दूध बना व्यापार समझौते का मूल मुद्दा
भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड को लेकर रिश्ते पहले ही असहज हैं, अब ‘एनिमल बेस्ड मिल्क प्रोडक्ट्स’ के आयात के लिए भारत के अमेरिका को पूरी तरह से इनकार के बाद मामला और गंभीर हो गया है। विशेष रूप से ‘माँसाहारी दूध’ बड़ा मुद्दा बन गया है। वाशिंगटन चाहता है कि नई दिल्ली अपना डेयरी उत्पाद-दूध, पनीर, मक्खन, चीज़-का बाजार उसके लिए खोले लेकिन भारत ने सख़्ती से ‘नॉन-नेगोशिएबल रेड लाइन’ घोषित कर दी है कि वह ऐसे किसी भी डेयरी उत्पाद का आयात नहीं करेगा जो ‘रेंडर्ड फीड’ यानी माँसाहारी चारे से पोषित गायों से प्राप्त हुआ हो। भारत की मांग है कि आयातित दूध के साथ स्पष्ट प्रमाणीकरण हो, जो यह सुनिश्चित करे कि गायों को केवल शाकाहारी चारा दिया गया है। भारत का पशुपालन और डेयरी विभाग खाद्य आयात के लिए पशु चिकित्सा प्रमाणन को अनिवार्य करता है। भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का उद्देश्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाना है। इस राह में डेयरी प्रॉडक्ट पर ट्रेड डील रुकना बड़ी बाधा बनकर उभरा है। यह मुद्दा इतना गहरा गया है कि अमेरिका ने भारत की इन शर्तों को ‘अनावश्यक व्यापार बाधा’ बताते हुए इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन तक में उठा लिया है। अमेरिका का तर्क है कि भारत के सख्त प्रमाणीकरण नियम उसके डेयरी निर्यात को रोक रहे हैं। अमेरिका ने 1 अगस्त 2025 तक इस व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की समय-सीमा तय की है, लेकिन डेयरी उत्पादों को लेकर भारत का सख्त रुख यथावत है।
भारत की मुख्य आपत्तियाँ
धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता: भारत में गाय को पवित्र माना जाता है, और दूध का उपयोग न केवल भोजन में, बल्कि पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता है। भारत के स्वाद और परंपरा से गहराई से जुड़े दूध से कई ऐसे पदार्थ प्राप्त होते हैं जिनका घरों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जैसे दही, घी, मक्खन, पनीर, छाछ, खोया, मलाई। माँसाहारी चारा खाने वाली गायों का दूध और उससे बने उत्पादों का उपयोग भारतीय संस्कृति और शाकाहारी मान्यताओं के खिलाफ माना जाता है।
आर्थिक प्रभाव: ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रहार
भारत यदि ‘’माँसाहारी दूध आयात’ करता है, तो इसका भारतीय डेयरी उद्योग, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, और किसानों पर गहरा, घातक और बहुआयामी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। डेयरी उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में करीब 5 प्रतिशत योगदान देता है, जिसका मूल्य 2024 में 18,975 अरब रुपए था और 2025-2033 के दौरान 12.35 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ 2033 तक 57,001.81 रुपए अरब तक पहुंचने की उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र संघ की विदेश कृषि सेवा विभाग (यूएसडीए एफएएस) के अनुसार भारत का डेयरी क्षेत्र पिछले दशक में दूध उत्पादन में 63.56 प्रतिशत की वृद्धि के साथ लगातार बढ़ रहा है। भारत विश्व में दूध का उत्पादन 2024 में 211.7 एमएमटी था। यह वैश्विक दूध उत्पादन में करीब 24.64 फीसदी हिस्सा था। यह उद्योग आठ करोड़ से अधिक छोटे और सीमांत किसानों और पशुपालकों को रोजगार देता है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। सस्ते आयात से दूध की कीमतों में कमी और मांग में गिरावट के कारण इन ग्रामीणों की आय में भारी कमी हो सकती है। भारतीय स्टेट बैंक की 14 जुलाई को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात के लिए अपने बाजार को खोलता है, तो भारतीय डेयरी उद्योग को प्रति वर्ष 1.03 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। डेयरी उद्योग का सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) 7.5-9 लाख करोड़ रुपए है, जो आयात से 15 प्रतिशत तक कम हो सकता है। यह नुकसान मुख्य रूप से सस्ते आयातित डेयरी उत्पादों के कारण होगा।
बाजार हिस्सेदारी पर प्रभाव: भारत का डेयरी बाजार 64 प्रतिशत असंगठित है। सस्ते आयातित दूध और डेयरी उत्पाद स्थानीय उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में कमजोर कर सकते हैं, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र में, जहां छोटे किसान और पशुपालक, दूध विक्रेता हैं। प्रसंस्करण क्षमता पर प्रभाव: भारत की दूध प्रसंस्करण क्षमता को 2025 तक 108 मिलियन मीट्रिक टन तक दोगुना करने का लक्ष्य है। आयात इस लक्ष्य को बाधित कर सकता है। आत्मनिर्भरता पर प्रभाव: भारत ने ऑपरेशन फ्लड के बाद से दूध उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है।आयात इस आत्मनिर्भरता को कमजोर कर सकता है। निर्यात में कमी: भारत वर्तमान में डेयरी उत्पादों का निर्यात करता है। वर्ष 2023-24 में भारत ने डेयरी उत्पादों के निर्यात में 3.64 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया। सस्ते आयात से स्थानीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है, जिससे निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी घट सकती है। ‘मांसाहारी दूध’ का आयात भारतीय डेयरी उद्योग और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए कई स्तरों पर घातक हो सकता है। ऐसे भारत के लिए यह ज़रूरी होगा कि वो अमेरिका से दृढ़तापूर्वक दो टूक कह दें कि उनके देश में ‘ब्लडी मील’ से बना ‘रेंडर्ड फीड’ चारे से पोषित ‘माँसाहारी दूध’ सनातन धर्म, संस्कृति रचा-बसा भारतीय के लिए जनमानस ‘अशुद्ध’,’अपवित्र’ तो है ही उससे भी बढ़कर देश के ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान और पशुपालक के आर्थिक हितों के गंभीर और घातक साबित होता। ऐसे में उसे भारत के साथ ‘ट्रेड डील’ करनी है तो इस विवादास्पद बिंदु को अलग करना होगा।
हरीश शिवनानी
स्वतंत्र पत्रकरिता-लेखन
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