प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के ऐसे अतिरिक्त न्यायाधीश जो अब जीवित नहीं हैं, के परिवार भी स्थायी न्यायाधीशों के परिवारों के समान पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ के हकदार हैं। पीठ ने कहा कि उसने संविधान के अनुच्छेद 200 पर गौर किया है जो उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को देय पेंशन से संबंधित है। पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि सेवानिवृत्ति के बाद सेवानिवृति लाभ के लिए (उच्च न्यायालय के) न्यायाधीशों के बीच कोई भी भेदभाव अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। इस प्रकार हम उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को चाहे वे किसी भी समय सेवा में आए हों, पूर्ण पेंशन का हकदार मानते हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पूर्ण पेंशन मिलेगी और न्यायाधीशों और अतिरिक्त न्यायाधीशों के बीच कोई भी भेद करना इस शर्त का उल्लंघन होगा।’’ पीठ ने कहा, ‘‘संघ (भारत) अतिरिक्त न्यायाधीशों सहित उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को प्रति वर्ष 13.50 लाख रुपये की पूर्ण पेंशन का भुगतान करेगा।’’ विस्तृत निर्णय की प्रतीक्षा है।
शीर्ष अदालत ने 'जिला न्यायपालिका और उच्च न्यायालय में सेवा अवधि को ध्यान में रखते हुए पेंशन के पुनर्निर्धारण के संबंध में' सहित अन्य याचिकाओं पर 28 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पेंशन के भुगतान में कई आधारों पर असमानता का आरोप लगाया गया था, जिसमें यह भी शामिल था कि सेवानिवृत्ति के समय न्यायाधीश स्थायी न्यायाधीश थे या अतिरिक्त। याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जो जिला न्यायपालिका से पदोन्नत हुए थे और एनपीएस के अंतर्गत आते थे उन्हें बार से सीधे पदोन्नत हुए न्यायाधीशों की तुलना में कम पेंशन मिल रही है।

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