मैथिली कविता में अग्निपुष्प का स्थान विशिष्ट रहा। वे कम लिखते थे, लेकिन उनकी कविताओं में तीव्रता और वैचारिक ताप स्पष्ट दिखता था। उन्होंने कुछ कहानियाँ भी लिखीं और राजकमल चौधरी की चर्चित कृति मुक्ति प्रसंग का मैथिली अनुवाद किया, जो अत्यधिक सराहा गया। बिहार में मुद्रण और संपादन के क्षेत्र में अग्निपुष्प ने नई परंपरा की नींव रखी। कम संसाधनों में सुंदर और विचारपरक पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन उनका विशिष्ट कौशल था। उन्होंने कई संस्थाओं की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई। उनके सान्निध्य में पले बढ़े कई पत्रकार आज देशभर के प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यरत हैं। कोलकाता के नीमतला घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ। उनकी स्मृति, उनका लेखन, उनकी विचारशीलता - ये सब हमारे बीच जीवित रहेंगे। मैथिली और हिंदी साहित्य, पत्रकारिता और वैचारिक आंदोलन को उनकी उपस्थिति हमेशा महसूस होती रहेगी। अग्निपुष्प जी को विनम्र श्रद्धांजलि - एक जीवन जो परिवर्तकामी विचारों की लौ में जलता रहा, आगे भी राह दिखाता रहेगा।
पटना 4 मई (रजनीश के झा)। वरिष्ठ कवि, पत्रकार और वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रतीक अग्निपुष्प के निधन पर भाकपा-माले राज्य कमिटी ने गहरा शोक जताया है. शनिवार को कोलकाता में उन्होंने अपने पुत्र अंशुमान के घर अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे, लेकिन विचारों की लौ उनके भीतर अंतिम क्षण तक जलती रही। माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी है. राज्य सचिव कुणाल सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी मौत पर दुख जताया है. 1950 में दरभंगा के तरौनी गांव में जन्मे अग्निपुष्प जी ने कोलकाता से शिक्षा हासिल कर पहले दरभंगा और फिर पटना को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। नक्सलबाड़ी आंदोलन के दौर में उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई और भाकपा-माले में एक कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगे. अग्निपुष्प का साहित्यिक अवदान जितना गहरा था, उतना ही प्रभावशाली था उनकी पत्रकारिकता भी थी। उन्होंने शिखा और संवाद जैसी मैथिली पत्रिकाओं के संपादन में गहरी भूमिका निभाई। शिखा, आपातकाल के दौर में अपने सत्ताविरोधी तेवर के लिए जानी गई। समकालीन जनमत का संपादन करते हुए उन्होंने बिहार के अनेक ऊर्जावान पत्रकारों को एक नई दिशा दी। उन्होंने दो राष्ट्रीय अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रहते हुए काम किया।
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