- दंडवत करते हुए जबलपुर के युवक भोले का समिति ने किया स्वागत

सीहोर। सावन मास वह समय जब श्रद्धा की धारा और शिवभक्ति की शक्ति मिलकर एक पवित्र यात्रा का रूप ले लेती है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा से शिव तक पहुंचने की एक जीवंत साधना है। इसका एक उदाहरण शहर के रेलवे स्टेशन, सीवन नदी के तट से लेकर कुबेरेश्वरधाम तक दिखाई दे रहा है। अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा की पे्ररणा और भगवान शिव की भक्ति से लबरेज शिव भक्त पूरे आनंद के साथ नंगे पैर आस्था और उत्साह के साथ कठिन डगर पर चल रहे है। कई कांवड वाले तो दंडवत करते हुए जा रहे है तो कोई कंधे पर कांवड लेकर चल रहे है। बुधवार को भी हजारों की संख्या में पहुंचे शिव भक्तों का विठलेश सेवा समिति की ओर से व्यवस्थापक पंडित समीर शुक्ला, पंडित विनय मिश्रा आदि ने स्वागत-सम्मान किया। इस मौके पर सुबह बाबा की आरती के पश्चात करीब ढाई क्विंटल से अधिक मावे की बर्फी का भोग लगाकर भोजन के साथ प्रसादी प्रदान की गई। इधर शहर के सीवन नदी और रेलवे स्टेशन से कुबेरेश्वरधाम पर जाने वाले हजारों श्रद्धालुओं के लिए सेवा शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। बुधवार को रेलवे स्टेशन से दंडवत करते हुए आ रहे जबलपुर निवासी भोले का श्री राधेश्याम विहार कालोनी में फलहारी प्रसादी देकर फूल मालाओं से सम्मान किया। इस मौके पर समिति की और से मौजूद जितेन्द्र तिवारी ने युवक भोले से चर्चा की तो युवक ने बताया कि वह जबलपुर से कुबेरेश्वरधाम की ओर आया है और उसने रेलवे स्टेशन पर अपने संकल्प के साथ दंडवत शुरू की है। उसने बताया कि वह 18 किलोमीटर तक बाबा का जप करते हुए अपनी यात्रा पूर्ण करेंगे। यात्रा के दौरान वह घायल भी हो गए है।
भक्ति की अद्वितीय अभिव्यक्ति
समिति के मीडिया प्रभारी मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि गुरुदेव की प्रेरणा से इस कलियुग में शिवयुग की वापसी हुई है। सावन में भागवन शिव की भक्ति हमें सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। कांवड़ यात्रा उसी भक्ति की अद्वितीय अभिव्यक्ति है, जिसमें लाखों श्रद्धालु जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा करते हैं — सिर्फ एक उद्देश्य के लिए भोलेनाथ को समर्पण। दंडवत कांवड़ यात्रा, भक्तों को एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है, जिससे उन्हें अपने भीतर की शक्ति का अहसास होता है। कांवड़ यात्रा के दौरान, कुछ भक्त दंडवत (साष्टांग प्रणाम) करते हुए भी कांवड़ लेकर चलते हैं। यह भक्ति और समर्पण का एक अत्यंत कठिन रूप है, जिसमें भक्त जमीन पर लेटकर, अपने पूरे शरीर को भूमि पर स्पर्श कराते हुए, कांवड़ के साथ आगे बढ़ते हैं।
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