विशेष : बीमारी नहीं, अस्थाई दौर है सावन का अवसाद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 13 जुलाई 2025

विशेष : बीमारी नहीं, अस्थाई दौर है सावन का अवसाद

  • ‘मॉनसून मूड स्विंग’ - उदासी भरे दिन जल्द ही ढलेंगे

Harish-shivnani
सावन की बरखा बहार का अपना ही उमंग भरा आनंद है। यह समय है जब प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। समूची प्रकृति नहाई हुई -सी तरो-ताज़ा लगती है। इसीलिए वसंत और पावस ऋतुओं को सदा मनोहारी माना गया है। सावन यानी मॉनसून का एक ओर जहाँ यह पक्ष है, वहीं इसका दूसरा पहलू थोड़ा निराशा भरा है। कई लोगों के लिए मॉनसून उदासी भरे दिन भी हो सकते हैं। अगर आप उन लोगों में से हैं जो वर्षा ऋतु में उदास और अवसाद महसूस करते हैं, तो यह सिर्फ़ आपका भ्रम नहीं है। मौसम में परिवर्तन के कारण ‘मॉनसून मूड स्विंग’ हो सकता है, खासकर उन लोगों में जो डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी समस्याओं से जूझते रहे हैं। मॉनसून मूड स्विंग्स का मतलब बारिश के मौसम में मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव से है। कुछ लोगों के लिए बारिश का मौसम आशिकाना और उल्लसित करने वाला हो सकता है तो दूसरी ओर कुछ लोग उदास, चिड़चिड़े, या ऊर्जाहीन महसूस कर सकते हैं। ऐसे लोगों को मूड मानसून आते ही स्विंग होने लगता है। कभी वो बहुत खुश रहते हैं, तो कई बार अचानक परेशान होने लगते हैं। स्ट्रेस और एंग्जाइटी के चलते वे दिन भर परेशान, उदास, खिन्न-से रहते हैं। ये केवल मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक अवस्थाएँ हैं, कोई बीमारी नहीं। इस बदलाव को ‘सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर’ भी कहा जाता है। ‘जर्नल ऑफ़ साइकियाट्रिक रिसर्च’ में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार  जब मौसम बादल छाने या बरसात का होता है तो कुछ लोगों में, विशेषकर महिलाओं में अवसाद की संभावना अधिक होती है। दरअसल सूर्य की रोशनी हमें ऊर्जा देती है और हमें उठने और अपनी दैनिक गतिविधियों को करने के लिए सक्रिय करती है। आम तौर पर लंबे समय तक बारिश होने पर ‘सर्कैडियन रिदम’ गड़बड़ा जाती है। जिससे मूड स्विंग होने लगता है। सर्कैडियन लय शरीर की जैविक घड़ी है, जो 24 घंटे के चक्र में हमारे शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक प्रक्रियाओं को समयबद्ध तरीके से नियंत्रित करती है और सोने-जागने का चक्र, हार्मोन प्रोडक्ट, शरीर के तापमान के साथ भूख और पाचन की प्रक्रिया और मानसिक सतर्कता व एकाग्रता के स्तर को संचालित करती है।


मॉनसून मूड स्विंग के लक्षणो को पहचानने के कुछ संकेत होते हैं। एक संकेत यह है कि प्रभावित लोग 

मॉनसून में हर वक्त उदास बने रहते हैं। रोजमर्रा के कामकाज करने में चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं और ज्यादा समय बिस्तर पर पड़े रहना पसंद करते हैं और सोने और उठने में उन्हें  परेशानी तो होती ही है। उन्हें बार-बार खाने की तलब भी होती रहती है।


मॉनसून मूड स्विंग की वज़ह 

कम धूप और विटामिन डी की कमी: मॉनसून में बादल छाए रहने से सूरज की रोशनी कम मिलती है, जिससे मस्तिष्क में मेलाटोनिन (नींद का हार्मोन) बढ़ता है और शरीर में विटामिन डी और सेरोटोनिन (खुशी का हार्मोन) का स्तर कम हो सकता है।


चारदीवारी में रहने की मजबूरी: लगातार बारिश के कारण लोग बाहर कम निकल पाते हैं, जिससे उनकी सामाजिक गतिविधियाँ और शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं। बारिश और नमी के चलते बॉडी ज़्यादा एक्टिव भी नहीं होती है। इसके कारण सुस्ती और कमजोरी, उदासी और अवसाद-सा महसूस होता रहता है। 


नमी और गंध : उच्च आर्द्रता, गीले कपड़े, और फफूंदी की गंध से चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है।


हॉर्मोनल बदलाव: मौसम के बदलाव से मस्तिष्क में रासायनिक संतुलन प्रभावित हो सकता है, जिससे मूड स्विंग्स होते हैं।


आख़िर इस दर्द की दवा क्या है ? 

पारिवारिक सामाजिक मेलजोल बनाए रखें- कई लोगों के मूड स्विंग्स इसलिए होते हैं, क्योंकि उनके सोशल कनेक्शन कम हो जाते हैं। बरसात की वजह से लोग अपने दोस्तों,परिचितों, करीबियों से मिल नहीं पाते हैं। कनेक्शन कम होने से वो अकेलापन महसूस करते हैं। 


घर-परिवार है संसार - मूड स्विंग्स पर कंट्रोल करने के लिए फैमिली लाइफस्टाइल अपनाना जरूरी है। इसलिए बाहर से जंक फूड खाने के बजाय घर का ताज़ा, परंपरागत खाने को प्राथमिकता दें। परिवार के साथ गपशप, हास-परिहास करते रहें।


अपनी रुचियों पर ध्यान दें- मूड स्विंग्स कंट्रोल करने के लिए आपको अपनी रुचि वाले काम करने चाहिएं। इससे आपका स्ट्रेस कम होगा। इससे आप ज्यादा बेहतर महसूस करेंगेऔर खुश रहेंगे। 


जो दर्द दें उनसे दूरी है ज़रूरी- उन चीजों और बातों-यादों से दूरी बनाए रखें जिनसे आपको तनाव बढ़ता है। पुराने मनमुटावों, कटु स्मृतियों, व्यर्थ की बहसों आदि पर ध्यान न देकर स्ट्रेस मैनेजमेंट टेक्निक पर ध्यान दें।


ध्यान, व्यायाम और योग भगाए रोग- ध्यान करने से हमारा दिमाग फोकस  होता है। मेडिटेशन, डीप ब्रीदिंग, या माइंडफुलनेस प्रेक्टिस से तनाव कम कर सकते हैं। इसके अलावा योग या इंडोर गेम वर्कआउट, एंडोर्फिन हार्मोन को बढ़ाता है, जो मूड को बेहतर करता है। कुछ पढ़िए, कुछ लिखिये- पढ़ना-लिखना बहुत बड़ी थैरेपी है। उदासी, निराशा, अवसाद के दौर में अपनी रुचि की कोई क़िताब पढ़िए। क़िताबों की खुशबू आपको तरो-ताज़ा कर देगी। अपने मन की बात, दिल के जज़्बात को कहानी, कविता, डायरी लिखिये। इससे मन हल्का होता है और मूड भी बदल जाएगा और यकीन मानिए उदासी भरे ये दिन जल्दी ही ढलेंगे!



    

हरीश शिवनानी

ईमेल : shivnaniharish@gmail.com

मोबाइल : 9829210036

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