पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के पूर्व आर्मी चीफ मनोज मुकुंद नरवणे ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ’पिक्चर अभी बाकी है...’ मतलब, कोई भी मुगालते में न रहे, ये सिर्फ आगाज है. जी हां, भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा भारत सरकार को सौंपे गए सीमा पार संचालित 21 आतंकी ठिकानों को सूची में अभी 9 ठिकानों को ही नेस्तनाबूद किया जा सका है। ऐसे में जरुरी है कि पर्दे के पीछे से भारत की ओर से लगातार कूटनीतिक स्ट्राइक के बीच शेष बचे ठिकानों एवं ओसामा बिन लादेन की तर्ज पर आतंकियों के आकाओं को खोज-खोजकर मिट्टी में सुपुर्द-ए-खाक किए जाने में ही भलाई है, वरना ये महिषासुर के रक्तबीज की तरह यूं ही पनपते रहेंगे और भारत को लहुलूहान करने से बाज नहीं आयेंगे. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या आतंक के आकाओं का खात्मा करने के लिए भारत रहम के बजाय निर्णायक कार्रवाई करेगा? क्या “लादेन की तर्ज पर अब आतंक के सरगनाओं को छुपने नहीं देगा भारत? क्या “आतंकवाद के खिलाफ आखिरी लड़ाई में सिर कुचलने का समय आ गया है?“ क्या “जब तक सरगना ज़िंदा हैं, आतंक जिंदा रहेगा के नारे को मिटाने के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ेगा भारत? क्या “दहशतगर्दो के पनाहगारों को खत्म करते हुए लादेन मॉडल को वैश्विक नीति बनाएगा यूएन? मतलब साफ ह ैअब लादेन की तर्ज पर आतंकियों के आकाओं को खोज-खोज कर मारे जाने की ज़रूरत आन पड़ी है
लश्कर-ए-तैयबा को पहले ही अंदेशा था कि भारत कोई कार्रवाई कर सकता है, इसलिए तैयबा के मरकज की सुरक्षा आतंकियों ने खुद संभाल रखी थी। पाकिस्तान में आतंकवादियों को जिस तरह शरण और संरक्षण मिलता है, यहां तक कि उन्हें पुलिस की सुरक्षा भी दी जाती है, यह अब कोई छुपी बात नहीं है पूरी दुनिया इस सच्चाई से वाकिफ है। मुरीदके लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय है। जब इस आतंकी संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया, तो इसके सरगना हाफिज सईद ने “जमात-उद-दावा” नाम से एक नया संगठन खड़ा किया। यह संगठन समाजसेवा की आड़ में आतंकवाद की फंडिंग करता रहा और आतंकियों को प्रशिक्षण देता रहा। इसका नेटवर्क इतना फैला हुआ है कि पूरे पाकिस्तान में इसके लगभग 2500 मदरसे और दफ्तर संचालित हैं। वर्ष 2008 में पाकिस्तान सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला। इसके बावजूद, यह संगठन अलग-अलग नामों से आतंकी गतिविधियों में संलिप्त रहा है। इसके अलावा उन ठिकानों को भी निशाना बनाया गया जिसके संबंध भारत में हुए आतंकी हमलों से जुड़ते हैं। वे वहीं ठेकाने हैं जहां लश्कर-ए-तैयबा समेत कई आतंकी संगठनों के प्रशिक्षण केन्द्र व लॉन्चिंग पैड हुआ करते है। खास यह है कि इस ऑपरेश सिंदूर के बहाने भारत ने आतंकवाद को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त न करने का संकेत भी दे दिया है। और सबसे महत्वपूण बात यह है कि पहलगाम हमला का बदला लेने के लिए भारतीय सेनाओं की समन्वित, संतुलित और सटीक एयर स्ट्राइक ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान न सिर्फ सदमें में है, बल्कि वह इसका कोई जवाब नहीं ढूंढ पा रहा है। पाकिस्तान भारत के कूटनीति में ऐसा फंसा है कि उसे निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। यह अलग बात है कि पाकिस्तानी फौज के प्रवक्ता एक प्रोपोगंडा के तहत ऑपरेशन सिंदूर को मस्जिदों पर हमला बताने में हरसंभव कोशिश में जुटे है। वह बताने चाह रहे है कि जैसे पहलगाम हमले में गोली मारने से पहले धर्म पूछा जा रहा था, चूंकि प्रधानमंत्री मोदी हिंदू हैं, इसलिए मस्जिदों को निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन भारत के सैन्य अफसरो ने वीडियों सहित कई साक्ष्यों से साफ कर दिया है कि किस तरह सिर्फ आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया गया है.
