विचार : कश्मीरी-पंडित के बदले कश्मीरी-हिन्दू प्रचलन में क्यों नहीं है? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 6 जुलाई 2025

विचार : कश्मीरी-पंडित के बदले कश्मीरी-हिन्दू प्रचलन में क्यों नहीं है?

shiben-raina
मुझ से मित्र अक्सर पूछते हैं कि कश्मीरी-पंडित के बदले कश्मीरी-हिन्दू प्रचलन में क्यों नहीं है?पंडित या हिन्दू में कोई तात्विक अंतर है क्या?--मित्रों की शंका का समाधान संभवतः अधोलिखित बात से हो सकता है। प्रसंगवश एक बात याद आ रही है। अपने नाम  के आगे जवाहरलाल नेहरू भी पंडित लगाते थे और दीनदयाल उपाध्याय भी पंडित लगाते थे। कश्मीर ने अपनी विकास-यात्रा के दौरान कई मंज़िलें तय की हैं।प्राचीनकाल से ही यह भूखंड विद्या-बुद्धि,धर्म-दर्शन और साहित्य-संस्कृति का प्रधान केंद्र रहा है।इसे ''रेश्य-वा’र” या संतों की भूमि भी कहा जाता है।यहाँ के मूल निवासी कश्मीरी पंडित कहलाते हैं। प्रारम्भ से ही कश्मीर भूमि उद्भट विद्वानों और मनीषियों की भूमि रही है।कश्मीर को ‘शारदा देश’ के नाम से भी पुकारा जाता है। शारदा देश यानी माता सरस्वती का निवास स्थान। कहते हैं कि ज्ञानकी देवी सरस्वती ने अपने रहने के लिए जो स्थान पसंद किया, वह कश्मीर है।अत: कश्मीर का नाम शारदा-देश भी है ।तभी विद्याप्रेमी हिंदूजन प्रायः प्रतिदिन शारदा देवी के श्लोक का पठन करते समय कहते हैं:

 “नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे।“ (अर्थ: हे कश्मीर-वासिनी सरस्वती देवी! आपको मेरा प्रणाम । आप हमें ज्ञान दें, यह मेरी आपसे नित्य प्रार्थना है।)

इस उक्ति से सहज ही समझा जा सकता है कि कश्मीर में कितने विद्वानों का प्रादुर्भाव हुआ होगा! ऋषियों, मुनियों, मठों-मन्दिरों, विद्यापीठों और आध्यात्मिक केन्द्रों की इस भूमि ने एक-से-बढ़कर एक विद्वान उत्पन्न किए हैं। ये सब विद्वान पंडित कहलाए। ज्ञान रखने वाला और बाँटने वाला ‘पंडित’ कहलाता है। अतः ज्ञान की भूमि कश्मीर की जातीय पहचान ही ‘पंडित’ नाम से प्रसिद्ध हो गई। ‘कश्मीरी’ और ‘पंडित’ दोनों एकाकार होकर समानार्थी बन गए।कहना न होगा कि प्राचीनकाल में कश्मीर में जिस भी धर्म,जाति,प्रजाति या संप्रदाय के लोग रहे होंगे, कालांतर में कश्मीरी हिन्दू अथवा पंडित ही धरती का स्वर्ग कहलाने वाले इस भूभाग के मूल निवासी कहलाये।




—डॉ० शिबन कृष्ण रैणा—

कोई टिप्पणी नहीं: