पूर्णिया : "रेणु-स्मृति-पर्व 2025" – जनपद साहित्य के पुरोधा को श्रद्धांजलि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 9 अप्रैल 2025

पूर्णिया : "रेणु-स्मृति-पर्व 2025" – जनपद साहित्य के पुरोधा को श्रद्धांजलि

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पूर्णिया, 9 अप्रैल, (रजनीश के झा)। साहित्य, संस्कृति और समाज के अनूठे संगम का प्रतीक बनकर "रेणु-स्मृति-पर्व 2025" का आयोजन इस वर्ष 11-12 अप्रैल को पूर्णिया में होने जा रहा है। यह आयोजन बिहार विधान परिषद के उपसभापति प्रो. (डॉ.) रामबचन राय की प्रेरणा से संभव हो सका है, जिनकी पहल पर देश भर के शीर्ष साहित्यकार इस आयोजन में एकत्रित हो रहे हैं। फणीश्वरनाथ रेणु – जिनकी पहचान न केवल हिंदी साहित्य के एक महान कथाकार के रूप में है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम (भारत और नेपाल दोनों) में उनकी सक्रिय भागीदारी भी उल्लेखनीय रही है – को यह आयोजन समर्पित है। उन्हें क्षेत्रीय साहित्य का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि माना जाता है, जो प्रेमचंद की परंपरा के सबसे सशक्त उत्तराधिकारी हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक एवं सचिव डॉ. के. एस. राव, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता गगन गिल, वरिष्ठ लेखिका प्रो. मंजुला राणा, आलोचक डॉ. चितरंजन मिश्रा, प्रो. रामधारी सिंह दिवाकर जैसे अनेक साहित्यिक पुरोधा इस पर्व में सम्मिलित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त पूर्णिया व कोसी सीमांचल क्षेत्र के प्रमुख साहित्यकारों की भी सहभागिता सुनिश्चित हुई है। 11 अप्रैल को प्रातः 10:00 बजे उद्घाटन सत्र आयोजित होगा, जिसका स्थल विद्या विहार रेजिडेंशियल स्कूल, परोरा, पूर्णिया है।


इस कार्यक्रम का संयुक्त आयोजन पूर्णिया विश्वविद्यालय एवं विद्या विहार रेजिडेंशियल स्कूल द्वारा किया जा रहा है। पूर्णिया विश्वविद्यालय की ओर से प्रो. ज्ञानदीप गौतम को समन्वयक नियुक्त किया गया है। आयोजन समिति की ओर से प्रो. (डॉ.) रत्नेश्वर मिश्रा ने प्रेस को कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कला भवन, पूर्णिया के नाट्य विभाग द्वारा रेणु जी की प्रसिद्ध कहानी "पंचलेट" पर आधारित नाट्य प्रस्तुति होगी, जिसका निर्देशन एवं नेतृत्व श्री विश्वजीत कुमार सिंह कर रहे हैं। इस नाटक में झारखंड से आए प्रसिद्ध अभिनेता दिनकर शर्मा सहित कई वरिष्ठ रंगकर्मी मंच पर प्रस्तुति देंगे। कार्यक्रम के दूसरे दिन, 12 अप्रैल को सभी आमंत्रित अतिथि फणीश्वरनाथ रेणु के पैतृक गांव "औराही हिंगना" की यात्रा करेंगे, जहाँ वे उनके जीवन और रचनात्मक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त करेंगे। "रेणु-स्मृति-पर्व" न केवल साहित्य को स्मरण करने का अवसर है, बल्कि जनपद की चेतना, भाषा और संस्कृति को पुनः जीवंत करने का प्रयास भी है।

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