दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित बलूचिस्तान केवल पाकिस्तान का एक प्रांत नहीं, बल्कि यह एक जिंदा कौम की भूमि है, जिसकी संस्कृति, आस्था और इतिहास के साथ आध्यात्मिक दृष्टि से भारत से गहराई से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान ने बलूचों की धरती को जबरन कब्जाया, लेकिन उनकी आत्मा और पहचान पर कब्जा नहीं कर सका। यही नहीं, इसी बलूच भूमि पर विराजमान हैं हिंगलाज माता - सनातन की पवित्र शक्ति पीठ, जो आज भी इस बात की गवाही देती हैं कि भारत और बलूच एक सांस्कृतिक राग से जुड़े हैं। इसी संस्कृति और विरासत या यूं कहें हिंगलाज देवी मंदिर भारत और बलूचिस्तान की साझी विरासत को सहेजने के लिए बलूच लोग अपनी आज़ादी और पहचान के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या पाकिस्तान ये भी दावा करेगा कि भारत की कुलदेवियां अब उसकी हैं? बलूच मुसलमान भी इस मंदिर को “नानी मंदिर” कहते हुए इज्ज़त देते हैं. यह पाकिस्तान की कट्टरपंथी सोच पर करारा तमाचा है. बलूचिस्तान का संघर्ष दुनिया की निगाहों से भले ही ओझल हो, लेकिन भारत में हिंगलाज माता की आराधना उस सांस्कृतिक एकता की याद दिलाती है, जिसे किसी भी दीवार से अलग नहीं किया जा सकता
संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक किसी भी नए देश को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने के लिए एक तय प्रक्रिया से गुजरना होता है. यह पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा है. बलूच नेता मीर यार बलूच ने बुधवार को बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया. उन्होंने दावा किया कि बलूच लोग दशकों से हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन और अपहरण का सामना कर रहे हैं और अब उन्होंने अपना फैसला सुना दिया है कि बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है. मीर यार ने भारत और वर्ल्ड समुदाय से बलूचिस्तान की आजादी को मान्यता देने और समर्थन की अपील की है. बलूचिस्तान में लंबे समय से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ नाराजगी है. वहां की जनता पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश बनना चाहती है. इसकी बड़ी वजह दशकों से जारी हिंसा सेना की कार्रवाई और स्थानीय लोगों के शोषण को बताया जा रहा है. मीर यार बलोच का कहना है कि बलूच लोग सड़कों पर उतर चुके हैं और यह आंदोलन अब रुकने वाला नहीं है. उन्होंने भारत से नई दिल्ली में बलूच दूतावास खोलने की अनुमति और संयुक्त राष्ट्र से आर्थिक मदद पासपोर्ट, करेंसी आदि के लिए फंड की मांग भी की है. बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध प्रांत है, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। खास यह है कि जब पाकिस्तान इस पर जबरन अपना आधिपत्य जमाया है, तब से लेकर आज तक बलूच लोग कई बार पाकिस्तान सरकार के खिलाफ बगावत कर चुके हैं। उनकी मुख्य मांगें हैं : राजनीतिक स्वायत्तता या स्वतंत्रता, प्राकृतिक संसाधनों (गैस, खनिज, तटवर्ती क्षेत्र) पर अधिकार, पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन का अंत, बलूच आंदोलन को दुनिया भर में बलूच डायस्पोरा (प्रवासी समुदाय) समर्थन देता है, विशेषकर यूरोप, अमेरिका और भारत में। बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग और हिंगलाज देवी की उपस्थिति एक साथ यह दर्शाती है कि राजनीतिक सीमाएं संस्कृति और आस्था को नहीं बांध सकतीं। हिंगलाज देवी इस बात की प्रतीक हैं कि भारत और बलूचिस्तान का रिश्ता केवल भूगोल का नहीं, बल्कि खून, संस्कृति और विश्वास का है।
51 शक्तिपीठों में से एक है माता हिंगलाज, होती है मस्तक की पूजा
बलूचिस्तान की गुफाओं और पहाड़ियों के बीच बसी हैं हिंगलाज माता, जो 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार, यही वह स्थान है जहां देवी सती का ब्रह्मरंध्र (मस्तक) गिरा था। यह तीर्थ भारत के करोड़ों हिन्दुओं, विशेषकर राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लोगों की कुलदेवी भी हैं। खास यह है कि न केवल हिन्दू श्रद्धालु, बल्कि स्थानीय बलूच मुसलमान भी इस मंदिर को “नानी मंदिर“ के नाम से श्रद्धा से पूजते हैं। यह बलूच संस्कृति की सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता का परिचायक है। हिंगलाज माता भारत और बलूचिस्तान के बीच एक ऐसे सांस्कृतिक सेतु का कार्य करती हैं, जो राजनीतिक सीमाओं से परे है। भारत में हिंगलाज माता के भक्त आज भी बलूचिस्तान के मंदिर की ओर मन से झुकते हैं। कई संतों और साधुओं ने सदियों तक इस तीर्थ की यात्रा की है। यह संबंध केवल धार्मिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और भावनात्मक भी है। बलूचिस्तान की धरती पर स्थित यह तीर्थ इस बात का प्रमाण है कि भारत और बलूच सांस्कृतिक धारा एक समय एक साथ बहती थी।दुर्गा चालीसा में भी है हिंगलाज माता का जिक्र
हिंगलाज देवी का जिक्र दुर्गा चालीसा में भी होता है. इसमें देवी दुर्गा का एक नाम हिंगलाज भवानी बताया गया है और कहा गया है..कि उनकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है.
