा नहीं, आक्रामक जवाब भी देगा, सीमित, सटीक और तेज।

खास यह है कि अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को स्वीकार किया। इससे पाकिस्तान को कूटनीतिक झटका लगा, क्योंकि दुनिया ने उसे ही “आतंकियों को शरण देने वाला“ माना। पुलवामा हमला और बालाकोट एयर स्ट्राइक (2019)। देखा जाएं तो यह भी आत्मघाती हमला था, जिसमें भारत के 40 जवान मारे गए। यह एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक और राष्ट्रीय झटका था। भारत ने पहली बार पाकिस्तान के अंदर जाकर हवाई हमला किया। यह “नए भारत“ की सैन्य नीति का प्रतीक था। इसे भी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित सभी ने भारत के रुख को समर्थन दिया। यह अलग बात है कि पाकिस्तान ने जवाब में हवाई हमला किया, लेकिन भारत ने उसका भी मुकाबला किया। (अभिनंदन वाला प्रकरण)। कारगिल युद्ध (1999), यह एक ऐसी स्थिति थी जब पाकिस्तानी सैनिक और आतंकवादी भारतीय क्षेत्र में घुस आए थे। लेकिन सीमित व तीव्र सैन्य कार्रवाई में भारत ने कारगिल से घुसपैठियों को खदेड़ा और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग हुआ। जहां तक लगातार फायरिंग और सीजफायर उल्लंघन का मामला है तो उसका मकसद सिर्फ आतंकियों की घुसपैठ कराना होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि पाकिस्तान के खिलाफ साइबर मोर्चे से लेकर व्यापार और कूटनीतिक संबंधों में सीमाएं तय करते हुए उसे चोट पहुंचाया जा सकता है। यह अलग बात है कि आतंकवाद को केवल बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से भी रोकने की जरूरत होगी। इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करना, सेना और पुलिस की तैनाती बढ़ाना, हाईवे और तीर्थयात्रा रूट्स की निगरानी, ड्रोन और आधुनिक तकनीक का उपयोग, इंटेलिजेंस नेटवर्क को मजबूत करना, लोकल इंटेलिजेंस की भागीदारी बढ़ाना, संदिग्ध गतिविधियों पर नजर, सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को रोकना, राजनयिक और वैश्विक दबाव बनाना, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मामला उठाना, स्थानीय लोगों का सहयोग लेना, लोगों में भरोसा बनाना कि वे आतंकियों के खिलाफ खड़े हो, विकास योजनाओं में स्थानीयों की भागीदारी, मीडिया और अफवाहों पर नियंत्रण करते हुए सही जानकारी लोगों तक पहुँचना आदि कार्यो को करना होगा।

जहा ंतक पाकिस्तान सवाल है तो वह अक्सर आतंकवादी संगठनों का उपयोग “प्रॉक्सी वॉर“ के रूप में करता रहा है। कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में आतंकी घटनाओं से भारत में अस्थिरता फैलाना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे को ज़िंदा रखना, भारत को सुरक्षा मोर्चे पर मजबूर करना, जैसे रणनीतिक उद्देश्य पूरे किए जाते हैं। भारत के जवाब में पाकिस्तान ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद भारत के साथ व्यापार पर रोक, वाघा बॉर्डर बंद करने और भारतीय विमानों के लिए पाकिस्तानी वायुक्षेत्र के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला किया है. लेकिन जाहिर है, इनका भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला. ऐसे ही, सिंधु जल समझौता स्थगित करने के भारतीय फैसले को पाकिस्तान ने जिस तरह युद्ध का एलान बताया है, वह उसकी गीदड़ भभकी ही ज्यादा है. सच तो यह है कि पाकिस्तान आज दुनिया में जिस तरह अलग-थलग पड़ गया है, वैसी स्थिति में वह इससे पहले कभी नहीं था. अमेरिका, अफगानिस्तान, खाड़ी देश- कहीं उसका कोई मददगार नहीं है. अमेरिकी कारोबारी आक्रामकता का सामना करते चीन के पास भी फिलहाल पाकिस्तान के साथ खड़े होने का अवसर नहीं है.

