- आठ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने किया जलाभिषेक, कांवड़ियों और श्रद्धालुओं के स्वागत में पग-पग पर सेवा
- काशी विश्वनाथ धाम में पुष्पवर्षा से हुआ स्वागत, प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सेवा में झोंकी ताकत
शिवभक्ति की अखंड परंपरा का जीवंत दृश्य
ज्योतिषियों की मानें तो इस वर्ष कांवड़ यात्रा और काशी दर्शन का दुर्लभ संयोग बना है। हज़ारों कांवड़िये गंगाजल लेकर बाबा विश्वनाथ का अभिषेक करने पहुंचे। जिनके कंधों पर कांवड़, माथे पर चंदन और मन में “बोल बम” के उद्घोष थे, उन्होंने पूरे मार्ग को शिवमय कर दिया। इन जलधारियों के स्वागत में रास्ते भर सेवा शिविर, चाय-पानी, आराम स्थल और चिकित्सा केंद्र प्रशासन व स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा सुसज्जित किए गए। राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर मंदिर परिसर तक हर बिंदु पर कांवड़ियों के लिए विशेष ट्रैफिक व्यवस्था और सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं। बता दें, काशी केवल बाबा विश्वनाथ का धाम ही नहीं, बल्कि 84 कोटि शिवलिंगों की पावन भूमि है। शिवालयों में रुद्राभिषेक, चहुंओर “हर-हर महादेव” के स्वर ने एक बार फिर यह प्रमाणित कर दिया कि जब बात श्रद्धा की हो, तो आस्था की धाराएं हर बाधा को बहा ले जाती हैं। “श्रद्धा जब सेवा से जुड़ती है, तो वह केवल भक्ति नहीं रह जाती, एक युगचेतना बन जाती है।”
धार्मिक गरिमा और सांस्कृतिक रंगों से सजी काशी
श्रावण सोमवार को महामृत्युंजय महादेव, संकटमोचन, केदारेश्वर, ओंकारेश्वर, रत्नेश्वर महादेव, भीमशंकर, तेजोमहालाय (विश्वेश्वर लिंग) आदि प्राचीन शिवालयों में रुद्राभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखी गईं। महामृत्युंजय मंदिर में विशेष जड़ी-बूटी युक्त जलाभिषेक किया गया। संकटमोचन मंदिर में भक्तों ने हनुमानजी के समक्ष शिव नाम का जाप करते हुए जल चढ़ाया। अन्नपूर्णा मंदिर में महादेव व अन्नपूर्णेश्वरी का सामूहिक पूजन विशेष आकर्षण रहा। मतलब साफ है यह केवल दर्शन नहीं, काशी की शिवमयी चेतना का उत्सव था। श्रावण मास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारत की आस्थाओं, परंपराओं और जन-समूह की आत्मा का उत्सव है। यह वह समय होता है जब गाँव-शहर से लेकर तीर्थधामों तक शिवभक्ति का अजस्र प्रवाह बहता है। काशी जैसे नगरों में यह केवल एक मासिक उत्सव नहीं, लोकजीवन की गहराइयों में पैठा एक संस्कार है, जहां श्रद्धा, सेवा और संकल्प तीनों एक ही छाया में मिलते हैं। यह वह महीना है जब प्रकृति, पुरुष और परमात्मा का त्रिवेणी संगम होता है। काशी में श्रावण, शिव और सेवा, तीनों एक साथ मिलकर वह वातावरण रचते हैं, जिसे केवल देखा नहीं, अनुभव किया जाता है.
श्रद्धालु बोले, बाबा ने बुलाया है, हम तो चले आए
काशी पहुंचे श्रद्धालु अपने अनुभव साझा करते हुए भावविभोर दिखे। प्रयागराज से आए शिवाकांत बोले, “हर साल बाबा का जलाभिषेक करता हूं, लेकिन इस बार की व्यवस्था अद्भुत रही। प्रशासन से लेकर स्थानीय लोगों तक, सभी ने हमें सेवा दी।” वहीं कानपुर से आई रेखा देवी ने कहा, “सड़क से लेकर मंदिर तक हर जगह फूल, भक्ति और भव्यता है। शिव की नगरी में शिवत्व की अनुभूति होती है।” बारिश में भी भीगते हुए हर कदम पर बोल बम की ताकत थी।” प्रतापगढ़ के रजनीश ने कहा, “हम पहली बार काशी आए हैं, लेकिन लगता है जैसे वर्षों से यहीं हैं। बाबा का आशीर्वाद और काशीवासियों की सेवा दोनों अतुल्य हैं।” पंजाब से आए 70 वर्षीय दर्शन सिंह ने कहा, “पिछले वर्ष स्वास्थ्य ठीक नहीं था, लेकिन बाबा ने इस बार बुलाया है। जब काशी आता हूं, तो लगता है जीवन सफल हो गया।“ वहीं महाराष्ट्र से आई रेखा बाई ने कहा, “धूप हो या बारिश, हम तो शिव जी के लिए आए हैं। बाबा के दर्शन से सारी थकावट खत्म हो जाती है।“ श्रद्धालुओं की विशाल उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने पहले से ही अपनी तैयारी पुख्ता कर ली थी। धाम क्षेत्र में 24 घंटे पेयजल केंद्र, चिकित्सा सहायता हेल्प डेस्क, खोया-पाया केंद्र, पुलिस सहायता बूथ एवं क्यू मैनेजमेंट सिस्टम जैसी व्यवस्थाएं श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए क्रियाशील रहीं।