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी
हिंगलाज शब्द, सुहाग की रक्षा करने वाली देवी के तौर पर आया होगा. हिंगुल शब्द का अर्थ सिंदूर से भी होता है. ऐसे में सिंदूर की लाज बचाने वाली देवी हिंगलाज भवानी हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में जब भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने दक्ष यज्ञ में खुद को नष्ट कर लिया, तब क्रोधित शिव सती की मृत देह को लेकर तीनों लोकों का भ्रमण..करने लगे. शिव के क्रोध को शांत करने के लिए और उन्हें इस दुख से उबारने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र से काट दिया और सती के शरीर के अलग-अलग अंग जिन 51 स्थलों पर गिरे, वह शक्तिपीठ कहलाए. केश गिरने से महाकाली, नैन गिरने से नैना देवी, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरी आदि..शक्तिपीठ बन गए. सती माता के शव के सिर का पिछला हिस्सा (ब्रह्मरंध्र) हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर गिरा और यहां हिंगलाज भवानी की स्थापना हुई. संस्कृत में हिंगुला शब्द सिंदूर के लिए भी प्रयोग होता है, इस तरह माता की मान्यता सुहागिन महिलाओं में भी बहुत है.
अंगारों पर चलने की परंपरा
मान्यताओं के अनुसार एक बार यहां माता ने प्रकट होकर वरदान दिया कि जो भक्त मेरा चुल चलेगा उसकी हर मनोकामना पुरी होगी. चुल एक प्रकार का अंगारों का बाड़ा होता है जिसे मंदिर के बाहर 10 फिट लंबा बनाया जाता है और उसे धधकते हुए अंगारों से भरा जाता है. इन्हीं अंगारों पर चलकर मन्नतधारी मंदिर में पहुचते हैं. ये माता का चमत्कार ही है कि किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है. हालांकि पिछले कुछ सालों से इस परंपरा पर रोक लगी है.इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है. कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर ब्रह्मांड की सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं.
श्री राम ने भी इस सिद्ध पीठ में टेक चुके है मत्था
आदिकाल से हिंगलाज भवानी के दर्शन की परंपरा रही है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे..हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्रि ने यहां घोर तप किया था. उनके नाम पर आश्रम नाम का स्थान अब भी यहां मौजूद है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत आ चुके ह.ैं
खुली गुफा में है मंदिर
हिंगलाज माता का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में है. यहां माता का विग्रह रूप विराजमान है. मंदिर में कोई दरवाजा नहीं. मंदिर में कोई दरवाजा नहीं. मंदिर की परिक्रमा के लिए तीर्थयात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं. मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है. मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां स्नान करने आती हैं. यहां के रक्षक के रूप में भगवान भोलेनाथ भीमलोचन भैरव रूप में स्थापित हैं. माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं. इस आदि शक्ति स्थल की पूजा में स्थानीय बलोच बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
माता को बलोच लोग कहते हैं ’नानी पीर’
जब पाकिस्तान का जन्म नहीं हुआ था. उस समय भारत की पश्चिमी सीमा अफगानिस्तान और ईरान से जुड़ती थी. उस समय से बलूचिस्तान के मुसलमान हिंगलाज देवी को मानते आ रहे हैं. यहां बलोच लोग देवी को ’नानी’ कहते हैं और ’नानी पीर’ कहते हुए लाल कपड़ा, अगरबत्ती, मोमबत्ती, इत्र और सिरनी चढ़ाते हैं. इस मंदिर पर आक्रांताओं ने कई हमले किए लेकिन स्थानीय हिन्दू और बलोच लोगों ने इस मंदिर को बचाया हैं.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी




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