ध्यान रखना चाहिए, अभी तो सिर्फ पाकिस्तान को घेरने की कवायद की गयी है. उसके खिलाफ सख्त सैन्य कार्रवाई का विकल्प भी खुला है. माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में हमारी सरकार पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करेगी. जैसा कि उसने उरी और पुलवामा हमलों के बाद किया था. पाकिस्तान को भी इसका अंदेशा है. इसी कारण उसने पाक अधिकृत कश्मीर स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को तत्काल खाली करने का निर्देश दिया है. इसके अलावा नियंत्रण रेखा के पास हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है. पाकिस्तान सरकार और उसकी सेना ने भी बैठक बुलायी है. यह भी तय है कि हमारी सैन्य कार्रवाई की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करेगा. इसलिए हमें सैन्य कार्रवाई करते हुए पूरी तैयारी रखनी होगी और किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा. ऐसा नहीं होना चाहिए कि सैन्य कार्रवाई के बाद हम शांत हो जायें. इसलिए पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी कार्रवाई से पहले हमें युद्ध जैसी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा. आतंकवादियों के मददगार और प्रायोजक के खिलाफ सभी मोर्चों पर जंग शुरू करने का यह उचित समय है, ताकि उसे सबक सिखाया जा सके.
आतंकवादी संगठन, अलगाववादी तथा पाकिस्तान भूल रहे हैं कि भारत, जम्मू-कश्मीर और वैश्विक अंतरराष्ट्रीय स्थितियां बदली हुई हैं. कश्मीर के स्थानीय लोगों को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बदली स्थिति का लाभ मिला है. खुलकर हवा में सांस लेने लगे हैं, बच्चे पढ़ने लगे हैं, खेलकूद व सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग ले रहे हैं और सबसे बढ़कर विकास उनके घर तक पहुंच रहा है. पहले की तरह वहां आतंकवादियों से मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्रदर्शन और पत्थरबाजी नहीं दिखती. यह तो नहीं कह सकते कि आतंकवादियों का स्थानीय समर्थन बिल्कुल खत्म हो गया है, पर स्थिति पहले की तरह नहीं है. कभी पाकिस्तान को अमेरिका या कुछ यूरोपीय देशों की अंतरराष्ट्रीय नीति के कारण शह मिल जाती थी, किंतु अब वह अकेला है. अफगानिस्तान तक उसके विरुद्ध खड़ा है. ज्यादातर प्रमुख मुस्लिम देश भी पाकिस्तान का साथ देने को तैयार नहीं. भारत की स्थिति भी पिछले 10 साल में काफी बदली है. दो बार सीमापार कार्रवाई करके प्रदर्शित भी किया गया है कि हम प्रायोजित आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने वाले देश बन चुके हैं.
अमेरिका, रूस और यूरोपीय देश ही नहीं, कई मुस्लिम देशों ने इस घटना में भारत के साथ होने का बयान दिया है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी अगर दोषियों को बख्शे नहीं जाने की बात कर रहे हैं और अमित शाह मोर्चा संभाले हुए हैं, तो आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के लिए अब तक का सबसे बुरा समय होगा. पहलगाम में हुआ आतंकी हमला जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों से किए जा रहे शांति के प्रयासों को पटरी से उतारने वाली हरकत है। धर्म पूछ-पूछकर हत्या करना न सिर्फ घाटी बल्कि, पूरे देश में सांप्रदायिक आग भडक़ाने और राज्य की आर्थिक रीढ़ तोडऩे की नीयत से किया गया जान पड़ता है। इस हमले ने अनुच्छेद 370 स्थगित करने और उसके बाद विकास को पंख देने के प्रयासों को तगड़ा झटका दिया है। दरअसल, आतंकी आकाओं को यह बात बर्दाश्त नहीं हो रही है कि जम्मू-कश्मीर के लोग आर्थिक रूप से सक्षम हो जाएं। अब तक वे राज्य के लोगों को गुमराह करने के लिए वहां की आर्थिक बदहाली का ही फायदा उठाते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में घाटी में विकास की नई बयार बहने लगी है। जनता से पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में हिस्सा लेकर अपने फर्जी रहनुमाओं को स्पष्ट संदेश दे दिया था। यह सब पाकिस्तान को कैसे रास आता। पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने तो आतंकी गुटों को उकसाने वाला बयान भी दिया था। सिंधु जल संधि पर भारत में पहले भी सवाल उठते रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्वी इलाकों के लिए जीवन रेखा माने जाने के बावजूद सिंधु का ज्यादातर पानी बिना किसी इस्तेमाल के समुद्र में चला जाता है। दूसरी तरफ, इस संधि के कारण भारत चाहकर भी पानी का इस्तेमाल नहीं कर पाता। ऐसी संधि को नीतिगत चूक के रूप में देखा जाता रहा है। इसको दुरुस्त करने का भी यह अच्छा मौका है। इस संधि को स्थगित करके भारत ने बताया है कि जल कूटनीति का रणनीतिक इस्तेमाल करने का समय आ गया है।

सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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