21 अप्रेल को लोकसेवा दिवस पर राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित राज्यस्तरीय समारोह में राजस्थान ब्यूरोक्रेसी के मुखिया सुधांश पंत का संदेश इसलिए समसामयिक और अर्थपूर्ण हो जाता है कि उन्होंने पी-2 व जी-2 की चर्चा करने के साथ ही लोकसेवकों को महत्वपूर्ण संदेश दिया है वह पीए से पीए की और रुपांतरण का संदेश है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसेवक अपने आपको प्रीविलेज ग्रुप का मानता है और समाज में भी उसकी हैसियत प्रीविलेज में ही होती है ऐसे में लोकसेवक का जीवन स्तर और सामाजिक स्तर समाज के अन्य वर्ग के लोगों से अलग हो जाता है। ऐसे में लोकसेवक के प्रति आमजन और सरकार के संचालकों की अपेक्षाएं भी काफी बढ़ जाती है। पर महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि लोकसेवक के प्रति समाज में जो अलग तरह का नजरिया बना हुआ है जिसमें काम को अनावश्यक रुप से डिले करने सहित अन्य नकारात्मक बिन्दु शामिल होते है। वह लोकसेवक को लेकर समाज में एक अलग ही तरह की धारणा बना देती है। ऐसे में राजस्थान ब्यूरोक्रेसी मुखिया मुख्यसचिव सुधांश पंत ने लोकसेवकों को जो संदेश पीए के स्थान पर पीए यानी कि परसनल एजेंडा के स्थान पब्लिक एजेंडा पर काम करने का संदेश दिया है वह अपने आपमें लोकतांत्रिक व्यवस्था में ब्यूरोक्रेेसी को सही दिशा देने के साथ ही ब्यूरोक्रेसी की भूमिका को स्पष्ट करता है। हांलाकि ब्यूरोक्रेसी के अधिकांश सदस्य अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति गंभीर होने के साथ ही अपने कार्य को प्रभावी तरीके से अंजाम देते हुए सरकार के जनहितकारी एजेंडा को धरातल पर उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में ब्यूरोक्रेसी की खास भूमिका होती है। सशक्त ब्यूरोक्रेटिक ढाँचे के बिना सरकारी, सार्वजनिक या निजी संस्था के सफलतापूर्वक संचालन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सुधांश पंतं ने पी-2 यानी कि प्रो पिपुल-प्रो एक्टिव होने की आवश्यकता प्रतिपादित करने के साथ ही जी-2 यानी कि गुड गवर्नेंस का संदेश दिया और इसी को आगे बढ़ाते हुए ब्यूरोक्रेसी को पीए से पीए यानी कि परसनल एजेंडा के स्थान पर पब्लिक एंजेडा को तरजीह देने पर जोर दिया। सही मायने में देखा जाए तो ब्यूरोक्रेसी में इसी सोच की आवश्यकता है जिसे सुधांश पंत ने समझा है और समूची ब्यूरोक्रेसी तक इस संदेश का पहुंचाने का प्रयास किया है।
भारतीय चिंतकों से लेकर देश-दुनिया के जाने माने चिंतकों ने ब्यूरोक्रेसी के महत्व को स्वीकारने के साथ ही ब्यूरोक्रेसी की भूमिका भी अपने अपने तरीके से तय की है। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में ब्यूरोक्रेसी यानीकि नौकरशाही के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन आज हम जिस रूप में ब्यूरोक्रेसी को देखते हैं उसको किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। प्राचीन मिस्र और रोम में भी नौकरशाही की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन प्राचीन नौकरशाही प्रमुखतः राजशाही पर आधारित थी, शासक के निजी विचार व भावनाओं पर शासन चलता था। किंतु आज की नौकरशाही कानून कायदों से चलने वाली व्यवस्था है। फ्रांसीसी अर्थशास्त्री विन्सेट डी गोर्नी ने 1745 में ब्यूरोक्रेसी शब्द का प्रयोग किया। नौकरशाही या ‘ब्यूरोक्रेसी’ लेटिन भाषा के ‘ब्यूरो’ जिसका अर्थ है ‘मेज’ और ग्रीक भाषा के ‘क्रेसी’ जिसका अर्थ है ‘शासन’ से मिलकर बना है। इस प्रकार ‘ब्यूरोक्रेसी’ का तात्पर्य ‘मेज का शासन’ से है। ब्यूरोक्रेसी को कर्मचारीतंत्र, अधिकारीतंत्र के साथ ही नकारात्मक अर्थो में लाल फीताशाही के रुप मेें भी जाना जाता रहा है। जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार नौकरशाही का अर्थ समाज में सरकार के व्यावसायिक रूप से दक्ष प्रशासकों से है। हैरोल्ड जोसेफ लॉस्की ने बताया कि एक सरकारी व्यवस्था में अधिकारियों का शासन ही नौकरशाही है। हर्मन फाईनर ने बताया कि, प्रशासकों या अधिकारियों द्वारा किया गया शासन ही नौकरशाही है। वहीं मार्शल ई. डिमॉक का कहना है कि नौकरशाही एक वृहत रूप में केवल संस्थावाद का नाम है। जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर पहले ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने नौकरशाही के नकारात्मक पहलुओं के बजाय सकारात्मक पहलुओं पर ज्यादा बल दिया और नौकरशाही के आदर्श मॉडल का प्रतिपादन किया। वेबर ने नौकरशाही के बारे में बताया कि नियुक्त किये गए अधिकारियों का समूह नौकरशाही कहलाता है अर्थात् प्रत्येक वह व्यक्ति जो नियुक्त है, नौकरशाह है। साल 1920 में वेबर की किताब ‘’विर्टशॉफ्ट एंड गेसलशॉफ्ट प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने सत्ता के तीन रूप परंपरावादी सत्ता, चमत्कारिक सत्ता एवं कानूनी सत्ता बताया।
शासन में ब्यूरोक्रेसी की भूमिका लगभग तय होती है, जहां चुनी हुई सरकार कानून कायदे, योजनाओं, कार्यक्रमों या यों कहें कि अपना एजेंडा प्रस्तुत करते हैं वहीं धरातल पर अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी व अहम भूमिका ब्यूरोक्रेसी की होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रजातंत्र में चुनी हुई सरकार की ईच्छा शक्ति और वीजन का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है पर इसे भले ही अतिशयोक्तिपूर्ण माना जाए पर सचाई यही है कि आज विकास की जो तस्वीर देखने को मिल रही है इसे धरातल पर लाने में ब्यूरोक्रेसी की प्रमुख भूमिका रही है। ऐसे में सुधांश पंत का पीए से पीए अर्थात् परसनल एजेंडा से पब्लिक एजेंडा को महत्व देने का संदेश लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। ब्यूरोक्रेसी सरकार के एजेंडा को धरातल पर उतारकर आमजन तक उसका लाभ पहुंचाने का प्रयास करती है। अब परसनल एजेंडा के चलते क्रियान्वयन स्तर पर कमी रह जाती है और इसी को भलीभांति समझते हुए राजस्थान के ब्यूरोक्रेसी के मुखिया सुधांष पंत ने कार्यक्रम के माध्यम से समूची ब्यूरोक्रेसी को एक सकारात्मक संदेश देने का सफल प्रयास किया है। केवल एजेंडा की प्राथमिकता बदलने मात्र से काफी कुछ सुधार हो सकता है और इसका सीधा सीधा लाभ आमजन को मिलने के साथ ही सरकार को भी मिलता है इसके साथ ही सरकार की सकारात्मक छवि बनती है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
स्तंभकार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें