जलवायु परिवर्तन : बात सिर्फ मौसम की नहीं, अब इंसाफ की भी है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

जलवायु परिवर्तन : बात सिर्फ मौसम की नहीं, अब इंसाफ की भी है

  • अब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस भी कह रहा: जलवायु को बचाना सिर्फ नैतिक नहीं, कानूनी ज़िम्मेदारी भी

climate-change-law
आज इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ), यानि दुनिया की सबसे बड़ी अदालत, ने एक ऐतिहासिक सलाह दी है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि दुनिया के हर देश की ये कानूनी ज़िम्मेदारी है कि वो जलवायु संकट को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। कोई बहाना नहीं चलेगा। अब ये सिर्फ वैज्ञानिक चेतावनी या युवाओं का आंदोलन नहीं है, ये कानून की बात है। ये कहानी शुरू हुई थी एक छोटे से द्वीप देश वानुआतु से, जहाँ के युवाओं ने ये सवाल उठाया: "क्या हमारी सरकारें जलवायु संकट से हमारी रक्षा करने की कानूनी ज़िम्मेदारी निभा रही हैं?" इसी सवाल को 2023 में UN महासभा ने ICJ के सामने रखा। और आज, दुनिया भर से आए 100 से ज़्यादा देशों की दलीलें सुनने के बाद, ICJ ने ये ऐलान किया है: "हर देश को अपने ग्रीनहाउस गैस एमिशन को तेजी से कम करना होगा और कोयला, तेल, गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से छुटकारा पाना होगा। वरना वो अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ रहे होंगे।" UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे एक "ऐतिहासिक जीत" बताया है, पृथ्वी के लिए, जलवायु न्याय के लिए, और उन युवाओं के लिए जो लगातार लड़ रहे हैं। मुद्दा साफ है: पेरिस समझौते में तय 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य कोई सुझाव भर नहीं है, ये एक ज़रूरी पैमाना है, जिसके हिसाब से नीतियां बनानी ही होंगी।


अदालतों की लहर बन चुकी है

ICJ का ये फैसला अकेला नहीं है। इससे पहले नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, बेल्जियम, इंटर-अमेरिकन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स, और यूरोपीय मानवाधिकार अदालत जैसे कई मंचों ने भी यही कहा है—सरकारें जलवायु परिवर्तन को रोकने में नाकाम रहती हैं, तो ये सिर्फ नीति की नाकामी नहीं, इंसानों के अधिकारों का उल्लंघन है। कानून अब लोगों के साथ खड़ा है।


Climate Litigation Network की को-डायरेक्टर सारा मीड ने कहा:

"ये फैसला उस उम्मीद को वैधता देता है जो दुनिया के ज़्यादातर लोग अपनी सरकारों से रखते हैं—कि वो हमारी और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए जलवायु पर ठोस कदम उठाएंगे।" आज के हालात में, जब ज़्यादातर देशों की जलवायु योजनाएं अधूरी और कमज़ोर हैं, तो ये कानूनी राय नई उम्मीद और ताकत देती है। स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों पर भी अब दबाव बढ़ेगा, जो कोर्ट के पुराने फैसलों को चुनौती दे रहे हैं। ग्रीनपीस स्विट्ज़रलैंड के जॉर्ज क्लिंगलर ने कहा : "ICJ ने साफ कर दिया है कि हर देश का कानूनी फर्ज़ है कि वो जलवायु संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों और भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा करे।"


आगे क्या?

अब जबकि बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा, तुर्की, पुर्तगाल, न्यूजीलैंड, और कई देशों में जलवायु मुकदमे चल रहे हैं, ये सलाह एक तरह का कानूनी और नैतिक कम्पास बन सकती है। इससे एक्टिविस्ट, समुदाय और आम लोग अपने हक़ के लिए और मजबूती से खड़े हो सकेंगे। यानी अब मौसम की तरह सरकारों के मूड बदलने का समय नहीं है—अब जवाबदेही का मौसम आ गया है।

कोई टिप्पणी नहीं: