पटना : बिहार में ‘विशेष सघन पुनरीक्षण’ एनआरसी जैसी कवायद है : दीपंकर भट्टाचार्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


बुधवार, 25 जून 2025

पटना : बिहार में ‘विशेष सघन पुनरीक्षण’ एनआरसी जैसी कवायद है : दीपंकर भट्टाचार्य

Deepankar-bhattacharya
पटना, 25 जून (रजनीश के झा)। भाकपा (माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची का ‘विशेष सघन पुनरीक्षण’ शुरू किए जाने की प्रक्रिया को गंभीर चिंता का विषय बताया है और इसे एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) जैसी कवायद करार दिया है। उन्होने कहा कि यह कवायद असम में हुए एनआरसी अभ्यास की याद दिलाती है। बिहार जैसे राज्य में इस तरह की प्रक्रिया न केवल प्रशासनिक रूप से अव्यावहारिक है, बल्कि इससे बड़े पैमाने पर आम जनता - विशेषकर गरीब, दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोग - मतदाता सूची से बाहर कर दिए जाएंगे। उन्होने आगे कहा कि 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे किसी व्यक्ति को अपने माता या पिता में से किसी एक के भारतीय नागरिक होने और 2 जुलाई 2004 के बाद जन्मे लोगों को माता-पिता दोनों के नागरिक होने के प्रमाण देने की जो शर्तें लगाई जा रही हैं, वे असम जैसे उदाहरणों से साफ हैं कि कैसे यह लाखों लोगों को उनके संवैधानिक मताधिकार से वंचित कर सकती हैं। यह न केवल लोगों को मतदान से वंचित करने वाला कदम है, बल्कि इससे चुनाव की तैयारी पूरी तरह से पटरी से उतर सकती है। इतना बड़ा अभियान केवल एक महीने में कैसे पूरा किया जाएगा, यह सवाल भी उठता है। माले महासचिव ने चुनाव आयोग से स्पष्ट रूप से मांग की कि बिहार जैसे राज्य को इस तरह की प्रयोगशाला न बनाया जाए। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनाव निष्पक्ष, समावेशी और लोकतांत्रिक तरीके से हो - न कि संदेह और नागरिकता की दोहरी जाँच के नाम पर लोगों को डराने की प्रक्रिया के जरिए।

कोई टिप्पणी नहीं: