लास्मान सुरोवर के निर्मल जल में झलकते हैं मोक्ष के द्वार, जहां हिमखंडों की गोद में विराजते हैं आदि देव, त्रिपुरारी, भगवान शिव। जिसके ऊपर स्वर्ग है और नीचे मृत्युलोक है. शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण समेत कई ग्रंथों में कैलाश का जिक्र मिलता है. कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है. यह वही कैलाश है : जहां कड़कड़ाती ठंड में भी जीवन की तपस्या चलती है, जहां हर बर्फ का कण ’ॐ नमः शिवाय’ का जप करता है। कैलाश : शिव का वो परंपावन धाम है, जहां समय भी ठहर जाता है, सांसें भी शिवमय हो जाती हैं। यहां का हर पत्थर, हर झरना, हर हवा शिव की महिमा गुनगुनाती है। जहां लास्मान सुरोवर के दर्शन मात्र से आत्मा पावन हो जाती है, और महादेव के चरणों में मन स्थिर हो जाता है। कैलाश, न केवल एक स्थान है, बल्कि यह स्वयं मुक्ति का मार्ग है। इतना ही नहीं कैलाश को धरती का ’अक्षय धाम’ कहा जाता है, जहां समय, जीवन और मृत्यु तीनों निरर्थक हो जाते हैं. मानसरोवर ब्रह्मा के मन से बना है और यहीं से सरयू, सतलुज, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियां निकलती हैं। यह सरोवर लगभग 15,100 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक मीठे पानी की झील है, जिसका मुख्य स्रोत कैलाश है
कठिन लेकिन दिव्य यात्रा
कैलाश मानसरोवर की यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती है। ऊँचाई, ऑक्सीजन की कमी, तीव्र ठंड और दुर्गम रास्ते यात्रियों की परीक्षा लेते हैं। लेकिन हर कष्ट भी भक्तों के लिए आनंद का विषय बन जाता है क्योंकि इस यात्रा का हर कदम आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है। भारत सरकार और चीन सरकार द्वारा संयुक्त रूप से संचालित इस यात्रा के दो प्रमुख मार्ग हैं. लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथुला दर्रा (सिक्किम)। हालाँकि, तिब्बत की सीमा में प्रवेश के लिए चीन की अनुमति अनिवार्य होती है।कैलाश परिक्रमा
कैलाश पर्वत की परिक्रमा (कोरला) अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है। यह लगभग 52 किमी की कठिन पदयात्रा है, जिसे भक्त तीन दिन में पूरा करते हैं। मान्यता है कि इस परिक्रमा को एक बार करने से हजारों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। तिब्बती श्रद्धालु इसे दंडवत करते हुए परिक्रमा करते हैं, जिसे ’प्रणिपात परिक्रमा’ कहा जाता है।
वैज्ञानिक और रहस्यमयी दृष्टि
कैलाश पर्वत आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना हुआ है। इसकी संरचना एक पिरामिड की तरह है और यह दुनिया के अन्य पवित्र स्थलों जैसे जेरूसलम, पिरामिड ऑफ गिजा और स्टोनहेंज से एक रहस्यमयी रेखा में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि कैलाश पर्वत के चारों ओर प्राकृतिक चुंबकीय शक्ति का एक ऐसा केंद्र है, जो समय और आयु की गणना को प्रभावित करता है।
यात्रा का महत्व
कैलाश मानसरोवर केवल एक यात्रा नहीं है, यह जीवन की सबसे पवित्र आध्यात्मिक साधना है। यहां के बर्फीले वातावरण में जो दिव्यता है, वह किसी भी भक्त की आत्मा को झकझोर देती है। यहां आकर लगता है जैसे महादेव की सांसे स्वयं इस हिमालय की ठंडी हवाओं में घुली हुई हैं। लास्मान सुरोवर में स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश का तेज समाहित है। कैलाश बुलाता नहीं है, वह तभी दर्शन देता है जब स्वयं महादेव का आशीर्वाद हो। यह यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन हर कदम आपको शिव के और करीब ले जाता है। यहां आकर लगता है जैसे हर बर्फ का कण, हर श्वास, हर धड़कन ’ॐ नमः शिवाय’ का जाप कर रही हो। झील में कैलाश पर्वत का प्रतिबिंब देखना सबसे शुभ क्षण माना जाता है।
