नागर जी मे अपने वक्तव्य मे कहा कि आधुनिक भारत के इतिहास का काला अध्याय पिछला समय है, और लेखक का ऐसे समय में कर्तव्य और बढ़ गया है। आर्थिक उदारीकारण ने लोगों की सोचने -समझने की शक्ति समाप्त कर दी। इसने व्यक्ति को संगठनों से दूर कर दिया। नागर जी की चिंता है कि हिंदी लेखन में अधिकांश केवल साहित्यिक लिखा जाता है, मौलिक लेखन बंद हो गया है, हिन्दी में साहित्येतर कार्य बंद हो गया है। दूसरी चिंता यह है कि कुछ भी लिखा जाए तो कहीं भी किसी की भावना आहत हो जाए,ख़ासतौर से हिन्दुओ की,यह गहन चिंता है, आज के हिन्दी लेखक समाज की उथल -पुथल से बिल्कुल विमुख है वे आज भी वाल्मीकि युग मे जी रहे है। हिन्दी का लेखक आज के युग में डरा है चुनौतियों से डर रहा है, पर उपलब्धि है कि हिन्दी लेखक का जनतांत्रिकीकरण हो रहा है, महिलायें, दलित व आदिवासी लेखक पहले से अधिक नज़र आते है। यह हिन्दी लेखन कि उपलब्धि है। डॉ माधव हाड़ा ने अपने वक्तव्य मे कहा कि सत्ता को मनुष्य के जीवन मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. हाड़ा के अनुसार नन्द बाबू गंभीर विचारपरक लेखक थे, उन्हें कविता पर भरोसा था, नन्द बाबू के मन मे कविता को लेकर द्वन्द्व नहीं था। प्रो दिव्याप्रभा नागर ने आज के साहित्य की पीड़ा और भटकाव के प्रति अपनी चिंता प्रकट की।
उदयपुर (रजनीश के झा)। 'हमारे समय मे लेखन' विषय पर नंद चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान प्रख्यात कवि, कथाकार विष्णु नागर ने दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ दिव्यप्रभा नागर ने की l कार्यक्रम मे नन्द चतुर्वेदी की कविताओं के बांग्ला अनुवाद 'शिशिरेइ सेइ दिन' का विमोचन भी हुआ। विष्णु नागर ने कहा कि नन्द बाबू ऐसे कवि थे जो केवल कविता के लिए कविता नहीं करते समाज के लिए करते थे, समता -न्याय उनकी कविता के केंद्र मे था जो सवाल उनके राजनितिक चिंतन के केंद्र में थे वे ही उनकी कविता के केंद्र में भी थे, जिस उम्र मे व्यक्ति अध्यात्म की शरण में जाते है उसमें भी नन्द बाबू इस दुनिया में रहे, दुनिया की समस्या में रहे उनमें डूबे और लिखा, नन्द बाबू राजनीतिक सोच और कविता को जोड़कर लिखते हैं जो एक बड़ी साहित्यिक चुनौती है, नागरिक के रूप मे कविता में लिखते है,वे जीवन में कभी थके नहीं।
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