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सोमवार, 14 अप्रैल 2025

पटना : अम्बेडकर ने न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में मदद किया

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पटना, 14 अप्रैल (रजनीश के झा). अखिल भारतीय शान्ति व एकजुट ता संगठन ( ऐप्सो) और भारतीय सांस्कृतिक सहयोग और मैत्री संघ ( इस्कफ) के संयुक्त तत्वाधान में आम्बेडकर जयंती के अवसर पर विमर्श का आयोजन किया. विषय था 'डॉ अम्बेडकर की विरासत और संविधान पर खतरे'. इस  मौके पर पटना शहर के बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, विश्वविद्यालयों  के प्रोफ़ेसर आदि उपस्थित थे. शिक्षाविद रौशन ने विषय प्रवेश करते हुए कहा " आम्बेडकर ने आर्टिकल 32 को भारतीय संबिधान की आत्मा बताया था.  नीति निर्देशक तत्वों को आइए लक्ष्य के रूप में रखा गया था. एसी संविधान की प्रस्तावना 'हम भारत के लोग' के रूप में व्याख्या करता है. लेकिन पिछले दस सालों से हम देख रहे है कि जैसे हम भारत के लोग का अस्तित्व नहीं है. लोकतंत्र का मकसद होता है भागीदारी. हमारी भागीदारी में चुनाव आयोग का महत्व है लेकिन इस संस्था को सत्ता के समक्ष समर्पण कर दिया है. यही हाल न्यायपालिका का देख रहे हैं. आज न्याय पालिका बुनियादी अधिकारों कि खत्म कर रहे हैं.  चीफ जस्टिस खुद पूजा पाठ करते देखे जाते हैँ. " अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए ऐप्सो के राज्य महासचिव ने कहा " आज अम्बेडकर जयंती वे लोग भी मना रहे हैँ जो उनके विरोधी हैँ.  चार सौ पार का नारा देकर संविधाम बदलने वाले लोग भी उनका नाम लेने पर मज़बूर हैँ. अम्बेडकर की विरासत की व्याख्या अलग अलग ढंग से कर रहे हैँ. अम्बेडकर सिर्फ संविधान सभा के रचयिता ही नहीं हैँ, एक एक धारा को अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर रचना की थी. यही हमारे राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष की भावना काम कर रही थी. " बाबा साहेब के रास्ते पर चलो' यह कहना आसान है लेकिन अम्बेडकर कैसे इतने बड़े बने तक उनकी विरासत और संघर्ष के मर्म को नहीं समझ पाएंगे. अम्बेडकर के पिता सरकारी नौकरी करते थे वहाँ के शिक्षक ने इनकी मेधा पहचानकर इनका नाम अम्बेडकर रखा. उनको बचपन में यात्रा के दौरान बैलगाड़ी वाले ने अछूत होने के कारण गाड़ी पर बिठाने से इंकार कर दिया था. कोई हज्जाम बाल काटने को तैयार नहीं होता था उनकी बहन बाल काटती थी. अन्य छात्रों की तरह संस्कृत पढ़ने और कविता पाठ करने की इजाजत नहीं थे. ऊँचे जाति के लोग उनको पानी पिलाने से इंकार करता पड़ा था. इसके बाद भी वे टूटे नहीं  और कोलम्बिया, बौन विश्वविद्यालय में पढ़ाई की थी.  जिस लड़ाई जो अम्बेडकर ने आगे बढ़ा या था उसे आज पलटने की कोशिश की जा रही है. आज धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला किया जा रहा है. हमें उन ठगों से सावधान रहना पड़ेगा जो प्रेरणा स्थल और दीक्षा भूमि में आते जाते रहते हैं."


