- आज किया जाएगा नृसिंह चतुर्दशी पर भगवान का विशेष श्रृंगार
इस संबंध में जानकारी देते हुए समिति की ओर से मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि कथा व्यास पंडित मिश्रा का एक दिवसीय सत्संग का आयोजन गोपालधाम पर किया गया था। उन्होंने कहाकि यह बड़े ही सौभाग्य का विषय है कि मंदिर परिसर में अखंड रामायण किया जा रहा है। वहीं वैशाख महापर्व पर भगवान शिव का अभिषेक के साथ देवी शक्ति की पूजा अर्चना की जा रही है। उन्होंने समिति और गोपाल धाम मानस मंडल को संबोधित करते हुए कहाकि रामायण मनुष्य जीवन के लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक है। यह हमें सदाचार, कर्म, कर्तव्य, मर्यादा, भक्ति, विश्वास, सत्य और न्याय जैसे मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देती है। रामायण के आदर्श चरित्र और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर जीवन जीने में सहायता करती हैं।
इधर गोपालधाम के व्यवस्थापक श्री ठाकुर ने कहाकि रामचरित्र मानस हमारे लिए मार्गदर्शक है भक्त के जीवन में जो प्राप्त शरीर है, वह भी आराध्य को पाने का उपादान होने के कारण पूज्य हो जाता है। संसार में भी किसी व्यक्ति के सहयोग से यदि हमें कुछ विशेष उपलब्धि हो गई हो तो हम जीवन भर उसके कृतज्ञ रहते हैं, उसी प्रकार काकभुशुंडि जी कह रहे हैं कि शरीर मिथ्या तो तब होगा, जब इसका उद्देश्य भोगों की प्राप्ति हो, पर जब वही शरीर भगवत्प्राप्ति का साधन बन जाए तो वह अपने अभीष्ट को पाकर धन्य हो जाता है। प्रमाण रूप में वे अपना अनुभव प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि मैंने मनुष्य शरीर में रहते ही भगवान शिव की कृपा से धन्यता प्राप्त की थी, पर जो कृपालु शिव जिन बालक राम को अपने हृदय मे धारण करते हैं, उनको ही मैंने अपना ईश्वर माना है। वह कहते हैं, मेरे इस भाव परिवर्तन से मेरे परमकृपालु सदाशिव विश्वनाथ मुझ पर और भी अधिक प्रसन्न हो गए। उन्हें लगा कि मेरे इस भक्त (काकभुशुंडि) का प्रवेश मेरे हृदय में हो गया है और इसने देख लिया कि मेरे इष्ट तो बालक राम हैं, जो अयोध्या में दशरथ के अजिर में मालपुआ लेकर घूमते रहते हैं। काकभुशुंडि जी हमें और आपको यह बताना चाहते हैं कि जब उन्होंने कौआ होकर भी भगवान को पा लिया तो हम लोगों के भाग्य के लिए तो शब्द ही नहीं हैं। प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने स्वयं भी समस्त चराचर के कल्याण के लिए मनुष्य का ही शरीर धारण कर लिया है। वे कहते हैं कि इस शरीर को पाने का मात्र एक ही लाभ है कि व्यक्ति भगवान का भजन करे। भक्त काकभुशुंडि ने मनुष्य शरीर से भजन करने के प्रताप और फल को बताते हुए कहा कि ज्ञानी ऋषि लोमश ने मेरे अंदर भक्ति के प्रति पक्षपात देखकर भले ही मुझे अपनी दृष्टि से कौआ बनने का शाप दिया था, पर वह मेरे लिए वरदान हो गया। इसका श्रेय वे भगवान के भजन के प्रभाव को देते हैं।

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