प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘क्या वह आपके दोस्त हैं? वह अब भी न्यायमूर्ति वर्मा ही हैं। आप उन्हें कैसे संबोधित कर रहे हैं? थोड़ी शालीनता बरतें। आप एक विद्वान न्यायाधीश की बात कर रहे हैं। वह अब भी न्यायालय के न्यायाधीश हैं।’’ वकील ने जोर देकर कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि वे इतने महान हैं कि उन्हें सम्मान दिया जाए। मामले को सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।’’ इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कृपया न्यायालय को निर्देश नहीं दें।’’ हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वर्मा ने एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया। आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट में उन्हें नकदी बरामदगी मामले में कदाचार का दोषी पाया गया था। वर्मा ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा आठ मई को दी गई सिफारिश को रद्द करने का अनुरोध किया है, जिसमें संसद से उनके (वर्मा के) खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में वर्मा को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने की योजना है। घटना की जांच कर रही जांच समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर परोक्ष या प्रत्यक्ष नियंत्रण था जहां आधी जली हुई नकदी का बड़ा जखीरा बरामद किया गया था। यह घटना उनके कदाचार को साबित करती है, जो उन्हें पद से हटाए जाने के लिए पर्याप्त है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की समिति ने 10 दिन तक जांच की, 55 गवाहों से पूछताछ की और न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास का दौरा किया जहां 14 मार्च को रात लगभग 11 बजकर 35 मिनट पर अचानक आग लग गई थी। वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और वर्तमान में वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यरत हैं। रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए पूर्व प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की।

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