प्राथमिक शिक्षकों के नेता भोला पासवान के अनुसार " हमें अम्बेडकर के साहित्य से वाकिफ होना चाहिए ताकि लोग उससे प्रेरणा मिल सके. भगत सिँह से लोग प्रेरणा न ले सकें इस कारण उनके भी साहित्य को छुपाया जा रहा हैं.  हमें दलित बस्तियों में जाकर काम करना चाहिए.  आज समाज के तोड़क  लोग अधिक सक्रिय हो गए हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य अब गरीब लोगों से दूर चला गया है. पढ़ाई और दवाई दोनों के लिए पैसा लग रहा है. अम्बेडकर को जब प्यास लगता था तो छुआछूत का व्यवहार किया करते थे. आज भी जाति सूचक बात बोली जाती है. " पटना साईंस कॉलेज में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक शोवन चक्रवर्ती के अनुसार " संविधान के मुलभूत ढांचे को गिराने की कोशिश की जा रही है.  आज संविधान बनाम भगवान की लड़ाई बताया जा रहा है. 2014 के पहले ऐसा नहीं सुना जाता था कि  जो भगवान जो मानता है वह संविधान को नहीं मानता है. कम्युनिस्टों को तो कहा जा रहा है कि ये लोग तो ये न भगवान और संविधान को नहीं मानते हैं. जबकि कम्युनिस्ट लोग तो तीन राज्यों में सरकार में रहे हैँ पर आज तक कभी भी भगवान को मानने वालों को रोका नहीं गया है. बाबा साहेब की किताब 'जातिभेद का विनाश' आज मेरे हाथ में है. इस किताब में आम्बेडकर ने कहा है हिन्दू धर्म के भयावह चैंबर है.  आज आर्थिक असुरक्षा का ऐसा  माहौल बना दिया गया है कि स्थिति गर्त में चली गई है. मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जा रहा है. आम्बेडकर के अनुसार स्वराज के लिए लड़ाई बाहर के दुश्मनों के साथ अंदर के दुश्मन से भी लड़ना है. " अधिवक्ता उदय प्रताप सिँह ने अपने सम्बोधन में कहा " जब अम्बेडकर का संविधान पढ़िए तो वह आम आदमी के लिए निर्देशित है. जो सामान्य नागरिक हैँ उनका अलग क्लास बन गया है साथ ही जो ऊपर के लोगों का समूह बन गया है.  अम्बेडकर ने जो नागरिक अधिकार प्रदान किया है वह बड़ी बात है. "


पटना विश्व विद्यालय में लोक प्रशासन के प्राध्यापक सुधीर कुमार ने कहा " अम्बेडकर के अंदर न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का लक्ष्य था. देश के संसाधनों पर सभी लोगों का अधिकार है. अम्बेडकर ने समावेशी समाज की बात की. आज संविधान को खतरा आज हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट  के जजों से है. आज न्यायालय में मुट्ठी भर परिवारों का दबदबा है. आज संघीय ढांचे पर हमला ही रहा है. हमें जाति के अंदर की वर्गीय लड़ाई को तेज़ करना होगा साथ ही हमें जाति आधारित जनगणना को समर्थन करना चाहिए. समाज के हाशिये के लोगों के लिए काम करना होगा. " सामाजिक कार्यकर्ता प्रीति सिँह ने बताया " बाबा साहेब को बत्तीस डिग्री हासिल थी साथ ही कई भाषाओं का ज्ञान था.  बाबा साहेब  के आंदोलन से दलित समाज के जो लोग आगे बढे लेकिन फिर अपने लोगों से कट जाते हैँ. आज ऐसी परिस्थिति हो गई है कि गरीबों को शिक्षा हासिल नहीं हो सके.  आज राणा सांगा के बहाने  एक दूसरी जातियों को लड़ाने की कोशिश की जाती है. जब तक शिक्षा और कानून की जानकारी नहीं होगी हम लड़ाई आगे नहीं बढ़ा सकते. " कम्युनिस्ट नेता मोहन प्रसाद सिँह ने बताया " आज जिन्हें पिछड़ा कहा जाता है वे शूद्र थे. संविधान सिर्फ कह देने से नहीं होगा  उसे लागू करना होगा. अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था नहीं हो रही है. गरीब लोगों को पढ़ाने की व्यवस्था आज तक नहीं हो पाई है. जनता परिवार का पेट कैसे चलेगा उसे लेकर परेशान है." सभा को  रंगकर्मी आनंद प्रवीण, सामाजिक कार्यकर्ता देवरतन प्रसाद और मंगल पासवान ने भी ने सम्बोधित किया. कार्यक्रम में मौजूद लोगों में प्रमुख थे मनोज, आनंद शर्मा, प्रिंस राज पासवान, अनिल रज़क, प्रीति सिँह, अविनाश, उदयन राय, मंगल पासवान, आनंद प्रवीण, सुजीत कुमार, विपिन आदि प्रमुख हैँ.

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