कहते है कांवड़ यात्रा का प्रत्येक कदम एक अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य देता है। और सच भी यही है। यह भारत की आत्मा से निकला हुआ वह विश्वास है, जो हर साल सावन में अपने कंधों पर धर्म, संस्कृति और श्रद्धा को उठाए चलता है। आज जब हम ‘कांवड़ यात्रा’ को केवल एक धार्मिक उत्सव मानते हैं, तो हम उसके भीतर की चेतना को कम कर देते हैं। यह यात्रा एक लोक-तीर्थ है, यह तीर्थ वह है जो स्वयं बनता है, जिसमें श्रद्धालु ही पुरोहित हैं और श्रद्धा ही विधान है। कांवड़ शिव का निमंत्रण नहीं, शिव से मिलने का संकल्प है। यह यात्रा जल के सहारे आत्मा की अग्नि को शांत करने की आराधना है। यह यात्रा हर कदम पर ‘हर हर महादेव’ को स्वयं में धारण करने की प्रक्रिया है। श्रावण मास में शिवभक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। छोटे-बड़े, युवा-वृद्ध, नर-नारी, सब एक समान केसरिया परिधान में “बोल बम” के नारे लगाते हुए कांवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। यह धार्मिक अनुष्ठान केवल जलाभिषेक नहीं, बल्कि आत्मनियंत्रण, त्याग और परंपरा का अनूठा संगम बन जाता है। सावन में शिवभक्तों की यह यात्रा हमें सिखाती है कि श्रद्धा में शक्ति है, संकल्प में सामर्थ्य है, और भक्ति में वह ऊर्जा है जो असंभव को भी संभव बना देती है। कांवड़ यात्रा हर वर्ष न केवल सड़कों को गुलजार करती है, बल्कि हृदयों को शिव-भाव से सराबोर कर देती है
श्रावण का जलाभिषेक
श्रावण मास जब आता है, तो गगन में घटाएँ उमड़ती हैं, धरती पर हरीतिमा लहराती है और भक्तों के मन में भक्ति की बाढ़ आ जाती है। यह महीना शिवभक्ति का, तप और संयम का, और समर्पण का प्रतीक है। उत्तर से दक्षिण और पर्वत से सागर तक “हर हर महादेव” और “बोल बम” के नारों से सारा देश शिवमय हो उठता है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का उत्सव है। श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार एक आध्यात्मिक अनुष्ठान बन जाता है। शिवलिंग पर जल, पंचामृत और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा केवल कर्मकांड नहीं, वह कृतज्ञता का प्राकट्य हैकृउन महादेव के प्रति जिन्होंने हलाहल पान कर सृष्टि की रक्षा की।
श्रद्धा का महासागर
श्रावण में शिवभक्ति की सबसे अद्वितीय अभिव्यक्ति है कांवड़ यात्रा। यह यात्रा केवल गंगाजल का परिवहन नहीं, आत्मा की यात्रा है, जहां प्रत्येक कांवड़िया “मैं” से “हम” की ओर बढ़ता है। पैरों में छाले, आंखों में दृढ़ संकल्प और कंधे पर गंगाजल लिए ये यात्री देश की धार्मिक चेतना का चलायमान रूप हैं। प्राचीन समय में जब राजस्थान के मारवाड़ी समाज के लोग गोमुख से जल लेकर रामेश्वरम तक पदयात्रा करते थे, तो वह केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि उत्तर से दक्षिण तक की सांस्कृतिक कड़ी का प्रवाह था। आज यह परंपरा भले ही डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ या दांडी कांवड़ जैसे विभिन्न रूपों में परिवर्तित हो गई हो, लेकिन उसकी आत्मा अब भी वैसी ही हैकृअडिग, अपराजेय और आस्थामयी।
सामाजिक समरसता और सेवा का पर्व
श्रावण मास केवल भक्ति का पर्व नहीं, सेवा का संगम भी है। देश के हर कोने में कांवड़ियों के स्वागत में शिविर, भंडारे, चिकित्सा सेवा, जल वितरण की व्यवस्था होती है। आमजन, पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाएं एक समान भाव से इस महायात्रा को अपना योगदान देती हैं। यही भारत की सनातन शक्ति हैकृजहाँ धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं, वह लोकसेवा से जुड़ा है।
नव पीढ़ी के लिए प्रेरणा
जब बच्चे, युवा, वृद्ध और महिलाएं भी इस यात्रा में सम्मिलित होते हैं, तो यह केवल धार्मिक भावना का उत्सव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और जीवनमूल्यों की पाठशाला बन जाती है। जिस प्रकार “बम बम भोले“ का स्वर संपूर्ण शरीर में ऊर्जा भर देता है, उसी प्रकार यह यात्रा हर मनुष्य में संयम, अनुशासन और आत्मनियंत्रण की भावना भरती है।
उत्सव नहीं, उत्सर्ग है श्रावण
श्रावण मास केवल पूजा-पाठ का अवसर नहीं, यह तप का प्रतीक है। यह आत्मा को स्वच्छ करने का, विचारों को परिष्कृत करने का, और भगवान शिव के समक्ष अपनी सीमाओं को लांघने का अवसर है। यह मास हमें सिखाता है कि विष पीने वाले शिव की पूजा केवल जल से नहीं, अपने जीवन में भी उनके जैसे त्याग, सहनशीलता और करुणा लाकर की जानी चाहिए। वर्तमान समय में जब भौतिकता हावी है, तब श्रावण और कांवड़ यात्रा जैसे आयोजन हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं, हमारे अंदर सोई मानवीय संवेदनाओं को जगाते हैं और हमें सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति केवल मंदिरों में
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी



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