यात्रा का मार्ग और प्रमुख पड़ाव
भारत से जाने के दो रास्ते : 1. लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड). 2. नाथुला दर्रा (सिक्किम). जबकि इसके प्रमुख पड़ाव : धारचूला, लिपुलेख, ताकलाकोट, मानसरोवर, कैलाश, डेरापुक, डोलमा ला पास व झोंगदो है।
यात्रा की विशेषताएं : केवल चयनित यात्रियों को ही अनुमति मिलती है। हर साल सीमित संख्या में श्रद्धालु जा पाते हैं। भारत सरकार और चीन सरकार की अनुमति अनिवार्य। ऊँचाई और मौसम से जुड़ी कठिनाइयां, लेकिन अद्भुत अनुभूति।
भक्ति की अंतिम यात्रा
यह यात्रा केवल पैरों से नहीं, यह ह््रदय और श्रद्धा से तय होती है। यहां पहुंचना सौभाग्य है, क्योंकि कैलाश बुलाता नहीं है, कैलाश तभी दर्शन देता है जब स्वयं महादेव बुलाएं।
पौराणिक मान्यताएं
रावण को हम प्रायः लंका का सम्राट, शिवभक्त, महान विद्वान और रामायण के खलनायक के रूप में जानते हैं, लेकिन रावण का संबंध केवल लंका और युद्ध तक सीमित नहीं था। भारतीय पौराणिक कथाओं में रावण से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं, जो कम ज्ञात हैं, जिनमें सरयू नदी का विशेष स्थान भी उल्लेखनीय है। रावणः शिवभक्ति और विद्वत्ता का प्रतीक था. रावण न केवल एक महान योद्धा था, बल्कि वह परम शिव भक्त, उच्च कोटि का तंत्र साधक और प्रकांड पंडित भी था। कहा जाता है कि उसने ’शिव तांडव स्तोत्र’ की रचना स्वयं भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की थी। उसकी तपस्या, भक्ति और विद्या में कोई संदेह नहीं, किंतु उसका अहंकार ही उसके पतन का कारण बना।
सरयू नदी का पौराणिक महत्व
सरयू नदी अयोध्या से होकर बहती है और इसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से गहरे रूप में जोड़ा जाता है। रामायण में यह नदी केवल एक भौगोलिक धारा नहीं, बल्कि दिव्य मोक्ष का द्वार भी मानी जाती है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने जीवन के अंतिम समय में सरयू नदी में जल समाधि ली थी और अपने दिव्य लोक में प्रस्थान किया था। कुछ कथाओं में उल्लेख मिलता है कि बाल्यकाल में रावण अयोध्या की धरती पर भी आया था। ऐसी मान्यता है कि रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा और उसकी माता कैकसी ने रावण के बाल्यकाल में उसे अयोध्या की यात्रा करवाई थी, जहां सरयू नदी के तट पर उसे वैदिक संस्कार सिखाए गए। सरयू के किनारे रावण ने अपनी प्रथम यज्ञ दीक्षा प्राप्त की थी। कुछ लोककथाओं के अनुसार, रावण जब भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने तपस्या काल में अयोध्या आया, तब उसने सरयू नदी के तट पर विशेष रुद्राभिषेक किया था। कहते हैं कि सरयू का निर्मल जल शिव को अत्यंत प्रिय है और रावण ने इसी जल से भगवान शिव को स्नान कराया था। अयोध्या के समीप प्राचीन समय में रावण द्वारा स्थापित एक शिवलिंग की भी चर्चा मिलती है, हालांकि इसका ऐतिहासिक प्रमाण बहुत सीमित है। कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि रावण ने सरयू के जल का प्रयोग शिव आराधना के लिए विशेष रूप से किया था, क्योंकि सरयू का जल ’मोक्षदायिनी’ माना जाता है।
रावण के राम से युद्ध का आध्यात्मिक संकेत
