- केवल पोलिटिकल पार्टी को नहीं हरेक मतदाता को सूचना मिले, पंचायत स्तर पर deletion लिस्ट चिपकाई जाए
- यदि उप मुख्यमंत्री के आवेदन पर आयोग काम नहीं कर पाया तो आम लोगों का क्या ही कहना
लेकिन अब मतदाताओं की विभिन्न श्रेणियों में बढ़ोतरी देखें
मृत मतदाता : मृत मतदाताओं की कुल संख्या 19 जुलाई को 14,29,354 से छलांग लगा 21 जुलाई को 16,55,407 हो गई, फिर 22 जुलाई को 18,66,869 हो गई और अंत में 22 लाख पर पहुँच गई! यानी आखिरी हफ्ते में लगभग मृतकों की संख्या में 8 लाख का उछाल, जबकि प्राप्त फॉर्म का आधार मामूली रूप से ही 7.15 करोड़ से 7.24 करोड़ तक बढ़ा था!
स्थायी रूप से स्थानांतरित : इस श्रेणी में तो और भी चौंकाने वाली छलांग है! 19 जुलाई को 19,74,246 से 21 जुलाई को 19,75,231, फिर 22 जुलाई को 26,01,031 हो गया और अंत में 36 लाख पर पहुँच गया! यानी आखिरी सात दिनों में यह आंकड़ा लगभग दोगुना हो गया!
अब तक अपने पते पर नहीं मिले मतदाता : इस श्रेणी में ऐसे वोटरों की संख्या 19 जुलाई को 41,64,814 था, जो 21 जुलाई को 43,92,864 हो गया और अगले ही दिन 22 जुलाई को 52,30,126 पर पहुंच गया.
जिनका पता नहीं चला : इस श्रेणी में मतदाताओं की गिनती पर विचार करें तो यह जुलाई को 11,000 थी, 21 और 22 जुलाई को 11,484 पर स्थिर रही, फिर अंतिम गणना में 24 जुलाई के अनुसार *1 लाख* के चौंकाने वाले आंकड़े पर पहुँच गई! शायद अब यह आंकड़ा स्थायी रूप से स्थानांतरित श्रेणी में मिला दिया गया है!
एक से ज्यादा जगह पंजीकृत मतदाता : यह श्रेणी ऐसी है जहां मतदाताओं की संख्या जो रहस्यमय तरीके से *कम* हुआ है. 19 जुलाई को ऐसे मतदाताओं की संख्या 7,50,213 थी, 21-22 जुलाई को मामूली बढ़कर 7,50,742 हुए, लेकिन अंतिम आंकड़ों में घटकर *7 लाख* रह गए! अभी तक शायद हमने सिर्फ़ ऊपर-ऊपर से झलक देखी है, असली तस्वीर बाकी है. उन 10–15% फॉर्मों के बारे में कोई साफ़ जानकारी नहीं, जिन्हें बीएलओ ने ‘सिफ़ारिश नहीं’ किया था (जैसा कुछ ज़िला चार्टों में पहले आया था). हमें नहीं पता कि अगस्त के अंत तक कितने मतदाता ‘दस्तावेज़’ के बिना पाए जाएंगे और उनके बारे में ईआरओ अपने विवेकाधिकार से क्या फ़ैसला करेंगे. और हम सिर्फ़ डर के साथ अंदाज़ा लगा सकते हैं कि महाराष्ट्र के पैमाने पर महादेवपुरा शैली में नए मतदाताओं को किस पैमाने और तरीके से पंजीकृत किया जाएगा! अगर 2024 “चुनिंदा चुनावी चोरी” का साल था, तो बिहार में जो हो रहा है वह खुली दिन-दहाड़े लूट है. दस्तावेज़ शामिल करने और डेटा उजागर करने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को चुनाव आयोग ने हठपूर्वक ठुकरा दिया. अब यह खुला चैलेंज है — चुनाव आयोग बनाम भारत की जनता: “हमें रोक सकते हो तो रोको!”
‘केन्द्रीय चुनाव आयोग’ अब ‘केन्द्रीय चुनौती आयोग’ बन गया है!
चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट की भी बात नहीं मान रहा. अपने एफिडेविट में वह हमारी पार्टी का नाम भी ठीक से नहीं ले पा रहा. Natural justice और rule of law यही कहता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव मे जिन्होंने वोट डाला उनमे से 66 लाख को बिना किसी सूचना के उन्हे बाहर कर दिया. केवल poltical पार्टी की बात नहीं आयोग को मतदाताओं को बताना होगा. चुनाव आयोग पोलिटिकल पार्टी को सामने ला रहा है, लेकिन उनकी जवावदेही मतदाता के प्रति है. पॉलिटिकल पार्टी को बहाना बनाया जा रहा है. जिनका नाम sir से बाहर किया गया वे form 6 क्यों भरेंगे? जहाँ शिकायत हो रही है वहाँ blo को क्यों हटाया जा रहा है? हम जो डाटा मांग रहे हैं, वह नहीं दे रहा.
राहुल गाँधी ने चुनाव चोरी पर बड़ा खुलासा किया. एक लोकसभा की एक विधानसभा मे 1 लाख फर्जी वोटर पाए गए. इसकी जांच की बजाय आयोग राहुल गाँधी से एफिडेविट मांग रहा है. काटे गए 65.5 लाख नामों और उनके कारणों की सूची देने से आयोग बच रहा है. ज़मीनी रिपोर्टें बता रही हैं कि वंचित तबकों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और INDIA गठबंधन के समर्थकों के वोट सुनियोजित तरीके से काटे जा रहे हैं. यह मताधिकार की हत्या है. SIR का मुद्दा बिहार और देश का बड़ा मुद्दा बन चुका है. पार्टी ने 9–11 अगस्त तक पूरे देश में “वोट चोर, गद्दी छोड़” का नारा दिया है. इसके नारे के साथ हर गली-मोहल्ले, गांव-कस्बे और शहर में हमें सघन अभियान और प्रतिरोध मार्च निकाला जाएगा. 15 अगस्त को, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, विकेंद्रित रूप से व्यापक पैमाने पर तिरंगे के साथ “आजादी बचाओ, संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ” मार्च आयोजित किये जायेंगे. प्रेस कॉन्फेंस में राज्य सचिव कुणाल, धीरेंद्र झा, शशि यादव और विधायक गोपाल रविदास शामिल थे.

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