काशी के बड़े गणेश केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और पौराणिक परंपरा का जीवंत केंद्र हैं। यहां विघ्नहर्ता स्वयं छप्पन रूपों में विराजमान होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि काशीवासी हर शुभ कार्य की शुरुआत गणपति वंदना से करते हैं। कहते है ”गणेश चतुर्थी” को ही विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि व सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। गणेश चतुर्थी पर जब संपूर्ण काशी गणेशमय हो उठती है, तो यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का ऐसा उत्सव होता है जो काशी की पहचान को और भी अद्वितीय बना देता है। कहते है काशी के 56 गणेश रूपों का दर्शन करने से हर विघ्न का नाश होता है। लोहटिया स्थित बड़े गणेश मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है। गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन से बचने की परंपरा आज भी काशी में जीवित है। 21 नामों और 21 लड्डुओं का भोग गणेश पूजन का विशेष अंग है। अनंत चतुर्दशी को भव्य शोभायात्रा के साथ होता है गणपति विसर्जन
राजा देवोदास की कथा और गणेश का प्रताप
पौराणिक मान्यता के अनुसार, हजारों वर्ष पहले काशी पर राजा देवोदास का शासन था। घोर तपस्या से उन्होंने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया। वरदान के प्रभाव से वे इतने अभिमानी हो गए कि उन्होंने काशी से सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को जाने का आदेश दे दिया। भगवान भोलेनाथ ने उनके अहंकार को तोड़ने के लिए अनेक देवताओं को भेजा, परंतु कोई सफल नहीं हुआ। तब गणेशजी स्वयं आए और अपने प्रताप से देवोदास की शक्ति को क्षीण कर दिया। तभी से गणेशजी काशी में विभिन्न रूपों में विराजमान होकर देवताओं और भक्तों की रक्षा करने लगे। लोहटिया स्थित स्वयंभू गणेश उसी परंपरा का आधार हैं।गणेश चतुर्थी और कलंक चौथ
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी का जन्मदिन माना जाता है। यह पर्व गणेश चतुर्थी या “कलंक चौथ” के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इस दिन चंद्र दर्शन निषिद्ध बताया गया है, क्योंकि इसके दर्शन से मिथ्या कलंक का दोष लगता है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी इससे अछूते नहीं रह पाए थे। तुलसीदास ने चौथ के चंद्रमा को “झूठा-कलंक” का प्रतीक बताया। काशी में परंपरा है कि इस रात लोग बाहर न निकलें और चंद्र दर्शन से बचने के लिए घर-घर में प्रतीकात्मक पथराव किया जाता है।पूजन विधि और विशेष महत्व
गणपति पूजन अत्यंत सरल माना गया है। गणेशजी दूर्वा, पत्र-पुष्प और मोदक से प्रसन्न हो जाते हैं। चंदन, केसर, इत्र, हल्दी, अबीर-गुलाल, गेंदे के फूल और बेलपत्र अर्पित करने का विधान है। मध्याह्न काल में पूजा करना श्रेष्ठ है क्योंकि मान्यता है कि गणेशजी का जन्म इसी समय हुआ था। गणेशजी को 21 संख्या विशेष प्रिय है। अतः 21 नामों के उच्चारण और 21 लड्डुओं का भोग विशेष फल देता है। इन 21 नामों में सुमुख, गजानन, लम्बोदर, वक्रतुंड, सिद्धिविनायक आदि प्रमुख हैं। पूजा में गेंदे के फूल, बेलपत्र, धतूरे के पुष्प और सिंदूर का विशेष महत्व है। अंत में गणेश, विष्णु और लक्ष्मी की आरती कर प्रसाद का वितरण किया जाता है।छप्पन विनायक : काशी की अद्भुत धरोहर
लोहटिया के बड़े गणेश के अतिरिक्त काशी में 56 स्थानों पर गणपति के विविध रूप प्रतिष्ठित हैं। कहते है इन सभी छप्पन विनायकों के दर्शन से भक्तों के जीवन से संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इनमें प्रमुख हैं,
दुर्गा विनायक (दुर्गाकुंड)
चिंतामणि गणेश (सोनारपुरा व ईश्वरगंगी)
अक्षय विनायक (दशाश्वमेध घाट)
अविमुक्त विनायक (ज्ञानवापी)
चित्रघंट विनायक (घंटा देवी)
दंतहस्त विनायक (बड़ा लोहटिया)
त्रिमुख विनायक (चौक)
द्वार विनायक (मणिकर्णिका घाट)
ज्ञान विनायक (खोजवा)
उत्सव और विसर्जन
गणेश चतुर्थी से आरंभ यह उत्सव दस दिनों तक चलता है। घरों और पंडालों में गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है। दसवें दिन अनंत चतुर्दशी पर भव्य शोभायात्रा के साथ मूर्तियों का जल में विसर्जन किया जाता है। सामर्थ्य के अनुसार कुछ भक्त डेढ़ या तीन दिन बाद भी गणपति विसर्जन करते हैं।
ज्योतिषीय संयोग
इस वर्ष गणेश चतुर्थी हस्त नक्षत्र, शुक्रवार और विशेष योग में पड़ रही है। शुक्र के साथ हस्त नक्षत्र का संयोग अमृत योग बनाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन गणेश स्थापना से परिवार में मानसिक शांति, शक्ति का संचार और रिद्धि-सिद्धि की कृपा प्राप्त होगी।
गणेश चतुर्थी और काशी
