- जेएनयू छात्र संघ का परिणाम देश व बिहार को आश्वस्त करने वाला, एकताबद्ध होकर बिहार में इंडिया गठबंधन बढ़ रहा आगे, एनडीए की विदाई तय
- सांप्रदायिक हिंसा या विभाजन आतंकवाद को खत्म नहीं कर सकता, इससे समाज में और अस्थिरता पैदा होगा
सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया में सरकार जिस तरह से इस मुद्दे का राजनीतिक उपयोग कर रही है, वह आपत्तिजनक है। पुलवामा हमले के समय प्रधानमंत्री शूटिंग में व्यस्त थे। आज भी वे पहले कश्मीर जाने के बजाय सीधे चुनाव प्रचार में व्यस्त हो गए। सरकार की प्राथमिकता चुनाव है, शासन और सुरक्षा नहीं। यह रवैया पूरे देश को उचित नहीं लग रहा। और जब जनता सवाल पूछती है, तो उन्हें जवाब देने के बजाय, सवाल पूछने वालों - जैसे कलाकार नेहा सिंह राठौर - पर मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। देशभर में पहलगाम की आड़ में कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और आम नागरिकों पर हो रहे हमलों की हम कड़ी निंदा करते हैं। यह पूरी तरह गलत है और संविधान के मूल्यों के खिलाफ है। देश की एकता, भाईचारा और सामाजिक समरसता को नुकसान पहुँचाने वाली ऐसी घटनाएं अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं। और भी चिंताजनक बात यह है कि केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री श्री पीयूष गोयल खुद देश की जनता की देशभक्ति पर सवाल उठा रहे हैं। आज देश के भीतर प्रवासी मजदूरों, मुस्लिम समुदाय और अन्य कमजोर वर्गों पर जिस तरह के हमले हो रहे हैं, वे न केवल अन्यायपूर्ण हैं, बल्कि देश को भीतर से कमजोर करते हैं। किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा या विभाजन आतंकवाद को खत्म नहीं करता - बल्कि समाज में और अस्थिरता पैदा करता है। हम पूछना चाहते हैं - अगर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी है, तो सरकार निर्दोष नागरिकों को क्यों निशाना बना रही है जो खुद पीड़ित हैं? जहाँ तक भारत और पाकिस्तान के बीच सीमित कानूनी या मानवीय संवाद का सवाल है, उन पर रोक लगाकर आतंकवाद पर क्या असर पड़ेगा? क्या इससे दोनों देशों के आम लोगों के बीच विश्वास और संवाद के रास्ते और ज्यादा बंद नहीं हो जाएंगे? हमें आतंकवाद से दृढ़ता से लड़ना चाहिए, लेकिन वह लड़ाई संविधान, न्याय और लोकतंत्र के दायरे में रहकर होनी चाहिए न कि समाज के भीतर नफरत और डर फैलाकर।
जब से मोदी जी आए जेएनयू को निशाना बनाया गया. इस बार का चुनाव पहलगाम घटना की आड़ में भाजपा द्वारा उन्माद पैदा करने की कोशिशों के माहौल में हुई. और इस बार वहां लेफ्ट की व्यापक एकता भी नहीं बनी. लेकिन एक बार फिर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व महासचिव पद पर आइसा-डीएसएफ उम्मीदार को जीत मिली. अध्यक्ष पद पर अररिया के नीतीश कुमार और महासचिव पद पर पटना की ही एक मुस्लिम छात्रा चुनी गईं हैं. बिहार और पूरे देश को आवश्वस्त करने वाला जनादेश है। बिहार चुनाव में लोकसभा चुनाव 2024 के बाद जो विधानसभा चुनाव हुए - उसमें हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में बीजेपी को बड़ी सफलता मिली, वह भी खासकर महाराष्ट्र में। लेकिन झारखंड में अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। बिहार, जो भौगोलिक रूप से झारखंड के बिल्कुल नजदीक है और राजनीतिक परिदृश्य भी झारखंड जैसा है, बिहार का चुनाव झारखंड जैसा होगा। इंडिया गठबंधन एकताबद्ध होकर आगे बढ़ रहा है. समन्वय समिति बन गई है. कई और सब कमिटियां बन रही हैं. 20 मई को ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के सवालों को लेकर इंडिया गठबंधन मजबूती से सड़कों पर उतरेगा.

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