रावण और राम का युद्ध केवल अच्छाई और बुराई का युद्ध नहीं था, बल्कि यह अहंकार और मर्यादा के बीच संघर्ष था। रावण जहां अद्भुत शक्ति का प्रतीक था, वहीं राम मर्यादा और धर्म का प्रतिरूप। इस युद्ध के बाद जब भगवान श्रीराम सरयू नदी में जल समाधि लेते हैं, तो मान्यता है कि यही सरयू रावण के समर्पण का भी साक्षी बनी थी। कुछ कथाओं के अनुसार, रावण की आत्मा ने मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्रीराम से अंतिम समय में सरयू तट पर क्षमा याचना की थी, और प्रभु राम ने अपने करुणामय स्वभाव से उसे मुक्ति प्रदान कर दी थी। कहा जा सकता है रावण केवल एक खलनायक नहीं था, बल्कि वह भारतीय संस्कृति का एक जटिल और बहुपक्षीय पात्र था। उसकी विद्वता, भक्ति और साहस आज भी चर्चा का विषय हैं। सरयू नदी, जो श्रीराम की महत्ता की प्रतीक मानी जाती है, रावण के जीवन में भी एक अदृश्य आध्यात्मिक धारा के रूप में जुड़ी रही है। यह संबंध हमें यह सिखाता है कि भले ही पात्रों का संघर्ष कैसा भी हो, भारत की नदियां और धरोहरें सबका समान रूप से कल्याण करती हैं। कैलाश पर्वत के पास ही राक्षस ताल नामक झील भी स्थित है, जिसे नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना ज ाता है। झील का पानी अत्यंत निर्मल और मीठा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, मानसरोवर झील में अद्भुत चुंबकीय ऊर्जा पाई जाती है।
भक्तों की ज़ुबानी : कैलाश बुलाता है, तभी रास्ता बनता है
आंखों में श्रद्धा, होठों पर ‘ॐ नमः शिवाय’ जप करते जब श्रद्धालुओं से पूछा गया तो अपने अनुभव साझा करते हुए ललित वर्मा कहते है वहां हर सांस में महादेव बसे है. “मैंने सुना था कैलाश बुलाता है, लेकिन इस यात्रा में मैंने इसे महसूस किया। कड़ाके की ठंड, सांस लेने में तकलीफ, मगर महादेव का आशीर्वाद हर कदम पर महसूस होता था। जब मानसरोवर झील में स्नान किया तो लगा जैसे आत्मा भी शिवमय हो गई। शरीर थक जाता था, मगर मन दौड़ता रहता था शिव की ओर। इस यात्रा ने मुझे भीतर से बदल दिया। वाराणसी के राजेश यादव कहते है, हमारा जत्था मानसरोवर की ओर बढ़ रहा था। ऑक्सीजन कम थी, मौसम अचानक खराब हो जाता था। कुछ पल तो लगा शायद आगे नहीं जा सकेंगे। लेकिन फिर शिव नाम की शक्ति मिली। लास्मान सुरोवर के तट पर बैठकर जब शिव के पर्वत की छाया देखी तो आंखों से आंसू बह निकले। ऐसा शांति का अनुभव शायद किसी मंदिर में भी नहीं मिला। यह शिव के साक्षात् दर्शन हैं। प्रयागराज की अर्चना तिवारी कहती है, कैलाश की परिक्रमा दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में मानी जाती है। पत्थरीले रास्ते, उंचाई, बर्फ और ऑक्सीजन की कमी, हर पल शरीर हार मानने को तैयार था, लेकिन मन कहता था : ‘शिव हैं साथ, चलते रहो।’ डोलमा ला पास पर पहुंचते समय सचमुच लगा कि शिव ने कंधे पर हाथ रखा। वो पल मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पूंजी बन गई है। गोरखपुर के बनवारी लाल कहते है, मैंने कई वर्षों तक कैलाश यात्रा के लिए आवेदन किया, लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से रुकावट आ जाती थी। 5 साल बाद शुरु हो रहे इस यात्रा के लिए नाम स्वीकृत हो गया है। मैंने महसूस किया, शिव ने बुलाया है। जबकि उनके साथी शंकर दुबे, जो आठ साल पहले यात्रा कर आएं है का कहना है कि यात्रा कठिन थी, लेकिन असीम आनंद मिला। मानसरोवर झील में कैलाश का प्रतिबिंब देखकर मन में एक अद्भुत ऊर्जा दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे शिव से प्रत्यक्ष बात कर रही हूं। जब पहली बार दूर से कैलाश पर्वत दिखा तो आंखें भर आईं। वह कोई सामान्य पहाड़ नहीं है, वह सचमुच दिव्य है। वहां की हवा, वहां का मौन, सब शिवमय है। मैंने जीवन में बहुत यात्राएं की हैं, लेकिन ऐसा शांति, ऐसा अद्भुत अहसास कहीं नहीं मिला। मैं लौटकर आया हूं लेकिन मेरा मन अब भी वहीं कैलाश की गोद में है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी




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