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन गणपति उत्सव का शुभारंभ होता है, जो दस दिनों तक चलता है। मंदिरों और घरों में प्रतिमाओं की स्थापना होती है, भजन-कीर्तन और श्रृंगार होते हैं, और दसवें दिन अनंत चौदस को गणेश विसर्जन किया जाता है।
चंद्र दर्शन का निषेध
इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित है, क्योंकि मान्यता है कि चंद्रमा को देखने से मिथ्या कलंक लगता है। स्वयं भगवान कृष्ण भी इस दोष से नहीं बच पाए थे। तुलसीदास ने चौथ के चाँद को उपेक्षित कर कहा है,
“सो परनारि लिलार गोसाईं, तजउ चौथि के चंद की नाईं।”
गणेशजी का जन्म प्रसंग
शिवपुराण के अनुसार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने मैल से एक बालक की रचना की और उसे द्वारपाल नियुक्त किया। जब भगवान शिव आए तो बालक ने उन्हें रोका। शिव ने क्रोधवश उसका सिर काट दिया। पार्वती के दुख को दूर करने के लिए शिव ने गजमुख लगाकर बालक को पुनर्जीवित किया और उसे अग्रपूज्य बना दिया। यही बालक गणेश कहलाए। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दे दिया। इसीलिए चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते है। स्कन्द पुराण के अनुसार श्री कृष्ण युधिष्ठिर संवाद में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की बड़ी महिमा बताई गई है। इस चतुर्थी तिथि को श्री गणेश जी का जन्म बताया गया है। इस दिन की उपासना से गणपति भगवान अपने उपासकों के संपूर्ण कार्यों को पूर्ण करते हैं। श्री गणेश के विशेष व्रत वट गणेश व्रत इस व्रत में वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा की जाती है। यह उŸाम व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से माघ शुक्ल चतुर्थी तक किया जाता है। तिल चतुथी यह उŸाम व्रत माघ शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है। इस व्रत में मात्र तिल के मोदकों (लड्डुओं) का भोग लगता है।
व्रत और ज्योतिषीय महत्व
गणेश चतुर्थी का व्रत करने से सभी विघ्न नष्ट हो जाते हैं। यह तिथि मंगलवार या रविवार को पड़ने पर और भी फलदायी होती है। इस बार गणेश स्थापना हस्त नक्षत्र और विशेष ग्रहयोग में हो रही है। मान्यता है कि इस योग में स्थापना करने से परिवार में मानसिक शांति और शक्ति का संचार होता है।
काशी में गणेश उत्सव की भव्यता
गणेश चतुर्थी से अनंत चौदस तक काशी गणेशमय रहती है। बड़े गणेश मंदिर और अन्य विनायक स्थलों पर भव्य श्रृंगार होता है। श्रद्धालुओं का तांता दिन-रात लगा रहता है। गली-मोहल्लों में गणेश पंडाल सजते हैं, जिनमें सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। काशी में बड़े गणेश और उनके छप्पन रूप न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं, बल्कि यह भी संदेश देते हैं कि हर शुरुआत, हर कार्य, हर संकल्प तभी सफल होता है जब उसमें विघ्नहर्ता का आशीर्वाद शामिल हो। यही कारण है कि काशीवासी हर मंगल कार्य से पहले बड़े गणेश का स्मरण करते हैं और कहते हैं, “गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया।”
देवताओं में प्रथम पूज्य है श्रीगणेश
भगवान गणेश समस्त देवी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। इनकी उपासना करने से सभी विघ्नों का नाश होता है तथा सुख-समृद्ध व ज्ञान की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जब ब्रम्हाजी के सृष्टि निर्माण के समय निरंतर बाधाएं आ रही थीं। तब वे विघ्न विनाशक श्री गणेश जी के पास प्रार्थना लेकर पहुंचे। ब्रम्हाजी की स्तुति से प्रसन्न भगवान गणेश ने उनसे वर माँगने को कहा। ब्रम्हाजी ने सृष्टि के निर्माण के निर्विघ्न पूर्ण होने का वर माँगा। गणेश जी ने तथास्तु कहा और आकाश मार्ग से पृथ्वी पर आने लगे। मार्ग में चंद्रलोक आया, जहाँ चंद्रमा ने श्री गणेश जी का उपहास उडाया। चंद्रमा को अपने सौंदर्य के मद में चूर देखकर श्री गणेश ने उन्हें श्राप दिया कि आज के दिन तुम्हें कोई नहीं देखेगा और यदि देखेगा तो वह मिथ्या कलंक का भागी होगा। चंद्रमा लज्जित होकर छिप गए। ब्रम्हाजी के कहने पर देवताओं ने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा की और चंद्रमा को क्षमा करने की प्रार्थना की। इस स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने कहा कि जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के चंद्र के दर्शन करेगा और चतुर्थी को विधिवत गणेश पूजन करेगा उसे चतुर्थी के चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा। उस दिन भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसलिए इस तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी





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