- 17 साल बाद भी लागू नहीं हुई बंदोपाध्याय आयोग की सिफारिशें, चुनावी मौसम में गरमाया मुद्दा
अब ‘जन सुराज’ ने उठाया मोर्चा
राज्य में चुनावी माहौल के बीच ‘जन सुराज’ संगठन ने इस मुद्दे को फिर से जोरदार ढंग से उठाया है। संगठन के कार्यकर्ता प्रदेश भर में प्रदर्शन कर रहे हैं और तीन डिसमिल भूमि आवंटन को चुनावी एजेंडे में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. जन सुराज के संस्थापक सदस्य गोडेन अंतुनी ठाकुर ने साफ शब्दों में कहा है,“हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक बिहार के हर भूमिहीन परिवार को तीन डिसमिल जमीन नहीं दिलवा देते.”
राजनीतिक खामोशी पर सवाल
विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि नीतीश कुमार सरकार ने भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. यह रिपोर्ट राज्य के भूमिहीन, दलित, वंचित और आदिवासी समुदायों के लिए एक उम्मीद की किरण मानी जा रही थी, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह निष्क्रिय पड़ी है.
भूमिहीनों की दशा जस की तस
बिहार में लाखों परिवार आज भी बिना वैध आवासीय भूमि के झुग्गियों, सरकारी जमीनों या जल-जंगल की जमीन पर रह रहे हैं.न बिजली, न पानी, न स्थायी अधिकार—उनकी स्थिति आज भी संवैधानिक हकों से कोसों दूर है.
भूमि अधिकार फिर बना चुनावी मुद्दा
चुनाव नजदीक आते देख तीन डिसमिल जमीन का सवाल फिर गूंज रहा है। जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि जब तक गरीबों को जीने लायक जमीन नहीं दी जाएगी, तब तक विकास की बात अधूरी रहेगी.

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