- ‘मॉनसून मूड स्विंग’ - उदासी भरे दिन जल्द ही ढलेंगे
मॉनसून मूड स्विंग के लक्षणो को पहचानने के कुछ संकेत होते हैं। एक संकेत यह है कि प्रभावित लोग
मॉनसून में हर वक्त उदास बने रहते हैं। रोजमर्रा के कामकाज करने में चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं और ज्यादा समय बिस्तर पर पड़े रहना पसंद करते हैं और सोने और उठने में उन्हें परेशानी तो होती ही है। उन्हें बार-बार खाने की तलब भी होती रहती है।
मॉनसून मूड स्विंग की वज़ह
कम धूप और विटामिन डी की कमी: मॉनसून में बादल छाए रहने से सूरज की रोशनी कम मिलती है, जिससे मस्तिष्क में मेलाटोनिन (नींद का हार्मोन) बढ़ता है और शरीर में विटामिन डी और सेरोटोनिन (खुशी का हार्मोन) का स्तर कम हो सकता है।
चारदीवारी में रहने की मजबूरी: लगातार बारिश के कारण लोग बाहर कम निकल पाते हैं, जिससे उनकी सामाजिक गतिविधियाँ और शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं। बारिश और नमी के चलते बॉडी ज़्यादा एक्टिव भी नहीं होती है। इसके कारण सुस्ती और कमजोरी, उदासी और अवसाद-सा महसूस होता रहता है।
नमी और गंध : उच्च आर्द्रता, गीले कपड़े, और फफूंदी की गंध से चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है।
हॉर्मोनल बदलाव: मौसम के बदलाव से मस्तिष्क में रासायनिक संतुलन प्रभावित हो सकता है, जिससे मूड स्विंग्स होते हैं।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है ?
पारिवारिक सामाजिक मेलजोल बनाए रखें- कई लोगों के मूड स्विंग्स इसलिए होते हैं, क्योंकि उनके सोशल कनेक्शन कम हो जाते हैं। बरसात की वजह से लोग अपने दोस्तों,परिचितों, करीबियों से मिल नहीं पाते हैं। कनेक्शन कम होने से वो अकेलापन महसूस करते हैं।
घर-परिवार है संसार - मूड स्विंग्स पर कंट्रोल करने के लिए फैमिली लाइफस्टाइल अपनाना जरूरी है। इसलिए बाहर से जंक फूड खाने के बजाय घर का ताज़ा, परंपरागत खाने को प्राथमिकता दें। परिवार के साथ गपशप, हास-परिहास करते रहें।
अपनी रुचियों पर ध्यान दें- मूड स्विंग्स कंट्रोल करने के लिए आपको अपनी रुचि वाले काम करने चाहिएं। इससे आपका स्ट्रेस कम होगा। इससे आप ज्यादा बेहतर महसूस करेंगेऔर खुश रहेंगे।
जो दर्द दें उनसे दूरी है ज़रूरी- उन चीजों और बातों-यादों से दूरी बनाए रखें जिनसे आपको तनाव बढ़ता है। पुराने मनमुटावों, कटु स्मृतियों, व्यर्थ की बहसों आदि पर ध्यान न देकर स्ट्रेस मैनेजमेंट टेक्निक पर ध्यान दें।
ध्यान, व्यायाम और योग भगाए रोग- ध्यान करने से हमारा दिमाग फोकस होता है। मेडिटेशन, डीप ब्रीदिंग, या माइंडफुलनेस प्रेक्टिस से तनाव कम कर सकते हैं। इसके अलावा योग या इंडोर गेम वर्कआउट, एंडोर्फिन हार्मोन को बढ़ाता है, जो मूड को बेहतर करता है। कुछ पढ़िए, कुछ लिखिये- पढ़ना-लिखना बहुत बड़ी थैरेपी है। उदासी, निराशा, अवसाद के दौर में अपनी रुचि की कोई क़िताब पढ़िए। क़िताबों की खुशबू आपको तरो-ताज़ा कर देगी। अपने मन की बात, दिल के जज़्बात को कहानी, कविता, डायरी लिखिये। इससे मन हल्का होता है और मूड भी बदल जाएगा और यकीन मानिए उदासी भरे ये दिन जल्दी ही ढलेंगे!
हरीश शिवनानी
ईमेल : shivnaniharish@gmail.com
मोबाइल : 9829210036
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