काशीवासियों ने फिर किया अतिथि सेवा का धर्म निभाया
कांवड़ियों के स्वागत में राष्ट्रीय राजमार्ग से धाम तक कई सेवा शिविर, स्वास्थ्य सहायता बूथ, शीतल पेय केंद्र, मोबाइल टॉयलेट्स आदि की व्यवस्था की गई थी। बोल बम के नारों से संपूर्ण नगर शिवमय हो उठा। नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग, स्मार्ट सिटी टीम और स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से पूरे धाम क्षेत्र को साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखा गया। गंगा घाटों पर साफ-सफाई के साथ स्नान को सुरक्षित और संयमित बनाया गया। खास यह है कि मंगला आरती के उपरांत गोदौलिया और मैदागिन की ओर से आने वाले श्रद्धालुओं पर भव्य पुष्पवर्षा की गई। इस स्वागत समारोह में पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल, जिलाधिकारी सत्येन्द्र कुमार, मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण, विशेष कार्याधिकारी पवन प्रकाश पाठक, नायब तहसीलदार मिनी एल शेखर समेत कई अधिकारी स्वयं मौजूद रहे और व्यवस्थाओं की निगरानी की।
ड्रोन कैमरे में कैद हुई आस्था की उड़ान
इस बार श्रद्धा की इस अनुभूति को आधुनिक तकनीक ने भी एक नया आयाम दिया। ड्रोन कैमरों से ली गई अद्वितीय छवियों में गंगा घाटों पर स्नान करते श्रद्धालु, विश्वनाथ मंदिर की ओर बढ़ते भावुक कदम और भक्ति में रमे चेहरे काशी की आध्यात्मिक शक्ति का सजीव चित्रण करते हैं। ऊपर से लिया गया हर दृश्य श्रद्धा का वृहद कैनवस प्रतीत हो रहा था, जो दर्शाता है कि काशी सिर्फ एक नगर नहीं, बल्कि आस्था की जीवंत चेतना है।
प्रशासन रहा मुस्तैद, सुरक्षा-स्वास्थ्य की चाक-चौबंद व्यवस्था
श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक की विशेष व्यवस्था की। जर्मन हैंगर, अतिरिक्त शेड, सीसीटीवी निगरानी, व्त्ै-ग्लूकोज वितरण, मेडिकल टीम आदि की तैनाती ने सुनिश्चित किया कि श्रद्धालु बिना किसी कठिनाई के दर्शन कर सकें। छह प्रवेश द्वारों से भक्तों को मंदिर में प्रवेश कराया गया, और जिग-जैग बैरिकेडिंग के जरिए जलाभिषेक का आयोजन सुचारु रूप से संपन्न हुआ।
चकिया के बाबा जागेश्वरनाथ मंदिर में 251 किलो लड्डू से श्रृंगार
श्रावण मास की भक्ति सिर्फ काशी तक सीमित नहीं रही। चंदौली जिले के चकिया स्थित प्राचीन बाबा जागेश्वरनाथ मंदिर में शिवभक्त संजीव पाठक ने 251 किलो लड्डुओं से बाबा का विशेष श्रृंगार कराया। सुबह चार बजे से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की कतारें लग गईं। ’बम-बम भोले’ और ’हर-हर महादेव’ के जयकारों से वातावरण गूंज उठा। मंदिर परिसर में शिवपुराण पाठ, रुद्राभिषेक और भजन संध्या जैसे आयोजनों ने भक्तिभाव को और गहरा किया। थानाध्यक्ष अतुल प्रजापति खुद व्यवस्था संभालते दिखे, जिससे प्रशासनिक सहयोग भी सराहनीय रहा।
बारिश भी न रोक सकी शिवभक्तों की आस्था
रविवार भोर से सोमवार तक 120 मिमी बारिश दर्ज की गई कृ जो पिछले पांच वर्षों में एक दिन में हुई सबसे अधिक बारिश रही। इसके बावजूद कांवड़ियों की श्रद्धा डिगी नहीं। जलभराव के बीच भी वे कतारों में डटे रहे, ’हर-हर महादेव’ का जयघोष करते हुए बाबा के दरबार तक पहुंचे।
काशी : आस्था की अमर चेतना
श्रावण मास की यह शुरुआत साबित करती है कि काशी में भक्ति का प्रवाह कभी नहीं थमता। यहाँ की गलियाँ, घाट, मंदिर, यहाँ की हवा और यहाँ का हर जन, जब बाबा विश्वनाथ का नाम लेता है तो केवल शब्द नहीं, श्रद्धा की ऊर्जा जाग्रत होती है। ड्रोन कैमरों की नजर से जो दृश्य सामने आए, वे सिर्फ दृश्य नहीं, सनातन संस्कृति की नश्वरता में नित्य चेतना की झलक थे। सावन की यह प्रथम सोमवारी न केवल धार्मिक उल्लास का प्रतीक रही, बल्कि यह काशी की जीवंत आस्था का घोषणापत्र भी बनी।

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