विदेश सचिव विक्रम मिस्री के मुताबिक, पाकिस्तान और पीओके की सैन्य कार्रवाई बेहद नपी-तुली, जिम्मेदारी पूर्ण और उकसावे वाली नहीं थी. जब भारत की तरफ से सिंधु जल संधि रद्द की गई थी तब भी, और अब भी पाकिस्तान की तरफ से एक्ट-ऑफ-वॉर समझाने की कोशिश की गई, लेकिन, एयर स्ट्राइक के जरिये भारत ने पाकिस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया को बताने और जताने की कोशिश की है कि पहलगाम जैसे हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ कैसे पेश आया जाता है. पाकिस्तन के जरिये भारत ने खासतौर पर चीन को भी सख्त संदेश देने की कोशिश की है कि ऑपरेशन सिंदूर में सेना ने पाकिस्तान की सरहद से 100 किमी अंदर तक टार्गेट को तबाह किया है और ये भारत के सैन्य ताकत का सबूत है. भारत ने मैसेज दिया है कि वह आतंक के खिलाफ है और जरूरत पड़ने पर ठोस कदम उठाने से नहीं हिचकेगा. खास बात यह रही कि भारत ने यह कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र की गाइडलाइन के ही हिसाब से की है. भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को उसकी औकात बता दी है। देश की आजादी के बाद यानी 1947 से ही भारत ने पाकिस्तान की हर हिमाकत का मुंहतोड़ जवाब दिया है। यह अलग बात है कि बार-बार मुंह की खाने के बाद भी पड़ोसी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है। दरअसल, भारत में पहलगाम हमले के बाद शुरू हुई कूटनीतिक स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान को चारों ओर से घेर लिया और अमेरिका जैसी बड़ी ताकतों ही नहीं सऊदी अरब जैसे प्रमुख इस्लामिक देशों को विश्वास में लेने के बाद ही ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया। इसके तहत 25 मिनट की एयर स्ट्राइक में सिर्फ नौ आतंकी ठिकानों को सटीक निशाना बनाया गया। मगर सैन्य ठिकानों को कोई नहीं छुआ। सूत्र बताते हैं कि इसकी योजना 4 दिन पहले ही बन गई थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायुसेना अध्यक्ष अमरप्रीत सिंह को वन-टू-वद मीटिंग के लिए बुलाया था। इसी दौरान सैन्य कार्रवाई का नाम ऑपरेशंस सिंदूर तय हुआ। इसके बाद चले बैठकों के दौर में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सीमा पर संचालित 21 आतंकी ठिकानों को सूची सरकार को सौंपी। इनमें से चयनित 9 ठिकानों को नेस्तनाबूद किया गया। लेकिन पर्दे के पीछे से भारत की ओर से लगातार कूटनीतिक स्ट्राइक की जा रही थी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अगुवाई में पहलगाम हमलों के बाद से दुनिया के देशों को पाकिस्तान में चल रहे आतंकी ठिकानों और वहां पनाह ले रहे आतंकियों के बारे में अवगत करवाया जा रहा था। खासतौर पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र को पाकिस्तान की करतूतों से दो चार करवाते हुए प्रत्यक्ष व परोक्ष समर्थन हासिल किया गया। इसके बाद बड़ी चतुराई से ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया गया। इसकी झलक एयर स्ट्राइक के करीब 9 घंटे बाद बुधवार सुबह हुई विदेश मंत्रालय व सशस्त्र बलों की साक्षा प्रेस ब्रीफिंग में भी दिखाई दी। बता दें, भारत शुरू से ही पाकिस्तान को आतंकियों की शरणस्थली बताता रहा है। इसके प्रमाण दुनिया के प्रमुख देशों ने भी देखे हैं। पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोरा है। पाकिस्तान की ओर से इस पर कोई एक्शन होता नहीं देखकर इसका जवाब आतंकी ठिकानों को बर्बाद करके ही दिया गया है। इससे पाकिस्तान को अन्य देशों का समर्थन हासिल करना भी मुश्किल हो रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने भी हमले पर गोलमोल प्रतिक्रिया और नसीहत देकर परोक्ष रुप से भारत का समर्थन ही किया है। उन्होंने भारत पाकिस्तान को बातचीत के रास्ते खुले रखने और तनाव ना बढ़ाने की सलाह दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत की निंदा करने से परहेज ही किया हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि सब कुछ जल्दी ही खत्म हो जाएगा। आईएसआई मुखिया ले.ज. असीम मलिक को अगस्त 2022 से खाली पड़े पद पाक एनएसए का अतिरिक्त प्रभार मिलने में भी भारतीय कूटनीति झलकती है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि पहलगाम हमले के बाद यूएस के इशारे पर हुआ। मलिक के पश्चिमी देशों से अच्छे संबंध हैं। अमेरिका चाहता था कि भारत-पाक तनाव खत्म करने में कोई विश्वसनीय व्यक्ति मददगार बने।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि पहलगाम हमले के बाद बिहार के मधुबनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ’पहलगाम के दोषियों को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है... आतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलकर रहेगी... उनकी बची खुची जमीन भी मिट्टी में मिला देंगे... और सफल एयर स्ट्राइक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलकर पूरी जानकारी दी. कैबिनेट साथियों से मुलाकात में मोदी ने कहा, ये तो होना ही था... पूरा देश हमारी ओर देख रहा था... हमें हमारी सेना पर गर्व है - और मोदी के मुंह से ये सुनते ही कैबिनेट के सदस्यों मेजें थपथपाकर एयर स्ट्राइक का स्वागत किया. साथ ही भारत ने वैश्विक मंच पर कूटनीतिक प्रयास तेज किए हैं और दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों पर करारी चोट लगी है। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा की रीढ़ तोड़ देने का प्रयास हुआ है। पाकिस्तान में खलबली है, क्योंकि उसकी सरजमीं मे घुसकर भारतीय सैन्य बलों ने तीसरा ऑपरेशन किया है। फिर भी केवल इतना पर्याप्त नहीं है। हमारे प्रयास ऐसे हों कि पाकिस्तान को न केवल कूटनीतिक स्तर पर अकेला किया जाए, बल्कि उसे आर्थिक रूप से भी चोट पहुंचाई जाए। क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था और बाजार के आकार का लाभ पाकिस्तान को हानि पहुंचाने के लिए उठा सकते हैं? पाकिस्तानी सेना के सामने दिक्कत यह है कि भारत में कोई आतंकी ठिकाना नहीं है जिसे निशाना बनाकर वह जवाबी कार्रवाई का नैतिक आधार बना सके। तब यही आशंका है कि वह भारतीय सैन्य ठिकानों या निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना ने हमारे सीमावर्ती गांवों में आम लोगों को निशाना बनाया भी है। द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के बहाने सांप्रदायिक जहर उगलकर पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने पहलगाम में जिहादी हिंसा का नंगा नाच तो करा दिया, परंतु अब अपने ही बुने जाल में खुद फंस गए। उन्होंने सोचा था कि पिछली बार की तरह भारत जंगल में स्थित किसी ऐसे आतंकी ठिकाने पर हमला करेगा, जहां तक मीडिया के कैमरे नहीं पहुंच सकते और जहां वह हफ्तों बाद मीडिया का दौरा करा कर कह देंगे कि भारतीय हमला विफल रहा। मुनीर ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा से सैकड़ों किमी दूर पंजाब स्थित बहावलपुर के बीचोबीच जैश के आतंकी मुख्यालय पर मिसाइलें दाग सकता है। पाकिस्तानी फौज की बची-खुची इज्जत बचाने के लिए मुनीर के पास भारत के विरुद्ध किसी कार्रवाई के दिखावे के अलावा कोई चारा नहीं। यह भी बहुत जोखिम भरा है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने स्पष्ट किया है कि उसने संयम बरतते हुए पाकिस्तान के किसी सैन्य अथवा नागरिक ठिकाने को निशाना नहीं बनाया।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी




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